Saturday, August 9, 2014

रक्षाबंधन

मिथिलाञ्चल मे भाय-बहीनक एकटा पावनि भ्रातृ-द्वितीया प्रसिद्ध अछि। रक्षाबन्धन दिन  बुज़ुर्ग अपना स' छोट के राखी  बान्हैत छलाह आ अहि मन्त्र के पाठ करैत छलाह -' येन बद्धो वलि राजा दानवेन्द्रो महाबलः, तान्त्वान् प्रतिबध्नामि रक्षेमाचलमाचल'. आन ठाम भाय-बहीन'क पावनिक रूप मे प्रख्यात अछि जाहि मे बहीन भाइक सुख-समृद्धिक कामना करैछ आ भाय ओकर रक्षाक संकल्प लैछ। आब  मिथिला मे सेहो अहि पावनि के भाय-बहीन मनाब' लगलीह अछि।
अनेको पौराणिक कथा रक्षा-बंधन मनाब' के उपलक्ष मे प्रचलित अछि। दैत्यराज बलि के पराक्रम स' भयभीत /अपमानित देवराज इन्द्र के रक्षा हेतु हुनक पत्नी शची भगवान विष्णु के शरण मे जाइत छथि। विष्णु शची के सूत स' बनल एकटा बलय (कंगना ) दैत छथिन्ह। शची ओहि रक्षा-सूत्र के इन्द्र के हाथ मे बान्हि दैत छथिन्ह। इंद्र विजयी होइत छथि।
एकटा अन्य उपाख्यान मे भगवान विष्णु द्वारा वामन भेष मे अपना गुरू द्वारा मना केलाक बादो दैत्यराज बलि ठकल जाइछ। विष्णु द्वारा वरदान प्राप्त करैछ जे ओ सदिखन बलिक सामने रहताह। बैकुंठ मे लक्ष्मी दुखी भ' गेली। दैत्यराज के हाथ मे राखी /रक्षा-सूत्र बान्हैत छथि आ ओकरा भाय बनबैत छथि। तत्पश्चात् ओकरा स' विष्णु के प्राप्त करैत छथि आ बैकुन्ठ ल' जाइत छथि।
शिशुपाल बध के समय कृष्ण के तर्जनी कटा जाइत छन्हि। द्रौपदी साड़ी फारिक' हुनका आंगुर मे बान्हैत छथि।भगवान चीरहरणक काल हुनक लाज बचा क' ऋण मुक्त होइत छथि।
अही प्रकारक अनेक कथा भेटैत अछि जखन पत्नी अपना पतिक रक्षाक हेतु शत्रु पक्ष के राखी पठेलन्हि आ शत्रु द्वारा पतिक अभयदान प्राप्त केलन्हि।
आधुनिक काल मे रक्षाबंधन वृहत् रूप मे मनाओल जा रहल अछि, मुदा जे बालिका बहीन बनती तिनका गर्भहि मे मारक प्रयास होइछ। जखन  बहीने नहि रहती त' फेर रक्षाबंधन कोना। भाय-बहीनक प्रेम नैसर्गिक होइछ। बहीन के भाय स' रुपैया-पैसा कथुक अपेक्षा नहि छन्हि। ओ मात्र प्रेम'क भुक्खल छथि। पत्नीक वश मे भाय, बहिन'क उपेक्षा क' सकैत छथि मुदा बहीनक प्रेम/स्नेह शास्वत रहैछ।
 
      

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