स्वान बनल अछि शोभा महलक,
धेनु गलीमे भटकय ।
मॉलक शो-रुम जुत्ता, पुस्तक-
सड़कक शोभा बढबय ।।
दूधक हॉकर गली-कुचीमे,
मदिरा फ्रीजक शान ।
सन्तानक सुख दुर्लभ भ' गेल,
बाप भेल छथि आन ।।
कौआ दै अछि प्रवचन,
श्रोतामे छथि मानस हंस ।
हुकरथि पाँचाली देवकी,
गरजय दुर्योधन कंस ।।
पाखंडी ठक साधु रूपमे
ज्ञानक पीटय ढोल ।
असली संतक सम्मुख अबितहि,
फ़ूजि जाइत अछि पोल ।।
संत सुवेषक लेल नै,
अभिलाषा राखैछ ।
मुदा कुवेषो रूपमे
सम्माने पाबैछ ।।
गुरु पाबक वैकल्य जँ,
शिष्यक बहुत रहैछ ।
सद्शिष्यकलेल गुरु सहो
व्याकुल सतत रहैछ ।।
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