Tuesday, April 27, 2010

धधहारा गाछी.((1)

लिखने बैठा हूँ तो बचपन की स्मृतियाँ एक एक कर नजर के सामने से गुजरने लगी हैंगाँव से एक किलोमीटर उत्तर में धधहारा गाछी है जहाँ बचपन में हमलोग गाय- भैंस चराने जाया करते थेलगातार डेढ़ किलोमीटर गाछी पुराने जमाने के जंगल के वारे में चर्चा को सार्थक करती  हैगाछी के बीचो-बीच सड़क दक्षिण में मधुबनी से आती है और उत्तर में खजौली जाती हैपहले केवल जंगल ही जंगल था लेकिन अब कर्मौली के गोप लोगों ने  जाकर एक गांव बसा लिया है, जिसका नाम विजयनगर रखा गया हैगांव का नाम विजय गोप के नाम पर हैबचपन में हमलोग विजय जी के घर में खूब धमा-चौकरी किया करते थेउनका लड़का सीताराम मेरा दोस्त थावे लोग भैंस पालते थे और दूध- दही का कारवार करते थेसीताराम की माँ हमलोगों को खूब दही, छाल्ही खिलाया करती थीउस समय में उन लोगों का घर मेरे घर के बगल में ही थाछुट्टियों में मजे ही मजे थेमैं, मालिक पंडित, तिलक ठाकुर, बैद्यनाथ राय, सीताराम; मालिक के दरवाजे पर दोपहर में जमा होता थाउसके बाद तास का दौर चलता थाशाम तक तास चलता रहता थाउसके बाद हमलोग गेंद खेलने पाठशाला पर जाते थेकभी कभी तिलक ठाकुर के आंगन में हमलोग जुटते थेउसके आँगन में जिलेबी का पेड़ थाहमलोग खूब जिलेबी खाते थेबांस के आखिरी छोर पर छोटा सा करची बाँध कर लग्गी बनाया जाता थालग्गी ऊँचे पेड़ से जिलेबी तोड़ने का कारगर अस्त्र थाउसी के आंगन में होम वर्क करते थेउस समय में सेसनल  का प्रचलन थाक्लास में जो पढ़ाया जाता था उसको घर से लिखकर लाना पड़ता था और उसका अंक वार्षिक परीक्षा में जोड़ा जाता थाबचपन में यह  बहुत कष्टकारक प्रतीत होता था।  लेकिन जब यही चीज बाद में उच्च वर्गों  में करना पड़ा तब उसका महत्व समझ में आयासैद्धांतिक पढ़ाई के साथ व्यावहारिक पढ़ाई का महत्व जीवन पर्यंत याद रहेगाअस्तु.........२७.०४.१० 

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