Wednesday, May 28, 2025

प्रारब्धक लिखल रुकि सकत नहि

राम सन पतिके अछैतो भेल सीताके हरण, पाँच पाण्डवके अछैतो द्रोपदिक चीरक हरण, चारि सुत दसरथक रहितो बिनु सुतक प्राणक तजन, रावणक सन शक्तिशाली रुकल नहि लंकादहन । अर्जुनक सन प्रतापी अभिमन्यु बध नहि रुकि सकल, रुकि सकत ककरोसँ नहि, प्रारब्धमे जे अछि लिखल ।।

No comments:

Post a Comment