Wednesday, May 28, 2025

कलियुगक परिदृश्य

स्वान बनल अछि शोभा महलक, धेनु गलीमे भटकय । मॉलक शो-रुम जुत्ता, पुस्तक- सड़कक शोभा बढबय ।। दूधक हॉकर गली-कुचीमे, मदिरा फ्रीजक शान । सन्तानक सुख दुर्लभ भ' गेल, बाप भेल छथि आन ।। कौआ दै अछि प्रवचन, श्रोतामे छथि मानस हंस । हुकरथि पाँचाली देवकी, गरजय दुर्योधन कंस ।। पाखंडी ठक साधु रूपमे ज्ञानक पीटय ढोल । असली संतक सम्मुख अबितहि, फ़ूजि जाइत अछि पोल ।। संत सुवेषक लेल नै, अभिलाषा राखैछ । मुदा कुवेषो रूपमे सम्माने पाबैछ ।। गुरु पाबक वैकल्य जँ, शिष्यक बहुत रहैछ । सद्शिष्यकलेल गुरु सहो व्याकुल सतत रहैछ ।। ---------------------

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