Thursday, September 1, 2016

शतं विहाय भोक्तव्यं


अरुण गिरि स’ सब उतरि-
अरुणाचलेश्वर धाम गेलहुँ I
टिकट झट स’ कटाओल आ- 
लाइन मे सब लागि गेलहुँ II
लाइन ततबा पैघ छै जे-
घाम सबके छुटि रहल अछि I
आश्रमक भोजन समय के-
याद क’ मोन टुटि रहल अछि II
विमलजी छल बाथरुम गेल,
निकलि सबके ढुढ़ि रहल अछि I
फोन केलक त’ कहलिऐ-
‘ रुकू, सब आबिए रहल अछि’ II
निकलवा मादे कहल त',
व्यवस्थापक देलनि उत्तर-
‘लाइन मे सब घुमू उलटा’
ओहो अछि अतिशय कठिनतर II
करै छी सब कियो छटपट,
मुदा रस्ता नै सुझै अछि I
समय भोजन केर भ’ गेल,
बात, पर क्यो नै बुझै अछि II
अंत मे अरुणाचलेश्वर,
बात सबटा बूझि गेलथिन्ह I
व्यवस्थापक एला दौड़ल,
गेट बीचक खोलि देलथिन्ह II
तुरत बाहर भेलहुँ सब क्यो,
जान मे पुनि जान आयल I
गेट स’ बाहर निकलिते,
रिक्त एक टेम्पू धरायल II
दौडिक’ सब कियो बैसल,
तुरत आश्रम पहुँचि गेलहुँ I
लाइन मे लगिते रहय सब,
हमहुँ सब झट लागि गेलहुँ II
भूख सबके रहय लागल
भोज्य पर सब टूटि गेलहुँ I
ग्रूप-भोजन आश्रमक अछि-
अतुल, सब आनंद लेलहुँ II
हँसल हे’ता गुरू-बाबा,
पड़ायल सब छोडि पूजा I
ह्रदय मे अरुणाचलेश्वर,
पेट-पूजन हुनक पूजा II

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