Tuesday, June 20, 2023
आत्मस्थताक आनंद
धाह कतबा सहथि रवि
के कहि सकत ?
स्वयं जरिक' प्रकाशित
जग के करत?
भ' सकय उपकार नहि
बिनु कष्ट सहने,
दीप तम भगबय
जखन अपने जरत ।।
प्रशव-पीड़ा माय केर
के बुझि सकत ?
गलाक' निज देह
सर्जन के करत?
भूखके पीड़ाक की
अनुभव हो तकरा?
स्वर्ण चम्मच मुखमे जे
जनमल रहत ।।
मरु-तृषित मृग देखितहि-
जल मुदित कतबा?
के विरहिणी प्रियमिलन सुख
नापि सकता?
प्रथम बरखा-बुंद टा
चाहैछ चातक,
के चकोरी-चन्द्रके उर
थाहि सकता??
जे ने चिखलक, स्वाद-
मिसरिक की कहत?
स्वादियो वरनब मिठासक
के सकत ?
आत्मस्थित सुखक हो
आनंद अनुपम,
हृदय सुस्थित भेनहि अनुभव
भ' सकत!!!
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Monday, June 19, 2023
पाकिटमार - 2
पाकिटमार- 2
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एक बेर पटना सँ दिल्ली जयबाक छल । पटना जंक्शनपर विक्रमशिला एक्सप्रेसमे चड़हैत काल ततेक धक्का-मुक्की भेल जे मोन चंग भ' गेल । पाकेटमारसब कृत्रिम भीड़ उत्पन्न करैत अछि जाहिसँ जेबी काट'मे सुविधा होइत छैक । गेटसँ भीतर गेला पर बेसी भीड़ नै बुझायल । रगड़ा-रगड़ीमे जोड़ लगाक' अन्दर गेलहुँ तँ किछु रुपैया खसल देखलिऐक । रुपैया उठाक' सबस' पूछ' लगलिऐक जे किनकर छन्हि मुदा कियो नै बजलाह ।
हम सोच' लगलहुँ जे लोको सब कतेक लापरवाह होइत छथि जे अपन रुपइयो-पैसोके सम्हारिक' राखल नै होइत छन्हि आ नाहकमे पाकिटमारसबके बदनाम करैत रहैत छथिन्ह । तखनहिं एकटा व्यक्ति कहैत छथि जे श्रीमान् कने अप्पन जेबी के सेहो चेक क' लेल जाय ।
हुनका बजिते हाथ जेबी पर गेल ।
अरे ई की! हमर जेबी नदारद अछि!
ई तँ हमरे रुपैया थिक आ हम अनका पूछैत छियैक!
पाकिटमार जेबी तँ काटि लेने छल मुदा हड़बड़ीमे रुपैया नीचामे खसि पड़ल छलैक ।
जानमे जान आयल । रुपैया तँ कमसँ कम भेटि गेल! जेबी तँ फेरो सिया लेल जेतैक!!
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द्रष्टा बनि जीबी ऐ जगमे
जगमे जे क्यो जन्म लैत अछि,
एक दिन होयत बूढ़ अबस्से ।
देह मनुक्खक व्याधिक मंदिर,
एक दिन होयत मृत्यु अबस्से ।।
एक दिन होयत मृत्यु अबस्से,
भले नृपति वा रंक रहय क्यो ।
जनितो ऐ सत्यक रहस्य, नै-
धरती पर स्वीकार करय क्यो ।।
दुनियाँ अहिना चलत निरन्तर,
अजर-अमर क्यो नहि ऐ जगमे ।
आयब-जायब लगले रहतै,
द्रष्टा बनि जीबी ऐ जगमे ।।
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Tuesday, June 6, 2023
आचार
आचारक शिक्षण बिना,
कदाचार जनमैछ ।
बौद्धिकता यद्यपि बढ़य,
अहंकार बढ़बैछ ।।
अहंकार बढ़बैछ,
सत्य स्नेहक हो शिक्षण ।
त्याग तपस्या सदाचार
के होय प्रशिक्षण ।।
आदर श्रेष्ठक स्नेह छोटसँ,
नीक बेजाय विचार ।
नैतिकता के पाठ पढ़ाबी,
संस्कृत हो आचार ।।
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