जै जिनगीमे रौद-घाम नै,
से भ' जाइछ छहरियालप्पा ।
बिना चुनौतीके जिनगी तँ
ठहरल पानि-थालके खत्ता ।।
ठहरल पानि-थालके खत्ता,
कीड़ा-साँप-जोंकके डबरा ।
ने पीबा-स्नाने जोगड़क,
भरिए देब नीक हो तकरा।।
जे जिनगी संघर्ष बिना अछि,
कनिको रस नै तै जिनगीमे ।
व्यर्थे बोझ देहकेर ऊघब,
कोनो रस नै जै जिनगीमे ।।
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