सारनाथ स' लौटलहुँ मुदा तरुण के मौसीक ओहिठाम नहीं गेलहुँ। हमर ग्रामीण नूनूजी राजघाट मे रहैत छथि, ओतहि चलि गेलहुँ । नूनूजी के भेट गेलाक उपरांत आनंदे-आनंद। मुदा एकटा बड़का गलती भ' गेल; तरुण के नहि खबरि क' सकलियैक जे हम राजघाट जा रहल छी आ राति मे नहि लौटब। ओहि समय मे मोबाईल के सुविधा नहि छलैक आ ने हमरा लग तरुण के मौसा-मौसीक नम्बर छल। देर राइत तक दूनू गोटे विभिन्न साधु-महात्मा सब स' सत्संग करैत रहलहुँ । फेर भोरे गंगा-स्नान क' क' काशी-विश्वनाथ के दर्शन केलहुँ आ पुनः अनेक मंदिर आ संत-समागम मे लागि गेलहुँ। ओही दिन करपात्रीजीक जन्मदिन छलनि । हुनका आश्रम में नंदना नन्द सरस्वतीजी स' बेसी देरी तक हम दूनू गोटे धर्म-चर्चा मे व्यस्त रहलहुँ। पुनः टाउन हॉल मे जन्म दिवश समारोह मे शामिल भेलहुँ । अहि क्रम मे साँझ भ' गेल । साँझखन नूनू जी अपना डेरा गेलाह आ हमहूँ तरुण के मौसीक आवास पहुँचलहुँ।
ओहि आवास पर पहुँचलाक बादक वर्णन कठिन अछि। पूरा परिवार हमरा घेरि क' ठाढ़ भ' गेल आ अजीब प्रकार स' देखैत रहल। तरुण के मसियौत भाय अपन मोनक भरास निकालि देलक- ' हम बुझैत छलहुँ जे ई साधु संत के चक्कर मे हेता। हमारा सबके चैन छीनि लेलाह। एखन हमर डेरा खाली करू।' अवाञ्छित पाहुन के देखितहि ओ पहिले दिन आक्रोषित भ' गेल छल होयत आ अपना माय आ पत्नी लग व्यक्त केने होयत, जे हमरा अज्ञात छल । आब मौक़ा भेटला संतां भभाक' बाहर निकलि गेलैक।
हम जेना पाहिले स' नियार केने होइ तहिना विना कोनो सफाई देने पांच मिनट मे सामान ल'क' बाहर निकललहुँ। आब तरुण आ ओकर मौसी आग्रह कर' लगलथि । मुदा हम नहि मानलियन्हि। ओहो सब अंदर अंदर खुशी मनबैत दुराग्रह नहि केलथि। मजबूरी मे तरुण के सेहो विदा होम' पड़लैक। असहनीय गर्मी मे राति भरि मुगलसराय मे मच्छर कटाक' भोर मे डीलक्स-एक्सप्रेश पकड़ि लौटलहुँ। काशीक ओ यात्रा जीवन भरि स्मरण रहत। काशीक पहिल यात्रा- विश्वनाथ मंदिर मे पंडा सबहक व्यवहार- सारनाथ भ्रमण आ ठक-गाइड स' भेट - नाव स' घाट दर्शन- करपात्रीजीक आश्रम मे नंदनानन्द सरस्वती जीक संग सत्संग- आ सबस'प्रमुख तरुणक मसिऔतक अवाञ्छित पाहुन संग स्वाभाविक व्यवहार।
ओहि आवास पर पहुँचलाक बादक वर्णन कठिन अछि। पूरा परिवार हमरा घेरि क' ठाढ़ भ' गेल आ अजीब प्रकार स' देखैत रहल। तरुण के मसियौत भाय अपन मोनक भरास निकालि देलक- ' हम बुझैत छलहुँ जे ई साधु संत के चक्कर मे हेता। हमारा सबके चैन छीनि लेलाह। एखन हमर डेरा खाली करू।' अवाञ्छित पाहुन के देखितहि ओ पहिले दिन आक्रोषित भ' गेल छल होयत आ अपना माय आ पत्नी लग व्यक्त केने होयत, जे हमरा अज्ञात छल । आब मौक़ा भेटला संतां भभाक' बाहर निकलि गेलैक।
हम जेना पाहिले स' नियार केने होइ तहिना विना कोनो सफाई देने पांच मिनट मे सामान ल'क' बाहर निकललहुँ। आब तरुण आ ओकर मौसी आग्रह कर' लगलथि । मुदा हम नहि मानलियन्हि। ओहो सब अंदर अंदर खुशी मनबैत दुराग्रह नहि केलथि। मजबूरी मे तरुण के सेहो विदा होम' पड़लैक। असहनीय गर्मी मे राति भरि मुगलसराय मे मच्छर कटाक' भोर मे डीलक्स-एक्सप्रेश पकड़ि लौटलहुँ। काशीक ओ यात्रा जीवन भरि स्मरण रहत। काशीक पहिल यात्रा- विश्वनाथ मंदिर मे पंडा सबहक व्यवहार- सारनाथ भ्रमण आ ठक-गाइड स' भेट - नाव स' घाट दर्शन- करपात्रीजीक आश्रम मे नंदनानन्द सरस्वती जीक संग सत्संग- आ सबस'प्रमुख तरुणक मसिऔतक अवाञ्छित पाहुन संग स्वाभाविक व्यवहार।
No comments:
Post a Comment