श्रेष्ठ तिनके बुझी जिनकर,
शुद्ध पूत विचार छन्हि ।
पूतता बिन हीन बूझी,
जदपि धन अम्बार छन्हि ।।
जदपि धन अम्बार छन्हि,
याचकके ने भोजन भेटय ।
दीन रहितो पैघ से जे
तुष्ट याचक के करय ।।
उदधि अछि आगार वारिक,
प्यास नै ककरो मेटाबय ।
शुद्ध वारि गँहीर कूपक,
तृषा प्यासल के मेटाबय ।।
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