Sunday, January 28, 2024
अहंता आओर प्रेम
अहंता आ प्रेम एक्के-
वृक्ष के दू शाख होमय ।
प्रेम त्यागक लेल आतुर,
अहंता लेबाक सोचय ।।
अहंता लेबाक सोचय,
झुकाओल सबके करै अछि।
प्रेम तँ देबाक आकुल
सतत ओ नमले रहै अछि ।।
जे ने चिखलथि स्वाद प्रेमक
प्रेम रस की बूझि सकता ।
उर तकर रसहीन-उस्सर
जे सतत डूबल अहंता ।।
बसय सबमे एके ईश्वर,
प्रेम सबसँ करी सदिखन ।
बात ज्ञानक से की बुझता,
अहंमे डूबल जे सदिखन ।।
अहंमे डूबल जे सदिखन,
स्वार्थ पाछाँ रहय पागल ।
सुधा के की स्वाद बूझत,
गोबरक कीड़ा अभागल ।।
बात ई कहियो ने बिसरी,
ईश सबहक उर बसय ।
आन क्यो नहि छथि जगतमे,
एके ईश्वर सबमे बसय ।।
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Friday, January 26, 2024
सत्य-पथ आ मूल्य
जीवनक अदहा अबधि तँ
नींदमे बीतैछ सबहक ।
बँचल अदहा केर अदहा
खेलमे बीतैछ सबहक ।।
तकर अदहा अवधि के तँ
अध्ययनमे सब लगाबय ।
शेष बाँचल केर बेसी
नित्यकर्मेमे बिताबय ।।
गप्प-सप हँस्सी-ठहक्का
मनोरंजन सँ जे बाँचय ।
सैह अत्यल्पे अवधि तँ
धर्म-कर्मक लेल बाँचय ।।
कलह-निंदा-व्यसनमे जुनि
क्यो बिताबी ऐ समय के ।
धर्म-कर्मे-ज्ञान-उपकारे
बिताबी ऐ समय के ।।
कथू ने ल' क' अबै अछि
कथू ने ल' जा सकै अछि ।
त्याग-जश-आ कीर्ति जिनकर
सैह टा बाँचल रहै अछि ।।
मात्र स्वप्ने टा ने देखी
कठिन श्रम सँ सच बनाबी ।
स्वप्न के साकार क' क'
पार बेड़ा के लगाबी ।।
जड़ि ने बिसरी यैह दै अछि
खाध-जल आ जीवनक रस ।
शुष्क जीवन कोन काजक
जँ ने बाँचल जीवनक रस ।।
अत्यधिक श्रमसाध्य जिनगी
समारब अतिशय कठिन अछि ।
जीवनक रस भेटि गेनहुँ,
मनुखता भेटब कठिन अछि ।।
नीक संबंधी बनायब,
जगतमे अतिशय कठिन छै ।
मुदा संबंधक निमाहब
अहू सँ बेसी कठिन छै ।।
लोभ-भय के बसमे कथमपि
मूल्य कहियो ने गमाबी ।
सत्य-पथ निज आचरण के
जान दइयो क' बचाबी ।।
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Wednesday, January 24, 2024
शुक्रिया तै ईश के
शुक्रिया तै ईश के जे,
हवा मुफ्ते मे देलनि ।
आर एतबा ख्याल रखलनि,
जलक संग भोजन पठेलनि ।।
जलक संग भोजन पठेलनि,
व्यर्थ क्यो उपराग दै छनि ।
जे जरूरति होइछ हमरा,
भार सब हुनके रहै छनि ।।
जे रहय उपयुक्त जहिया,
सैह सबटा भेटल तहिया ।
रहू अति संतुष्ट सब क्यो,
करू ईशक शुक्रिया ।।
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Wednesday, January 17, 2024
निन्दक नियरे राखिए
दाग चेहरा पर देखाबय जखन दर्पण
लगा साबुन क्रीम चेहरा के मलै छी ।
दाग चेहरा स' हटायब लक्ष्य होमय
दोख दर्पण के मुदा कहियो ने दै छी ।।
जँ कियो इंगित करै छथि त्रूटि दिस तँ
होइ हुनक कृतज्ञ निज त्रुटिए भगाबी ।
क्रोध हुनका पर करब नै उचित होयत
करी स्वागत हुनक, मैत्री के बढ़ाबी ।।
बनाक' बढियाँ हुनक आँगन कुटी,
घोर निंदक लोक के नजदीक राखी ।
करथि निर्मल चित्त साबुन पानि बिन,
प्यार करियनु किमपि नै अपशब्द भाखी ।।
आन क्यो नै बुझि पड़त ऐ जगत भरिमे,
जँ अहाँ बुझबैक सबके सदृश अपनहि ।
माथपर रखने रहत सबलोक सदिखन,
बूझि जेतै ओ अहँक हृदयक भाव जखनहि ।।
Sunday, January 7, 2024
स्वर्गात् उच्चत्तरः पिता
जननि-जन्मस्थान के
परतर ने स्वर्गो क' सकै अछि ।
मुदा जननी मातृभू स'
सतत् ऊपरमे रहै अछि ।।
पिता सन्तति लेल सब किछु
त्याग लेल तत्पर रहै छथि ।
जदपि सुत निर्मोह, नै पित-
त्याग मोहक क' सकै छथि ।।
सकल नर दुनिया मे सबतरि
विजय के इच्छा करै अछि ।
मात्र सुत सँ पराजय के
पिता के इच्छा रहै अछि ।।
त्याग-इच्छा-मोह तैं, नहि-
पित जगह क्यो ल' सकै छथि ।
मात्र दुनिया टा सँ नहि, पित-
स्वर्ग स' ऊपर रहै छथि ।।
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