जीवन में छोटी-छोटी
बातों का बड़ा महत्व है . प्रारम्भिक अवस्था में ही अगर वीमारियों का समुचित इलाज
करा दिया जाय तो हम असंख्य लोगों की जान बचा सकते हैं जो समय अधिक हो जाने के कारण
लाइलाज रोगों से मर जाते हैं . बच्चों की प्रारम्भिक छोटी- छोटी गलतियों को नजरअंदाज
कर देने पर बाद के दिनों में वे बहुत घातक सिद्ध होती हैं और जिन्दगी भर पछताना पड़ता
है . कई बच्चों को चोरी की आदत कुसंगति के कारण लग जाती है . कुछ गार्जियन बच्चों को
डांट देते हैं . एक-दो बार डांट पड़ने से बच्चे इस तरह की अनेक गलत आदतों (झूठ
बोलना, अशिष्ट आचरण, झगडा करना, गाली-गलौज करना, अश्लील हरकत करना इत्यादि) को छोड़
देते हैं . इसके विपरीत इन छोटी-छोटी गलतियों को नजरअंदाज कर देने अथवा बढ़ावा देने
(कुछ माता-पिता बच्चों द्वारा चोरी कर लाये गए धन से खुश होते हैं) से बाद में वे
भयंकर डकैत/ अपराधी/ आतंकवादी बन जाते हैं.
घर में घुस आये सांप को जरूर से जरूर
भगा दें . पहले लोग मार देते थे . लकिन पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर भगा देना हितकारी
है अन्यथा स्वभाव के कारण काट सकता है . एक वार मैं इस गलती को भुगत चुका हूँ इसीलिए यह सब कह रहा हूँ . दस-बारह साल बीत जाने के बाद भी कभी-कभी याद आ जाने पर टीस मारता
है .
छोटे-छोटे कृत्यों/ उपहारों से आप
किसी का दिल जीत सकते हैं . भले ही कोई कितना ही धनवान हो . आपके ह्रदय से समर्पित
छोटे उपहार का महत्व बेमन से दिए गए कीमती भेंट से काफी अधिक है .
मन से भी किसी का हित/अहित सोचने
पर पहुँच जाता है . मन के सोच का तरंग (वेव) गंतव्य तक पहुंचे विना नहीं ठहरता.
माँ बच्चे के प्रति किये गए कार्य को प्रकट नहीं करती; फिर भी बच्चा दिखावे के
लिए अन्यों द्वारा किये गए व्यवहार को समझ जाता है और माँ को देखते ही दौड़ पड़ता है
. इस मामले में जानवर अधिक सेंसिटिव होता है. प्यार करने वाले को दूर से गंध से
पहचान लेता है .
दो भाइयों में बँटवारा होता है
. खेत से धान आने पर बराबर का बंटवारा होता है . बड़े का परिवार बड़ा है और छोटे
का छोटा. छोटा सोचता है कि भाईजी का खर्च अधिक है, अतः रात में चुपके से अपने धान
के बोझा में से एक-दो बोझा बड़े भाई के बोझा में डाल देता है . बड़ा सोचता है कि
मेरा तो बच्चा सब भी कमा रहा है, मेरी आय काफी है; छोटा अकेले कमाता है अतः तकलीफ
में होगा . चुपके से रात में अपने हिस्से के बोझा में से एक-दो बोझा छोटे में डाल आता है . काफी दिनों तक ऐसा करने पर भी दोनों को
अपने हिस्से पर ध्यान देने पर कोई अंतर नजर नहीं आता है . भगवान् की माहिमा पर
दोनों अचंभित हैं . एक रात अपने काम में मस्त दोनों टकरा जाते हैं . भेद खुल जाता
है . एक साथ बैठकर बड़ी देर तक दोनों रोते रहते हैं.
किसी की भलाई के लिए किये गए क्रोध/ निंदा में
पाप नहीं माना गया है, बल्कि पुण्य का काम है . परसुराम/ दुर्बासा का क्रोध लोक
कल्याण के लिए होता था . माँ-बाप का क्रोध संतान की भलाई के लिए होता है . विश्वामित्र
की तपस्या अतुलनीय थी, लेकिन उन्होंने क्रोध पर विजय नहीं पाया था . वे अपने को
ब्रह्मर्षि कहलवाना पसंद करते थे . सभी ऋषि-मुनि उनके भय से उन्हें ब्रह्मर्षि
कहते थे . केवल वशिष्ठ उन्हें राजर्षि कहते थे . यही कारण था कि विश्वामित्र,
वशिष्ठ पर कुपित रहते थे . एक दिन उनकी ह्त्या करने के लिए वे फरसा लेकर विश्वामित्र
की कुटी के बाहर छिप कर बैठ गए . आधी रात के समय वे कुटी में घुसने ही वाले थे कि
उन्होंने पति-पत्नी की बात सुनी . पत्नी- ‘आप हमेशा कौशिक को राजर्षि कहते हैं,
जबकि सभी उन्हें ब्रह्मर्षि कहते हैं’ . वशिष्ठ- ‘ सपूर्ण संसार में कौशिक से बड़ा
ऋषि कोई नहीं है . मैं कौशिक को दुनिया में सबसे अधिक प्यार करता हूँ . अभी भी
उनमे क्रोध का अंश शेष है . चापलूस लोग उनके भय से उन्हें ब्रह्मर्षि कहते हैं .
जिस रोज उनका क्रोध समाप्त हो जाएगा मैं भी उन्हें ब्रह्मर्षि कहूंगा’ . सुनते ही विश्वामित्र,
वशिष्ठ के पाँव पर गिर पड़े. वशिष्ठ ने ‘ उठिए ब्रह्मर्षि’ संबोधन कर गले से लगा
लिया .
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