Friday, April 9, 2010

सियार


आज मैं कुछ सियार प्रवृत्ति के लोगों का वर्णन करना चाहता हूँ। ऐसे लोग सर्वत्र मिल जायेंगे। वे अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए दूसरों का प्राण तक हरण कर सकते हैं। छोटी मोटी हानि पहुंचाना तो इनके लिए रोजमर्रा की बात है। ये सुबह से शाम तक इसी फ़िराक में रहते हैं कि दूसरे का छिद्र मिले। लेकिन इनके स्वयं के दामन में छिद्र ही छिद्र है। एक शिकारी एक सूअर के पीछे दौड़ा। कुछ दूर भागने के बाद सूअर ने  मुड़कर शिकारी की तरफ दौड़कर आक्रमण किय़ा । शिकारी का तीर सूअर को लगा और सूअर का दांत शिकारी के पेट में घुसा। सूअर एक तरफ गिरा और शिकारी दूसरी तरफ. दोंनो मर गए। शिकारी का तीर कुछ दूर पर गिरा। कुछ देर में एक सियार कहीं से घूमता हुआ आया। ऐसे लोगों की घ्राण शक्ति बहुत तीव्र  होती है। सूंघ कर कहीं भी तुरत पहुँच जाते हैं। लेकिन तीसरी शक्ति किसी को छोडती नहीं। उसका न्याय निष्पक्ष होता है। वहां किसी की पैरवी नहीं चलती। उसके लिए छोटे-बड़े सब सामान हैं। उसकी दी हुई हवा, उसका पानी, उसकी धरती, आग, आकाश, वृक्ष, नदी, समुद्र सबको सामान रूप से प्राप्त होते हैं। सियार ने देखा कि यात्रा बनी हुई है। एक ही जगह पर महीनो का भोजन है। आज धनुष के चमड़े के धागे से ही काम चला लेते हैं। चमड़े के धागे को दांत से काटते ही धनुष का सिरा उसके पेट में लगा और उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। देखिये नियति का कमाल। महीनो का भोजन बिखरा पड़ा है, लेकिन खाने वाला कोई नहीं है। नियति किसी को भी हित-अहित का माध्यम बना सकती है, लेकिन स्वयं माध्यम बनने का प्रयास मत करो। प्रारब्ध से जो कुछ मिला है उसको इश्वर की कृपा समझ संतोष से रहो। सद्वृत्ति से पुरुषार्थ करो। फल की चिंता मत करो। केवल कर्त्तव्य करो। फल अपने आप मिल जायेगा। कोई दूसरा नहीं है। शिव भाव से सबकी सेवा करो। दया नहीं, केवल सेवा-पूजा। आराध्य की तरह केवल पूजा। दया का अधिकार केवल इश्वर को है। ॐ श्री रामनार्पणमस्तु। 

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