Wednesday, July 30, 2014

लोक-लाज

परम मित्र ललन के पिताक देहांत'क समाचार सूनि मोन दुखी भ' गेल। काल्हिये हुनका भेट क'र' गेल रही । कते टन-टन बजैत छलाह। तुरत हुनका गाम पर विदा होइत छी। शिवपुरी पहुञ्चि क' देखैत छी जे आन्गन मे तुलसी चौरा ल'ग मृत देह राखल अछि आ ललन आ हुनक पत्नी दहो-बहो नार बहा रहल छथि।आस-पड़ोसक लोक सभक करमान लागल अछि। इलाका के लोक सब जुटल अछि।  एतेक कलामी आदमी फेर जनम नहि लेत। जाबत पैरुख छलनि, हुनक धोती- कुरता पर कियो सिलवट्ट नहि देखलक। लील-टीनोपाल देल कलफ कैल चम-चम वस्त्र हुनक शान बघारैत छल। दू-तीन साल स' ओछौन ध' लेलाह। सुनै छियैक जे अइ जन्म मे जकरा जतेक कष्ट होइ छै ओकरा अगिला जन्म में ओते सुख भेटै छै। से हुनका सैह भेल। कियो-कियो दबल मूहे पूर्व जन्मक पापक फल कहैत छन्हि।खैर जे बात होइक मुदा हुनक कष्ट देखल नहि जाइत छल। दर्द स' अहुरिया काटैत छलाह, सौंसे घर ओंघराइत छलाह।
 जेबार के नोत पड़ल ।एहन भोज आइ तक नहि  देखलहुँ। पेपछ पड़ि गेलै।मिठाई, दूध-दही के  धार बहि गेल। बर-बरना भोज, सर सोल्हकन,पौनी-पसारी उइघ नहि सकल । कूकुर कौआ तक अघा गेल ।
माछ-माउस के भोज सेहो गाम ल'क' भेल। कैकटा खस्सी कटलै, कोनो गिनती नहि। 
एकटा फंटुश दबले मूँहे अनगौँवा बूझि कान मे फ़ुसफ़ुसायल- " सबटा टोप-टहंकार बेकार अछि।  जखन जीबै छला त' एकोटा बेटा घुरिक' नहि ताक' एलनि। 'जिवता मे गूहा भत्ता; मुइला मे दूधा भत्ता ।' एक गिलास पानि  लै टिटियाइत रहैत छलाह, कियो घुरि क' ताक' बला नहि। हुनका स' नीक त' मंटू, बाप के सेवा मे नोकरी तक छोडि देलक मुदा एकोटा माछी के बाप के देह पर नहि बैस' देलकै ।"
ओइ फंटुश के बात स' मोन खिन्न भ' गेल ।  चोट्टे गाम पड़ेलहु। दरबज्जा पर एकांत मे चिंतन मे लागल छी -" की अही लै लोक हाय-हाय करैत अछि? सबहक गरदनि काटि संतान लेल जमा कर' मे लागल रहै अछि, मुदा सब व्यर्थ। माया-मोह में फसल जीव आन्हर होइछ। यैह थिक दुनिया। सबके संग अहिना होइछ।"  मोन कोनादन कर' लागल आ दुर्गा मंदिर दिस ध्यान कर' लेल विदा भ' गेलहुँ।                  

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