Thursday, July 24, 2014

दुःख (sorrow)

दुःख मेरा अभिन्न मित्र है। माँ के गर्भ से जो इसका साथ मिला तो फिर इस शरीर के साथ ही छूट पायेगा। हम क्यों नहीं इस अनन्य दोस्त का खुशी-खुशी स्वागत करें ? ऐसा दोस्त कहाँ मिलेगा जो सदैव परब्रह्म की याद दिलाता रहे। सुख में हम परमात्मा को भूल जाते हैं। दुःख का प्रत्येक क्षण हमेशा याद रखते हैं लेकिन दुखी मन से।नहीं, आइये सुख से इसको याद करने की आदत डालें । 
दुःख को अनुग्रह रूप में लेना, जीव के अपने ईस्ट देव के प्रति परम भक्ति का प्रतीक है। अगर हम दुःख को हँसते हुए बिताते  हैं और परमात्मा की इक्षा/आशीर्वाद समझते हैं तो यह अपने ईस्ट देव के  प्रति मेरी असीम निष्ठा  को दर्शाता है, इसके विपरीत अगर दुःख से दखी हो जाते हैं तथा रोते  हुए/चिंतित भाव से समय व्यतीत करते हैं तो परमात्मा में निष्ठा का अभाव दर्शाता है। 
ईश्वर अपने परम भक्तों की अनन्य निष्ठा की जाँच के लिए अनेक परीक्षा लेते हैँ। रोग-व्याधि, आर्थिक शंकट एवं अन्य अनेक प्रकार के कष्टों को इसी रूप में ग्रहण करना चाहिए। कभी भी धैर्य नही खोएं । अनन्य भक्ति से अविचलित रहते हुए अच्छे दिनों की प्रतीक्षा करें। 
 

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