Tuesday, December 15, 2015

(३०.११.२०१५) के संस्मरण


अवकाशग्रहण के अंतिम दिन का एक-एक पल आँखों के सामने नाच रहा है. उनतीस की शाम से ही आभास होने लगा कि परसों से जीवन का नया चैप्टर शुरू होने जा रहा है और आध्यात्मिक जीवन जीने का पूर्वाभास हुआ . तपेश्वर जी (जी.एम. फाइनेंस, बी.एस.बी.सी.सी.एल.) के घर पर २९.११.१९५५ की शाम को कीर्तन-भजन का आयोजन था. उन्होंने २८ को कीर्तन में शामिल होने का निमंत्रण दिया. मैंने ड्राइभर नहीं होने की बात कही तो उन्होंने गाड़ी सहित ड्राइभर भेजने की बात कही; मैं निरुत्तर हो गया. २९ की शाम में उनकी गाड़ी आई. मैं विलम्ब होता देख पहले ही शिव मंदिर पर चला गया था. वहाँ पूजा कर प्रतीक्षा करने लगा. अधिक विलम्ब होता देख बगल के मौल में घूमने चला गया. एक बंडी खरीदने का सोचा था, लेकिन साइज का नहीं मिला. कुछ देर में ही ड्राइभर का फोन आ गया; वह जाम में फंस गया था. मंदिर के पास गाड़ी लगाकर खडा था. मौल से पैदल ही चलने का सोचा ताकि ड्राइभर मुझे खोजने में फिर न भटक जाय. आकर गाड़ी में बैठकर विदा हुआ. रास्ते में जगत ट्रेडर्स में सी.ए. के एक टीचर को साथ लेना था, वे तपेश्वर जी के ट्यूटर रह चुके थे. उनको साथ लेकर तपेश्वर जी के घर पहुंचा; वहाँ सांई राम का भजन चल रहा था. भजन-कर्ता लोग इतनी भक्ति से गा रहे थ कि मै भी भक्ति रस में डूब गया. बहुत आनंद आया. ९:१५ तक भजन-कीर्तन चला. उसके बाद प्रसाद ग्रहण करना था. मूल प्रसाद (लघु) के बाद वृहत प्रसाद (भोजन) का कार्यक्रम था. वृहत प्रसाद (पूरी, शब्जी, हलवा) ग्रहण कर विदा हुआ और क़रीब १०:३० में डेरा पहुंचा. तपेश्वर जी के यहाँ जाते वक्त ही गिरीश सर का फोन आया था कि कल आपको अपनी गाड़ी में कार्यालय नहीं जाना है, मैं अपनी गाड़ी में कल आपको ले चलूँगा. ३० की सुबह ९:३० में शिव मंदिर के पास चला गया. गिरीश सर को आने में कुछ देरी हुई तो दर्शन के पश्चात् ओपोजिट साइड में सैमसंग के शो रूम के पास खडा हो गया. गिरीश सर आये तो साथ में बैठ गया; विलम्ब का कारण उन्होंने ड्राइभर का विलम्ब से आना बताया. कार्यालय पहुंचकर कुछ महत्त्वपूर्ण संचिकाओं का निष्पादन किया. १२:०० बजे विशेष सचिव का फोन आया, उन्होंने अपने चैंबर में बुलाया था. वहाँ जाने पर देखा कि पहले से ही गिरीश सर, डी.डी.1 गुप्ताजी, कुछ योजना अभियंता (दुबे जी, जहांगीर, गुंजन) तथा पी.एम्.यू. के लोग बैठे हुए थे. गंगा सर ने रिटायरमेंट के बाद निगम में रखने की बात चलाई. गिरीश सर ने भी समर्थन किया. पुनः पांच बजे फेयरवेल में शरीक होने की बात कहकर उन्होंने छुट्टी दी. चैंबर में लौटा तो का.अ. पाटलिपुत्रा, योजना अभि. चंद्रा जी, का.अ. केन्द्रीय प्रमंडल, का.अ. सुरेन्द्र प्रसाद जी एवं अन्य कई यो.अभि. बैठे थे. तत्पश्चात उप सचिव 1 एवं 2, ओ.एस.डी., अंडर सेक्रेटरी शालिग्राम बाबू, का.अभि. अशोक जी आदि आये. उसके बाद मु.अ. त्यागी जी, सुनील बाबू, नवीन  बाबू, रमेश बाबू आदि आये. कुछ देर बाद गिरीश सर गंगा बाबू को साथ लेकर आये और उनके साथ हमलोग कॉन्फ्रेंस हौल में गए.
                        सर्वप्रथम गंगा सर ने बुके देकर स्वागत किया. उसके बाद गिरीश सर के साथ सभी मुख्य अभियंताओं ने बुके दिया. फिर हौल में उपस्थित पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों ने माला पहनाकर स्वागत किया. फिर गंगा सर ने ब्रीफकेस (श्रीमद्भगवद्गीता- स्वामी रामसुखदास टीका वाली, घड़ी, शौल, शर्ट, शूटपीस, पेनसेट इत्यादि सहित) देकर स्वागत किया. तत्पश्चात, योजना अभियंता श्री दुबे ने अभिनन्दन पत्र पढ़ा. पत्र में अंकित उद्गार सुनकर कलेजा भर आया. फिर गिरीश सर ने काफी प्रशंसा की और उसके बाद गंगा सर ने तो प्रशंसा के पुल ही बाँध दिए. मुझे तो गार्जियन तक कह दिया. निगम में ले चलने की बात बोली. अब मेरे बोलने की बारी आयी.
मेरा अभिभाषण :-   ““मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि परिश्रम का विकल्प कुछ नहीं है. यह इंटेलिजेंस पर भारी है. माँ लीजिये कि कोई लड़का काफी इंटेलिजेंट है और एक ही बार में समझ जाता है. दूसरा लड़का उससे मंद है और दो बार में समझता है. अब अगर दूसरा लड़का तीन बार या चार बार पढ़ ले तो वह पहले से अधिक नंबर ले आयेगा कि नहीं? जरूर ले आयेगा. सर लोगों ने मेरे सम्बन्ध में जो जो बातें कही हैं मै उसके योग्य नहीं हूँ. वल्कि सर लोग ही इतने अच्छे हैं कि उन्हें मेरे सारे कृत्यों में अच्छाई नजर आयी है. गिरीश सर के बारे में क्या कहूं! ये डी.सी. झा और भवानंद झा परम्परा के आदर्श अभियंता हैं. इनके साथ काम करके मैं अपने को गौरवान्वित महसूस करता हूँ. गंगा सर आदर्श प्रशासनिक पदाधिकारी हैं. मेरा एक आर्टिकिल आया था- ‘फ़ास्ट एंड स्टर्डी’ वह इन्ही के लिए था. हमलोग अभी तक सुनते आये हैं- ‘स्लो एंड स्टीडी विन्स दि रेस’. लेकिन अगर कोई ‘फ़ास्ट एंड स्टर्डी(= तगड़ा,प्रबल, मजबूत, दबंग,दृढ,पुष्ट,कडा,बलवान)’ है तो वह क्या करेगा. वह सभी रिकार्ड तोड़ देगा.
        सर लोगों के मेरे वारे में रखे गये उदगार को सुनकर आँखों  में आंसू आ गए थे. किसी ने उपलब्धि के बारे में पूछा था. मेरी तो सबसे बडी उपलब्धि यही है है कि एक गरीब किसान के घर जन्म लेकर इंजीनियर बन गया. बड़े भाई गाँव के ब्रह्मचर्याश्रम में पढने जाते थे. मैं भी ब्रह्मचर्याश्रम में गुरूजी के संपर्क में आया. अच्छा लगने लगा. पुनः बगल के अपर स्कूल में जाने लगा. यहाँ और मन लगा. फिर इधर ही पढ़ने लगा. लेकिन अभी सोचता हूँ तो लगता है कि संस्कृत पढता तो और अच्छा करता. जीन में संस्कृत था लेकिन जीन के विपरीत इंजीनियर बन गया. जीन के विपरीत कार्य करने पर अधिक परिश्रम करना पड़ता है. गिरीश सर के पिताजी इंजीनियर-इन-चीफ थे, इनके जीन में इंजीनियरिंग है.
   जूनियर पीढी के लिए कुछ सन्देश है. खूब परिश्रम करें. पोजिटिव सोच से काम करें. सब लोगों से प्रेम करें. बड़ों का रिस्पेक्ट करें. जाती-सम्प्रदाय से ऊपर उठकर काम करें. जब एक ही आत्मा सब जीवों में निवास करती है तो फिर अपना और पराया क्या? सब अपना ही है. प्रकृति से प्रेम करें, पर्यावरण संरक्षित करें.
     अंत में आप सब लोगों का कृतज्ञ हूँ कि इतना सम्मान दिया. धन्यवाद!””
        मेरे अभिभाषण के बाद अल्पाहार बांटा गया. उसके बाद सबलोगों ने आलिंगनबद्ध होकर विदाई दी. अपने कमरे में आ गया. कुछ देर के बाद गिरीश सर ने अपनी गाड़ी में बिठाकर डेरा तक लाया. उनका ड्राइभर सभी सामान डेरा में रख आया. गिरीश सर को विदा कर डेरा आया.

                डेरा में आकर एक-एक पल को याद कर अभिभूत हो उठता हूँ. गिरीश सर के उदगार सदैव याद रहेंगे. उन्होंने उस दिन की सारी व्यवस्था अपनी देख-रेख में की थी. साथ ही उस दिन उनका मुझे अपनी गाड़ी में ले जाना और फिर डेरा पहुंचा जाना सारी जिन्दगी याद रखूंगा.   .........KKJHA.

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