Friday, May 23, 2025

दूसरी बार कनाडा यात्रा(2025)

मैंने फरवरी 2024 में कनाडा की पहली यात्रा की थी । सितंबर '24 तक वहाँ रहा था और दुर्गापूजा से कुछ पहले लौटा था । उस यात्रा का वर्णन टुकड़े-टुकड़े में कई जगहों पर किया था, जिसे कभी एक साथ बाद में लिखूँगा । लेकिन, दीपूजी(मझला पुत्र जो कनाडा में हैं) के विशेष आग्रह पर पुनः शीघ्र ही यात्रा का कार्यक्रम बना जबकि स्वास्थ्य कारणों से दीपूजी की माँ की इस बार यात्रा करने की इच्छा नहीं थी । दुर्गापूजा में गाँव गया तो काफी दिन गाँव में रह गया । मार्च के प्रारंभ में पटना आ गया । नीलूजी की माँ को खाँसी का प्रकोप बढ़ गया था, तीन माह से छूट ही नहीं रहा था । सोचा कि जगह परिवर्तन और पटना में बेहतर इलाज होने से शायद सर्दी ठीक हो जाय! सो हुआ भी । पटना आकर फिजीसियन और न्यूरोलौजिस्ट डॉक्टर उपाध्याय का इलाज चला और लगभग ठीक भी हो गई । इसी दौड़ान उनका दाँत भी बन गया । खाजपुर के ब्रज-डेंटल के दंतचिकित्सक डॉ0 तुषार और डॉ पूजा सिंह ने उनका आठ दाँत बनाया और प्रति दाँत दो हजार के हिसाब से सोलह हजार लिया । फीस और दाँत बनाई का खर्च कुल सोलह हजार लगा । खर्च थोड़ा अखरा जरूर लेकिन स्वास्थ्य प्रथम है । मैंने भी अपने दांतों का इलाज फ्री मे कराया । डॉक्टर प्रकाश चंद्र झा, मेरे साढ़ू के पुत्र हैं और अच्छे दाँत के चिकित्सक हैं । आइजीआइएमएस, पटना के पीछे 60' सड़क पर उनका क्लिनिक है । उन्हीं से मैंने दाँत का इलाज कराया । उन्होंने चाय भी पिलाई, खूब अच्छे से मेरी दांतों को भी देखा और फीस भी नहीं लगी । मात्र तीन सौ रुपये एक्सरे का पैसा मैंने उनके कंपाउंडर को जबरदस्ती दिया (हालाँकि एक्सरे का चार्ज छह सौ रुपये है) । सहुरिया में मेरी छोटी साली की लड़की की शादी 25 अप्रैल '25 को थी, अतः मुझे 22 अप्रैल की शाम को गाँव जाना पड़ा । नीलूजी भी दिल्ली से अपनी गाड़ी से पटना आ गए थे, अत: उन्हीं के साथ हमलोग भी गाँव आ गए । मैंने अपनी गाड़ी को पटना में ही छोड़ दिया । दिनांक 8 मई को अरविन्द और भिन्नू के लड़के का उपनयन संस्कार था, अतः एक पंथ दो काज बाली बात हो गई । सहुरिया और बेलाही के कार्यक्रम समाप्त होने पर नीलूजी दिल्ली चले गए, लेकिन हमलोग गाँव की समुचित व्यवस्था करने के कारण रुक गए । हमलोगों को पटना आने का कार्यक्रम 20 मई को था लेकिन पूजा भी हमलोगों के साथ ही आना चाहती थी, अतः उसीके हिसाब से 19 मई को ही हमलोग पटना आ गए । इस बार गाँव से पटना की यात्रा को अच्छा नहीं मानेंगे । भाड़े पर छह हजार मे एक गाड़ी ली गई । मौसम कुछ ठंढा हो गया था, अतः ए.सी. भी नहीं चलाया । फिर भी गाड़ी मालिक का लोभ काफी अधिक था । एक जगह रास्ता भूल गया था तो कुछ अधिक दूरी चलना पड़ा और पूजा को उतारना पड़ा था; उसका चार्ज भी वह चाहता था । लेकिन, एसी नहीं चलाने से हुई बचत को वह भूल गया था, जिसे याद दिलाने पर उसका मन कुछ शान्त हुआ । फिर भी अपने स्वभाववस उसको छह हजार एक सौ देकर विदा किया । पटना आकर जब अपनी गाड़ी को चलाया तो आसमान जमीन का अंतर अनुभव हुआ । मेरी गाड़ी बहुत ही आरामदेह है, उसकी गाड़ी बहुत ही काम चौड़ी थी और काफी कंजस्टेड थी ।

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