Sunday, December 27, 2015

प्रज्ञा हीन

शास्त्र किछुओ कय सकत नहि, ज्ञान के नहि छूति जनिका.
नेत्र स’ जे मनुज बंचित, आइना की करत तनिका...
धूर्त अज्ञानी मनुज स्वार्थानुसारे भाव बांचय.
लोक मे विष बमन कय विद्वेष के वह्निहिं पसाहय...
जन्मांध छ’ टा व्यक्ति लग गजराज एकटा गेल राखल.
एक हाथी लेल भिन-भिन छ’ प्रकारक भाव आयल.
कान पंखा, खाम्ह जंघा, पीठ छू दीवार कहला,
सांप नांगरि, सूंढ़ धनु आ दांत छू बरछी ओ बजला.
ज्ञान लोचन स’ रहित जे नेत्र रहितो आन्हरे अछि,
महिष आगाँ बीन, दर्पण-शास्त्र सब तै मूढ़ लेल अछि. 

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