Tuesday, September 13, 2016

बाल-नीलू


माय के चिंतन जेना-
गर्भस्थ-शिशु तहिना बनै अछि I
चित्र मायक कक्ष मे सब,
श्रेष्ठ बालक के रखै अछि II

गर्भ-नीलू, माय आंगन-
मे, शिशुक क्रीड़ा देखै छथि,
-‘हमर शिशु अहिना पड़ैतै,
पकडितौं हम’- ओ सोचै छथि II

कथा अभिमन्यूक प्रचलित-
‘गर्भ स’ रण नीति जानथि ’ I
बाल-नीलू, मातृ-सोचें,
शैशवहिं स’ तेज भागथि II

रहथि नीलू आठ मासक  
घ’र स’ चुपके पड़ाइ छथि I
गे’ट मे तालाक रहितो,
फाँक स’ ओ भागि जाइ छथि II

रहै छी राँचीक हरमू-
कॉलनी, अति मो’न मोहय I
छोट-छिन बाजार, इस्कूल,
फिल्ड, रस्ता, पार्क सोहय II

अनुज सेहो संग मे छथि,
काज किछु-किछु ओ सिखै छथि I
समय के बरबाद बेसी-
काल, गप-सप मे करै छथि II

बाल-नीलू गेट स’
बाहर निकलि गेल एकदिन I
माय भानस-भात मे छलि,
बुझि ने सकली ताइदिनII

थोड़े कालक बाद, आहट-
शिशु के नै सुनि, दौड़ पडली I
भागिक’ मैदान जैतहिं,
फिल्ड मे निज शिशु के देखली II

जान मे ऐल जान, कोरा-
मे उठा शिशु के अनै छथि I
एलहुँ संध्याकाल, सबटा-
बात हमारा स’ कहै छथि II

पकड़लहुँ माथा, आ ईश्वर
के सतत बंदन करै छी I
करू रक्षा देव सबदिन,
अहीं सब शंकट हरै छी II
    


   

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