माय के चिंतन जेना-
गर्भस्थ-शिशु तहिना बनै
अछि I
चित्र मायक कक्ष मे
सब,
श्रेष्ठ बालक के रखै
अछि II
गर्भ-नीलू, माय आंगन-
मे, शिशुक क्रीड़ा देखै
छथि,
-‘हमर शिशु अहिना पड़ैतै,
पकडितौं हम’- ओ सोचै
छथि II
कथा अभिमन्यूक
प्रचलित-
‘गर्भ स’ रण नीति
जानथि ’ I
बाल-नीलू, मातृ-सोचें,
शैशवहिं स’ तेज
भागथि II
रहथि नीलू आठ मासक
घ’र स’ चुपके पड़ाइ छथि
I
गे’ट मे तालाक
रहितो,
फाँक स’ ओ भागि जाइ
छथि II
रहै छी राँचीक हरमू-
कॉलनी, अति मो’न मोहय
I
छोट-छिन बाजार,
इस्कूल,
फिल्ड, रस्ता, पार्क
सोहय II
अनुज सेहो संग मे
छथि,
काज किछु-किछु ओ सिखै
छथि I
समय के बरबाद बेसी-
काल, गप-सप मे करै
छथि II
बाल-नीलू गेट स’
बाहर निकलि गेल एकदिन
I
माय भानस-भात मे छलि,
बुझि ने सकली ताइदिनII
थोड़े कालक बाद, आहट-
शिशु के नै सुनि,
दौड़ पडली I
भागिक’ मैदान जैतहिं,
फिल्ड मे निज शिशु
के देखली II
जान मे ऐल जान, कोरा-
मे उठा शिशु के अनै छथि
I
एलहुँ संध्याकाल, सबटा-
बात हमारा स’ कहै
छथि II
पकड़लहुँ माथा, आ
ईश्वर
के सतत बंदन करै छी I
करू रक्षा देव
सबदिन,
अहीं सब शंकट हरै छी
II
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