Friday, December 18, 2015

कमल जी (भाग 1)


जन्म तिथी – २६.११.१९५५
शिक्षा
लोअर क्लासेज - पहला:-   करमौली प्राथमिक विद्यालय (मधुबनी).
दूसरा, तीसरा :- रेलवे इन्स्टीट्यूट, धनबाद. वर्ग 4 से 7 तक :- माध्यमिक विद्यालय कपरिया (मधुबनी).
वर्ग ८ से ११ तक :- उच्च विद्यालय, कलुआही (मधुबनी ).
इंटरमीडिएट साइंस :- सी.एम. कॉलेज, दरभंगा.
बी. एससी. इंजीनियरिंग (सिविल):- बी.आई.टी, सिंदरी,  (प्रथम श्रेणी विशिष्टता सहित), वर्ष- १९८०; (वर्ग १० से इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष तक राष्ट्रीय मेधा छात्रवृत्ति से सम्मानित) .
११.१२.१९८० - बिहार सरकार, लोक निर्माण विभाग,पटना में योगदान. तत्पश्चात
३१.१२.१९८० से वर्ष ८३ तक  – ग्राम्य अभियंत्रण संगटन, अग्रम योजना प्रमंडल, रांची.- डिजाइन एंड प्लानिंग ऑफ सो मेनी ब्रिजेज एंड रोड्स. मुख्य रूप से- घाट बाजार-हुरदा रोड, सिमडेगा- कुरडेग रोड, संख रिभर ब्रिज, खूंटी ब्रिज इत्यादि .
वर्ष ८४ से ८९- वीरपुर, कन्स्ट्रक्सन ऑफ सो मेनी गवर्नमेंट बिल्डिंग.
 ९० से ९५- अग्रिम योजना प्रमंडल संख्या-1, भवन निर्माण विभाग, बिहार, पटना . एस्टीमेसन, प्लानिंग एंड डिजाईन ऑफ़ सो मेनी बिल्डिंग्स .
 ९५ – भवन अवर प्रमंडल, दलसिंगसराय :- एस. डी. ओ. कोर्ट, सिविल कोर्ट, डी. एस. पी. ऑफिस, इत्यादि के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान .
 ९६-२००० – भवन अवर प्रमंडल सं-2, दरभंगा :- मेंटीनेंस एंड कंस्ट्रक्सन ऑफ़ गभर्न्मेंट बिल्डिंग, अंडर सब-डिविजन नं-2, बी. सी. डी., दरभंगा.
 २००१-०३, -सहायक अभियंता से कार्यपालक अभियंता में प्रोन्नति के पश्चात् का. अ., भवन निरूपण अंचल सं. 1, पटना में पदस्थापन :- अनेकों भवनों का निरूपण एवं तकनीकी स्वीकृति .
 २००३-२००८ :- का. अ., भवन प्रमंडल, बांका :- सदर अस्पताल, समाहरणालय, परिसदन, मंडल कारा, सिविल सर्जन कार्यालय, सिविल सर्जन आवास, इत्यादि के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका .
२००८ में कुछ दिन के लिए छपरा भवन प्रमंडल में का. अ. :- सुपरविजन ऑफ़ प्रोजेक्ट्स अंडर कंस्ट्रक्सन .
 २००९ :- का.अ., भवन निरूपण अंचल सं.- 2 :- अनेकों भवनों का निरूपण एवं तकनीकी स्वीकृति .
 २०१०-२०१३ – का. अ. से अधी. अभि. में प्रोन्नति के फलस्वरूप पटना भवन अंचल में अधीक्षण अभियंता के रूप में २०१० से २०१३ तक पदस्थापन . टी.एस./ सी.एस./ इन्स्पेक्सन ऑफ़ सो मेनी बिल्डिंग्स अंडर बी.सी.डी., पटना सर्किल .
 २०१३ से ३०.११.२०१३ – मुख्य अभियंता, दक्षिण के स.प्रा. एवं मुख्य अभियंता, पटना के सर्जन के पश्चात् मुख्य अभियंता, पटना के स. प्रा. के अतिरिक्त प्रभार में. कार्य-क्षेत्र अंतर्गत संचिकाओं का निष्पादन.                                               

                          किसी ने पूछा कि आपकी उपलब्धि क्या है ? – उपलब्धि इतनी है कि एक साधारण किसान का लड़का इंजिनियर बन गया. धान के खेत में धान कटाते-कटाते, बगीचे मे आम की रखवाली करते-करते इंजिनियर बन गया. कभी सोचा भी नहीं था कि इंजिनियर बनूंगा. लेकिन इतनी बात है कि खेती में मन नहीं लगता था. गाँव के ब्रह्मचर्याश्रम में भैया के साथ जाने लगा. गुरूजी के पास अच्छा लगने लगा. बगल के लोअर स्कूल में हम उम्र के बच्चे के साथ भी जाने लगा. लोअर स्कूल में मेधाबी बच्चे जाते थे ; ब्रह्मचर्याश्रम में अपेक्षाकृत मंदबुद्धि बच्चे जाते थे. संस्कृत के पुस्तक भारी थे. लोअर स्कूल में एक ही किताब थी. अतः आसान लगने के कारण लोअर स्कूल अच्छा लगा. मनोहर पोथी को चित्र देखकर रट गया, भले ही पढ़ना नहीं जानता था. उस समय अपनी मेधा के बारे में कुछ नहीं कह सकता हूँ.  हलांकि बहुत सारे अधिक मेधाबी छात्र पढ़ रहे थे.
                            इसी बीच मेरे जीवन क्रम में एक वृहत परिवर्तन की बात हुई. मेरी सेकण्ड भाभी (हरी भैया की पत्नी) को तपेदिक हो गया. उन्हें दिखाने के लिए धनबाद ले जाने की बात हुई. उस समय सबसे बड़े भाई और सेकण्ड एल्डेस्ट भाई धनबाद रेलवे में कार्य करते थे. मैं भी उन लोगों के साथ धनबाद चला गया. रेलवे स्कूल में दूसरी कक्षा में मेरा नाम लिखाया गया. हिन्दी और गणित दोनों मेरे रटे हुए विषय थे. वहाँ अंग्रेजी पढने का मौक़ा मिला. मेरी कक्षा के बच्चे जब तक एक पन्ना पढ़ पाते थे, तब तक मैं पूरी किताब पढ़ जाता था . मात्र एक नया विषय अंग्रेजी थी, जिसमें मजा आने लगा . दूसरी एवं तीसरी कक्षा में वर्ग में प्रथम आ गया . पूर्व में दमयंती नाम की लडकी प्रथम आती थी जो सेकण्ड आने लगी . गणित के लिए मूल सिलेबस से इतर एक चक्रवर्ती की किताब से सवाल बनाने लगा . अपने से सीनिअर छात्रों तथा शिक्षकों से भी परामर्श लेने लगा . एक कंपौंडर आता था जिससे गणित में काफी मदद मिली . रास्ता के किनारे रेलवे क्वार्टर के सामने पटिया/ बोरा बिछाकर सवाल बनाता था . एक दिन बोरा पर किताब छोड़कर डेरा में किसी काम से गया . इसी बीच एक गाय आकर किताब खा गयी . पुनः किताब खरीदा कि नहीं यह याद नहीं है लेकिन मेरा गणित काफी मजबूत हो गया .
                        तीसरे  वर्ग में प्रथम आने पर काफी सम्मान मिला . चौथा में नाम लिखाया . अप्रैल तक उस स्कूल में पढ़ा, उसके बाद गाँव आ गया. इसी बीच मुझसे बड़े एवं  छोटे भाइयों (पांच भाइयों में मेरा स्थान चौथा है ) के साथ मेरा जनेऊ संस्कार हुआ. कार्यक्रम समाप्त होने के बाद पढ़ाई के सम्बन्ध में बातचीत हुई. गाँव में उस समय मिडिल स्कूल खुल गया था. लेकिन पड़ोस के दो सीनिअर्स अमीर भाई और चंदू भाई मिडिल स्कूल कपरिया स्कूल (गाँव से दो कि.मी. दूर पश्चिम-उत्तर) में पढ़ते थे, अतः मैंने भी वहीं चौथी कक्षा में नाम लिखाया . धनबाद से लाये गए पुस्तकों में से केवल हिंदी और गणित ही यहाँ भी काम आये, अन्य पुस्तक अलग थे. मेरी अंग्रेजी उच्च स्टार की हो गयी थी, जबकि यहाँ मेरी कक्षा के लड़के वर्णमाला सीख रहे थे. कुछ तकलीफ भी हो रही थी क्योंकि मैं कुछ आगे की अंग्रेजी सीखना चाह रहा था; परन्तु यहाँ साथ में चलना था . कुछ फायदा भी हुआ चूंकि लड़के मुझसे गणित और अंग्रेजी सीखने आते थे. इतिहास, विज्ञान, समाज अध्ययन, भूगोल इत्यादि सिलेबस की किताबें नहीं खरीद सका चूंकि अन्य लेखक की किताब पास में रहते हुए अपव्यय लगा. पुस्तक के मामले में पैसा बचाना उचित नहीं है. फिर भी पीछे मुडकर देखने से लगता है कि किताब नहीं खरीद कर अच्छा ही किया. चार पांच लड़के तिलक, वैद्यनाथ, सीताराम, ढोढाइ, सुमन, चन्द्रमोहन साथ में पढ़ते थे .उनलोगों से किताब मांगकर लाता और अधिक से अधिक पढ़ने और लिखने का प्रयास करता. फल ये हुआ कि जिन विषयों किताबें नहीं थीं उन विषयों की तैयारी पहले हो गयी. हिन्दी, गणित, अंग्रेजी में मैं मजबूत था ही. कुछ सीनियर्स अमीर भाई और चंदू भाई से मदद का भी लाभ मिला. मैं सशंकित रहते हुए भी आराम से वर्ग में प्रथम आ गया. वर्ग पांच से सात तक तो अपनी किताब हो गयी, फलतः पढ़ाई में रूचि भी जग गयी और फिर मैं छः माह में ही गणित आदि को ख़त्म कर आगे की गणित देखने/ सीखने लगता था चूंकि सीनियर्स के साथ रहता था तो आसानी हो जाती थी. कपरिया मिडिल स्कूल में सभी वर्गों में प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए बिहार प्राथमिक शिक्षा बोर्ड से प्रथम श्रेणी में सातवाँ पास किया. चार साल पूर्व मिडिल स्कूल के प्रधानाध्यापक श्री यमुना बाबू ने हाई स्कूल खोल लिया था और उसी परिसर में उच्च विद्यालय भी चल रहा था. सातवाँ पास करने पर जब निकलने की बारी आयी तो प्रधानाध्यापक उसी उच्च विद्यालय में नाम लिखवाने की जिद पर अड़ गए. विद्यालय त्यजन प्रमाण पत्र लेने के लिए पिताजी और रामचंद्र काकाजी गए थे . उनलोगों ने मान भी लिया था लेकिन मैं कलुआही स्कूल में जाने के लिए अड़ गया. बेमन से यमुना बाबू ने त्यजन प्रमाण पत्र दिया .
                 जो होता है वो अच्छे के लिए ही होता है. उस समय में कलुआही उच्च विद्यालय का पूरे इलाका में बड़ा नाम था . नाम लिखाने से पहले ही मैं तीन चार दिन वहाँ जाकर क्लास में बैठ चुका था . चारों तरफ के बहुत सारे नामी मिडिल स्कूल के लड़कों के बीच बैठ कर बहुत मन लगा था . यही कारण था कि कलुआही स्कूल के बारे में बहुत नहीं जानते हुए भी मेरा जी वहां नाम लिखाने के लिए मचल रहा था . यमुना सर को काफी कष्ट हुआ होगा लेकिन मेरे लिए यह मंगलकारी हुआ . यह इसलिए कि बाद के दिनों में मैंने देखा कि जो अच्छे लड़के कपरिया उच्च विद्यालय में रह गए वे अच्छा नहीं कर पाए. कुछ लड़के बाद में नाम कटाकर कलुआही आए लेकिन वे भी अच्छा नहीं कर सके. नया माहौल के कारण अथवा अन्य कारणों से मैं आठवां में सेकण्ड कर गया. नौवां में मैंने जान लगा दी और प्रथम स्थान पाया . उसके बाद मैं सभी वर्गों में प्रथम आता रहा.

नौवां पास करने के बाद दसवां में नाम लिखाया . नौवां में शायद उतना अंक कलुआही उच्च विद्यालय में किसी को नहीं आया हो. जनवरी माह में ही मेरे पीछे कई शिक्षक लग गए और गणित के शिक्षक ने सफलता प्राप्त की . गणित के शिक्षक श्री महावीर झा हमारे इलाके के गणित के प्रकांड विद्वान् थे . उनके शिष्यों की संख्या अनगिनत थी . नवाह राम-नाम संकीर्तन चल रहा था . कलुआही उच्च विद्यालय के सभी शिक्षक, प्रधानाध्यापक सहित नवाह स्थल पर पधारे . तत्पश्चात सभी लोग मेरे दरबाजे पर आये . कलुआही उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्रद्धेय तपस्वी बाबू, करमौली ब्रह्मचर्याश्रम के गुरूजी श्रद्धेय पंडित श्री जय माधव ठाकुर के बहनोई लगते थे . गुरूजी इस शादी के विरोधी थे, लेकिन उनलोगों ने उन्हें ही साथ में ले लिया . फलतः गुरूजी को बेमन से उनलोगों के तरफ से, उनके साथ जाना पड़ा . पिताजी के लिए इससे अधिक खुशी का दिन हो नहीं सकता था . एक गरीब निरक्षर किसान के घर इतने सारे प्रतिष्टित विद्वान् जो पधारे थे . सम्पूर्ण गाँव के लोगों का जमावरा मेरे दरबाजे पर हो गया . सभी लोगों की इक्षा शादी तय कर दिए जाने के पक्ष में थी . मैं इतना शर्मीला स्वभाव का था कि शादी का नाम सुनकर लाख बुलाने पर भी दरबाजे पर नहीं गया . अंततः मेरी शादी मुझसे विना कुछ पूछे हुए तय हो गयी . उस समय पूछने का प्रचलन भी नहीं था . पिता के तय किये हुए रिश्ते को ही श्रद्धापूर्वक मानना पुत्र का कर्त्तव्य था .     

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