Thursday, September 29, 2016

आजुक पीढी


सोमना भागिक’ कलकत्ता चलि गेलै,
बात किछुओ नै छलैक
पढ़ाई-लिखाई छोड़िक' चेंगरा सबहक संग
लफासोटिंग मे लागल रहै छलै
खेतो मे काज करितै, सेहो नै
सूति-ऊठिक’ निकलै त’
एक्के बेर दुपहर मे आबै
फेर ख़ाक’ निकलै त’
दस बजे राइत मे आबै I
चारू दिस स’ उपरागे-उपराग,
आइ त’ आर अतत्त: क’ देलकै
तीन टा चेंगरा निशाभाग राइत मे
ओइ टो’ल मे पकड़ा गेलै
चोर-चोर हल्ला भेलै
दू टा भागि गेलै
सोमना के एकटा रूम मे
बंद क’ क’ रखने छलै
राइते मे पता चललै त’
बाप दौड़ल गेलै
लोक सबके हाथ-पैर पकड़ि क’
कहुना क’ छोड़ेलकै
क्रोध मे सबहक सामने
एक चमेटा कसिक’ देलकै I
पाँच बेटी पर स’
कतेक कौबला-पाती स’
सोमनाक जन्म भेल छलैक
कतेक दुलार स’
छौंड़ा के पोसने छलैक
आइ तक कहियो
जोड़ स’ ललकारनो नै छलै I
चुप-चाप घर मे कतबो मारितै त’-
बर्दास्त क’ लैतै
मुदा सबहक सामने
बापक चमेटा तिलमिला देलकै
ओ रातिए मे कतौ पड़ा गेलै
चारू दिस कतबो ताकल गेलै
नै भेटलै,
भोरे स’ माय-बाप-
पेटकुनियाँ देने छै I
कैक बरखक बाद पता चललै,
बम्बई मे कियो देखलकै
एकटा पैघ होटल मे-
प्लेट साफ़ करै छलै
साँझ क’ सूट-बूट मे
टाई लगाक’
हाकिम-हुकुम जेकाँ
बजार घूम’ निकलै छलै I
गाम पर कोनो वस्तुक कमी नै छै
पोखरिया-पाटन खूब सुन्दर
कोठाक घर
बाप खूब सुभ्यस्त गृहस्थ
अन्न-पानि के कोनो कमी नै
जन-बनिहार सब खटै छै
टहल-टिकोरा मे सदिखन
लागल रहै छै,
आ अइठाम छौंड़ा
प्लेट धोइछ,
बक्खो जेकाँ खोभारी मे
जिनगी काटैछ I
बाप के पता लगलै त’
दौड़ि पड़लै
बम्बई जाक’ देखैत अछि
बेटा प्लेट साफ़ क’ रहल छै
ठोहि पारिक’ कान’ लागल
कतबो कहलकै गाम चल’ लेल
नै अयलैक I
ओकर बापक मीता
बम्बई मे रहैछ
पता चललैक त’
मीता स’ भेट कर’ गेल
होटल मालिक कहलकै-
‘सोमन कहलक अछि जे
पिता नहिं, भिलेजर आयल छथिन्ह’
तैयो भेट केलक त’ देखैछ
ई त’ हमर मीते छथि,
गाम गेलहुँ त’ सोमनाक
पिताक मीता सबटा
खिस्सा कहलाह I
वाह रे आजुक पीढ़ीक मानसिकता !
होटल मे बैराक/प्लेट सफाई-
के काज क’र’ मे सान,
मुदा बाप के बाप कह’-
मे शर्म होइछ,
किऐक त’ बाप किसान छैक
धोती-कुरता पहिरैछ
सूट-बूट, टाइ नै लगबैछ,
मोबाइल नै रखैछ I
वाह रे आजुक पीढी !

Tuesday, September 27, 2016

ठठपाल



नाम निज ‘ठठपाल’ ‘ठट्ठू’, सुनै अछि सबहक मुहें ओ,
क्रोध अतिशय होइत छै, के नाम रखलक एहन हम्मर I
आइ जग मे घूमिक’, सबस’ जे बढियाँ नाम हे’तै,
सैह अपना लेल चुनबै, नाम हे’तै वैह हम्मर II

बढ़ल आगू त’ देखै अछि- घास एक सुन्नरि कटै छै I
ल’ग जाक’ पुछलकै त’, नाम लछमिनियाँ कहै छै II
मूँह ताकै- ‘ नाम लछमी, मुदा घसछिलनी करै छै !’,
कहै छै- ‘ जे रहै लीखल, नाम मे किछु ने रहै छै’ II

बढल आगाँ त’ देखल जे, युवक हरबाही करै छै I
पुछै छै- ‘की नाम?’ त’, ‘धनपाल’-हम, उत्तर भेटै छै II
मूँह ताकै ओकर- ‘ छै धनपाल, हरबाही करै छै ?’
कहै छै- ‘ जे रहै लीखल, नाम मे किछु ने रहै छै’ II

बढ़ल थोड़बे दूर त’, अर्थी-चढ़ल मुर्दा भेटै छै I
-‘नाम हिनकर की छलनि?’ -‘अमर’, चट उत्तर भेटै छै II
मूँह ताकय, पुछै सबस’- ‘अमर की से’हो मरै छै?’
भेटल उत्तर- ‘सब मरै छै, नाम मे किछु ने रहै छै’ II

चित्त थिर कय सोचै छै, आ बा’ट ओ घ’रक धरै छै-
-‘कर्म लीखल होइछ निश्चय, नाम मे किछु ने रहै छै’ II
-‘घास लछमिनियाँ कटै अछि, ह’र मे धनपाल अछि I
चढ़ल अर्थी अमर देखल, नाम निक ठठपाल अछि' II

Tuesday, September 13, 2016

बाल-नीलू


माय के चिंतन जेना-
गर्भस्थ-शिशु तहिना बनै अछि I
चित्र मायक कक्ष मे सब,
श्रेष्ठ बालक के रखै अछि II

गर्भ-नीलू, माय आंगन-
मे, शिशुक क्रीड़ा देखै छथि,
-‘हमर शिशु अहिना पड़ैतै,
पकडितौं हम’- ओ सोचै छथि II

कथा अभिमन्यूक प्रचलित-
‘गर्भ स’ रण नीति जानथि ’ I
बाल-नीलू, मातृ-सोचें,
शैशवहिं स’ तेज भागथि II

रहथि नीलू आठ मासक  
घ’र स’ चुपके पड़ाइ छथि I
गे’ट मे तालाक रहितो,
फाँक स’ ओ भागि जाइ छथि II

रहै छी राँचीक हरमू-
कॉलनी, अति मो’न मोहय I
छोट-छिन बाजार, इस्कूल,
फिल्ड, रस्ता, पार्क सोहय II

अनुज सेहो संग मे छथि,
काज किछु-किछु ओ सिखै छथि I
समय के बरबाद बेसी-
काल, गप-सप मे करै छथि II

बाल-नीलू गेट स’
बाहर निकलि गेल एकदिन I
माय भानस-भात मे छलि,
बुझि ने सकली ताइदिनII

थोड़े कालक बाद, आहट-
शिशु के नै सुनि, दौड़ पडली I
भागिक’ मैदान जैतहिं,
फिल्ड मे निज शिशु के देखली II

जान मे ऐल जान, कोरा-
मे उठा शिशु के अनै छथि I
एलहुँ संध्याकाल, सबटा-
बात हमारा स’ कहै छथि II

पकड़लहुँ माथा, आ ईश्वर
के सतत बंदन करै छी I
करू रक्षा देव सबदिन,
अहीं सब शंकट हरै छी II
    


   

Saturday, September 3, 2016

बस-पड़ाव


बात किछु दिन पूर्व के थिक,
मित्र हम्मर छला आयल ।
विदा होइ छथि गाम, घटना-
हुनक संग भेल, याद आयल ।।
रात्रि के नौ बजे, पटना-
बस-पड़ावक लेल गेलथि ।
लौटिक' दस बजे पुनि मम-
गेह के घंटी बजेलथि ।।
लौटिक' क्यै आबि गेला
भेल चिंता बात की छै ।
ब'स छुटलनि वा कि कोनो-
मामला किछु आन भेल छै ।।
पुछलियनि-' की भेल?' उत्तर-
सूनि क' मोन खिन्न भए गेल ।
हाल 'पटना बस पड़ावक' आ-
'प्रशासनक', याद पड़ि गेल ।।
-" गेलहुँ हम स्टैंड जखने
दौड़ि एकटा लोक आयल,
पकड़ि हम्मर बैग घिचिक'
अपन बस के ल'ग लायल ।।
ब'स झड़खण्डी छलै ओ-
झिकातीरी करय लागल ।
पाछु मे लखि नीक बस एक-
ओकर हम नहि बात मानल ।।
देलक धक्का जोड़ स' आ
भूमि पर ओ खसा देलक ।
गारि पढ़लक खूब, पर-
मम बैग के नहि छीनि पेलक ।।
मोन अतिशय खिन्न भए गेल
क्रोध के हम पीबि गेलहुँ ।
दौड़ि एलहुँ सड़क पर,
फ़ुटपाथ पर जा बैसि गेलहुँ ।।
ए'कटा गतिशील चेकिंग-
भान के आबैत लखलहुँ ।
हाथ द' क' रोकि, घटना-
घटल, आद्योपांत कहलहुँ ।।
संग हमरा लेलक ओ सब
पड़ावक अंदर ल' जाइ अछि ।
पुलिस के देखिते देरी ओ-
लहंगड़ा झट स' पड़ाइ अछि ।।
चिन्हा देलियै लहंगड़ा के,
दौड़िक' ओकरा पकड़लक ।
लात-जुत्ता देलक, भू पर-
पटकि क' अतिशय रगड़लक ।।
ओकर मालिक आबि, हमरा-
स' बहुत माफी मंगै अछि-
'अहूँ खुब जुतिआउ एकरा
क'ल जोड़ि हमरा कहै अछि' ।।
बढ़ि चलल गतिशील चेकिंग,
संग हमरा लय लेलक ओ ।
'आइ रोकू अपन यतरा',
चौक पर बैसा देलक ओ ।।
दोसर टेम्पू के पकड़ि क'
लौटिक' हम आबि गेलहुँ ।
काल्हि पुनि ट्रेने स' जायब,
बस ने पकड़ब, कान धेलहुँ ।।"
सुनि हुनक खिस्सा, बिहारक-
हाल पर दुख भ' रहल अछि ।
ईश रक्षा करथु राज्यक,
गर्त मे ई जा रहल अछि ।।
करै छी अनुरोध सबस',
बस चढ़क बेर ख्याल राखब ।
लुहेड़ा, लुच्चा आ बहसी स'-
ने उलझी, ध्यान राखब ।।

चोर


कृष्णपुर मे फ्लैट दस-
तल्लाक सुन्दर अछि बनल I
मित्र हम्मर छथि ततय-
सपरिवारें रहि रहल II
एक बेर बेटीके ब्याहक-
लेल ओ निज गाम गेलथि I
ठीक स’ सब घ’र, खिड़की-
आर फाटक के लगेलथि II
ब्याह के बीचे मे ऑफिस-
काज स’ पटना अबै छथि I
ख़तम भेलनि काज ऑफिस-
के, त’ डेरा पर चलै छथि II
द’स तल्ला फ्लैट मे ओ-
सबस’ ऊपर मे रहै छथि I
बालकोनी स’ शहर के-
दर्शनक आनंद लै छथि II
जाइत देरी ओ देखल जे-
गेट पर एक ट्रक लदल अछि I
घरेलू सामान सब, नीचा-
स’ ऊपर तक भरल अछि II
हिनक सोझँहि फुजल ट्रक,
पर ई ने किछुओ बूझि सकला I
चिन्हरगर क्यो ने छलनि-
तयँ बात किछु नै पूछि सकला II
गेला ऊपर त’ देखल जे-
गे’ट हिनकर रहय फूजल I
गेला अन्दर त’ देखै छथि-
घ’र खाली, किछु ने सूझल II
खटखटेला सामने त’-
क्यो ने किछु उत्तर द’ सकलनि I
पड़ोसी स’ प्रेम नहिं-
रखवाक फल झट बूझि पड़लनि II
पड़ोसिया स’ रहू मिलिक’-
जत’ जे क्यो रहि रहल छी I
बे’र पड़ला पर सहायक-
वैह छथि, हम कहि रहल छी II

Thursday, September 1, 2016

शतं विहाय भोक्तव्यं


अरुण गिरि स’ सब उतरि-
अरुणाचलेश्वर धाम गेलहुँ I
टिकट झट स’ कटाओल आ- 
लाइन मे सब लागि गेलहुँ II
लाइन ततबा पैघ छै जे-
घाम सबके छुटि रहल अछि I
आश्रमक भोजन समय के-
याद क’ मोन टुटि रहल अछि II
विमलजी छल बाथरुम गेल,
निकलि सबके ढुढ़ि रहल अछि I
फोन केलक त’ कहलिऐ-
‘ रुकू, सब आबिए रहल अछि’ II
निकलवा मादे कहल त',
व्यवस्थापक देलनि उत्तर-
‘लाइन मे सब घुमू उलटा’
ओहो अछि अतिशय कठिनतर II
करै छी सब कियो छटपट,
मुदा रस्ता नै सुझै अछि I
समय भोजन केर भ’ गेल,
बात, पर क्यो नै बुझै अछि II
अंत मे अरुणाचलेश्वर,
बात सबटा बूझि गेलथिन्ह I
व्यवस्थापक एला दौड़ल,
गेट बीचक खोलि देलथिन्ह II
तुरत बाहर भेलहुँ सब क्यो,
जान मे पुनि जान आयल I
गेट स’ बाहर निकलिते,
रिक्त एक टेम्पू धरायल II
दौडिक’ सब कियो बैसल,
तुरत आश्रम पहुँचि गेलहुँ I
लाइन मे लगिते रहय सब,
हमहुँ सब झट लागि गेलहुँ II
भूख सबके रहय लागल
भोज्य पर सब टूटि गेलहुँ I
ग्रूप-भोजन आश्रमक अछि-
अतुल, सब आनंद लेलहुँ II
हँसल हे’ता गुरू-बाबा,
पड़ायल सब छोडि पूजा I
ह्रदय मे अरुणाचलेश्वर,
पेट-पूजन हुनक पूजा II