ईशसँ अछि कामना
हमरासँ होमय हिते अनकर ।
स्वप्नमे सेहो ने कहियो
करी सोचल अहित अनकर ।।
लोकके कल्याणमे हम
नित्यप्रति लागल रही ।
प्रचारक नै काज, गुप्ते-
लोकहित साधल करी ।।
शूक्ष्मता के किमपि नै
परतर करत स्थूलता ।
पड़य भारी बाह्यता पर
ऋषिगणक अति शूक्ष्मता ।।
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