मनुखताके बिसरि, धोखा
जगतके क्यो द' सकै अछि ।
मुदा अतिशय नीच रहितो
स्वयंके नै ठकि सकै अछि ।।
दुष्ट धोखेबाज बदतर
हिंस्र पशुओसँ रहै अछि ।
हिंस्रसँ क्षति देह, धोखेबाज
क्षति मोनो करै अछि ।।
एते मिनती ईशसँ जे,
जदपि कतबो दैन्य आबय ।
भले प्राणोपर हो खतरा,
मोनमे धोखा ने आबय ।।
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