Sunday, July 20, 2014

जिन्दगी नजदीक से

प्रॉस्टेट के ऑपरेशन के क्रम में विभिन्न स्थानों पर जांच और चिकित्सकों से संपर्क का मौक़ा मिला। क्या है जिंदगी ? इसी शरीर पर हम इतना इतराते हैं जिसे ऑपरेशन टेबुल पर एक सामान्य बस्तु की तरह रख दिया जाता है और एनेस्थेशिया देकर एक निर्जीव के जैसा चीर-फाड़ किया जाता है। क्यों हम इस देह को इतना महत्व देते है ? इस शरीर के लिए क्या-क्या नहीं करते। माया-मोह में जीव क्या -क्या उल्टा-पुल्टा करता रहता है जिसका कोई मतलब नहीं होता। माया शरीर से सम्बंधित है। जब शरीर ही क्षणभंगुर, महत्वहीन है तो इससे सम्बंधित माया का क्या स्तित्व है। शरीर मेरा घर है, इस दृष्टि से इसका देखभाल करना चाहिए। भूकम्प,जल-प्रलय, अग्नि काण्ड आदि आकस्मिक आफत-विपत के समय घर से निकलता पड़ता है और अन्यत्र सुरक्षित स्थान की तलाश करनी पड़ती है। पुराने घर का मोह त्यागना सर्वथा श्रेयस्कर होता है और जान माल की रक्षा हो पाती है।    

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