Monday, December 28, 2015

तस्कर


काम क्रोधक संग लालच उर के तस्कर, सतत लागल-
ज्ञान रत्नक हरण लेल, तैं रहू जागल रहू जागल...
शुप्त के भेल ज्ञान अपहृत, बुद्धि शीघ्रहिं भ्रष्ट होमय,
बुद्धि भ्रष्टक बाद मनुजक, शीघ्र जीवन नष्ट होमय...
नाश करवा लेल काफी, चोर हो एको जतय,
जं जुटल तिहुं, नाश के संदेह लेशो  ने रहय...
                   जागल रहू, जागल रहू....  
                ‘मनुष्य के ह्रदय में काम, क्रोध, लोभ नामक तीन टा चोर ज्ञान रत्नक अपहरण करवा लेल निवास करैछ, तैं जागू, जागू. सूतल लोकक ज्ञान के तीनू चोर अपहरण करैछ. ज्ञान के अभाव में वुद्धि भ्रष्ट होइछ. बुद्धि नाशक पश्चात् शीघ्रे जीवन समाप्त भ’ जाइछ. मनुख के नाश करवा लेल एको टा चोर पर्याप्त अछि, मुदा जं तीनू जुटि गेल त’ लेशमात्रो संदेह नहि रहय; अर्थात् नाश निश्चय, तयं जागू, जागू.’     


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