Kamalji

Wednesday, May 28, 2025
मोह तजू
"मोह तजू अपनेकलेल नै,
व्याकुल कियो रहैछ ।
कठिहारीसँ आबितहि,
स्नान तिलांजलि दैछ ।।
मुइला बाद अहाँके लखितहि,
परिजन-पुरजन तुरत परायत ।
अहाँके देखब कियो ने चाहत,
तन्त्र-मन्त्र क' तुरत भगायत ।।"
कलियुगक परिदृश्य
स्वान बनल अछि शोभा महलक,
धेनु गलीमे भटकय ।
मॉलक शो-रुम जुत्ता, पुस्तक-
सड़कक शोभा बढबय ।।
दूधक हॉकर गली-कुचीमे,
मदिरा फ्रीजक शान ।
सन्तानक सुख दुर्लभ भ' गेल,
बाप भेल छथि आन ।।
कौआ दै अछि प्रवचन,
श्रोतामे छथि मानस हंस ।
हुकरथि पाँचाली देवकी,
गरजय दुर्योधन कंस ।।
पाखंडी ठक साधु रूपमे
ज्ञानक पीटय ढोल ।
असली संतक सम्मुख अबितहि,
फ़ूजि जाइत अछि पोल ।।
संत सुवेषक लेल नै,
अभिलाषा राखैछ ।
मुदा कुवेषो रूपमे
सम्माने पाबैछ ।।
गुरु पाबक वैकल्य जँ,
शिष्यक बहुत रहैछ ।
सद्शिष्यकलेल गुरु सहो
व्याकुल सतत रहैछ ।।
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प्रारब्धक लिखल रुकि सकत नहि
राम सन पतिके अछैतो
भेल सीताके हरण,
पाँच पाण्डवके अछैतो
द्रोपदिक चीरक हरण,
चारि सुत दसरथक रहितो
बिनु सुतक प्राणक तजन,
रावणक सन शक्तिशाली
रुकल नहि लंकादहन ।
अर्जुनक सन प्रतापी
अभिमन्यु बध नहि रुकि सकल,
रुकि सकत ककरोसँ नहि,
प्रारब्धमे जे अछि लिखल ।।
Friday, May 23, 2025
दूसरी बार कनाडा यात्रा(2025)
मैंने फरवरी 2024 में कनाडा की पहली यात्रा की थी । सितंबर '24 तक वहाँ रहा था और दुर्गापूजा से कुछ पहले लौटा था । उस यात्रा का वर्णन टुकड़े-टुकड़े में कई जगहों पर किया था, जिसे कभी एक साथ बाद में लिखूँगा । लेकिन, दीपूजी(मझला पुत्र जो कनाडा में हैं) के विशेष आग्रह पर पुनः शीघ्र ही यात्रा का कार्यक्रम बना जबकि स्वास्थ्य कारणों से दीपूजी की माँ की इस बार यात्रा करने की इच्छा नहीं थी । दुर्गापूजा में गाँव गया तो काफी दिन गाँव में रह गया । मार्च के प्रारंभ में पटना आ गया । नीलूजी की माँ को खाँसी का प्रकोप बढ़ गया था, तीन माह से छूट ही नहीं रहा था । सोचा कि जगह परिवर्तन और पटना में बेहतर इलाज होने से शायद सर्दी ठीक हो जाय! सो हुआ भी । पटना आकर फिजीसियन और न्यूरोलौजिस्ट डॉक्टर उपाध्याय का इलाज चला और लगभग ठीक भी हो गई । इसी दौड़ान उनका दाँत भी बन गया । खाजपुर के ब्रज-डेंटल के दंतचिकित्सक डॉ0 तुषार और डॉ पूजा सिंह ने उनका आठ दाँत बनाया और प्रति दाँत दो हजार के हिसाब से सोलह हजार लिया । फीस और दाँत बनाई का खर्च कुल सोलह हजार लगा । खर्च थोड़ा अखरा जरूर लेकिन स्वास्थ्य प्रथम है । मैंने भी अपने दांतों का इलाज फ्री मे कराया । डॉक्टर प्रकाश चंद्र झा, मेरे साढ़ू के पुत्र हैं और अच्छे दाँत के चिकित्सक हैं । आइजीआइएमएस, पटना के पीछे 60' सड़क पर उनका क्लिनिक है । उन्हीं से मैंने दाँत का इलाज कराया । उन्होंने चाय भी पिलाई, खूब अच्छे से मेरी दांतों को भी देखा और फीस भी नहीं लगी । मात्र तीन सौ रुपये एक्सरे का पैसा मैंने उनके कंपाउंडर को जबरदस्ती दिया (हालाँकि एक्सरे का चार्ज छह सौ रुपये है) ।
सहुरिया में मेरी छोटी साली की लड़की की शादी 25 अप्रैल '25 को थी, अतः मुझे 22 अप्रैल की शाम को गाँव जाना पड़ा । नीलूजी भी दिल्ली से अपनी गाड़ी से पटना आ गए थे, अत: उन्हीं के साथ हमलोग भी गाँव आ गए । मैंने अपनी गाड़ी को पटना में ही छोड़ दिया । दिनांक 8 मई को अरविन्द और भिन्नू के लड़के का उपनयन संस्कार था, अतः एक पंथ दो काज बाली बात हो गई । सहुरिया और बेलाही के कार्यक्रम समाप्त होने पर नीलूजी दिल्ली चले गए, लेकिन हमलोग गाँव की समुचित व्यवस्था करने के कारण रुक गए । हमलोगों को पटना आने का कार्यक्रम 20 मई को था लेकिन पूजा भी हमलोगों के साथ ही आना चाहती थी, अतः उसीके हिसाब से 19 मई को ही हमलोग पटना आ गए । इस बार गाँव से पटना की यात्रा को अच्छा नहीं मानेंगे । भाड़े पर छह हजार मे एक गाड़ी ली गई । मौसम कुछ ठंढा हो गया था, अतः ए.सी. भी नहीं चलाया । फिर भी गाड़ी मालिक का लोभ काफी अधिक था । एक जगह रास्ता भूल गया था तो कुछ अधिक दूरी चलना पड़ा और पूजा को उतारना पड़ा था; उसका चार्ज भी वह चाहता था । लेकिन, एसी नहीं चलाने से हुई बचत को वह भूल गया था, जिसे याद दिलाने पर उसका मन कुछ शान्त हुआ । फिर भी अपने स्वभाववस उसको छह हजार एक सौ देकर विदा किया । पटना आकर जब अपनी गाड़ी को चलाया तो आसमान जमीन का अंतर अनुभव हुआ । मेरी गाड़ी बहुत ही आरामदेह है, उसकी गाड़ी बहुत ही काम चौड़ी थी और काफी कंजस्टेड थी ।
भ्रातृदिवसक बधाइ
"एकहि मायक कोखि, दुःख-
सुख, पालन एकहि संग ।
आब किअए दूनू भ्रातामे,
टोका-चाली बन्द!!
तजू स्वार्थ पहिले सम हरदम,
करू प्रेम व्यवहार ।
नहि भेटैछ सहोदर, यद्यपि
जीत लिय' संसार ।।"
- ----भ्रातृदिवसक हार्दिक बधाइ!!!!💐💐💐💐
Monday, April 14, 2025
दादाजी के संस्मरण(m) :-
बात उन दिनों की है जब मैं चौथा वर्ग में पढ़ता था । मैं एक रोज शाम के वक्त घर के सामने के तालाब में घाट पर हाथ-मुँह धो रहा था । घाट पर काफी अंधेरा था । अंधेरे में देखता हूँ कि कोई काला पाँच इंच का जीव घाट पर है । मैं एक सेकंड के लिए घबरा गया । लेकिन वह हिल-डुल नहीं रहा था । धीरे-धीरे नजदीक जाकर देखने पर पता चला कि यह एक पर्स है । मैंने पर्स को उठाकर अपने घर आ गया । किवाड़ बंद कर पर्स को खोलकर देखा तो नोटों से भरा पाया । चौथा वर्ग का अकिंचन छात्र एक साथ इतने रुपये को देखकर अचंभित हो गया । कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ । लालटेन जलाकर देखा तो शायद कहीं एक नाम नजर आया- 'आशेश्वर झा' । अब ईश्वर की प्रेरणा कहिए कि बिना सेकेंड की देरी किए दरबाजे पर दौड़ता हुआ गया । वहाँ पर घूर(कूड़ा-कचरा का ढेर लगाकर सुलगती आग) के पास पूरे टोले के लोग बैठे हुए आग ताप रहे थे । मेरे पिताजी स्व0 कामेश्वर झा, रामचन्द्र काका, बड़का बाबा, छोटका बाबा, राजेन्द्र काका, नथुनी भैया, गोकुल भैया, उग्रेश भैया.. आदि दस-पंद्रह लोग थे । मैंने सीधे आशे काका के हाथ में वह पर्स देते हुए कहा कि आपका ही है, न ? वे बहुत खुश हुए और अनेक आशीष देते हुए मुझे पुरस्कार देने के बारे मे बोलने लगे ।
वहाँ बैठे हुए सभी लोग मेरी प्रशंसा करने लगे कि एक नौ साल का लड़का इतना त्यागी हो, घोर आश्चर्य की बात है । मैं चुपचाप आँगन आकर पढ़ाई में लग गया । पिताजी साधारण किसान थे और हमेशा आर्थिक तंगी में रहते थे । उन्हें काफी दु:ख हुआ कि ईश्वर की कृपा से रास्ते में पाया हुआ बहुत सारा पैसा व्यर्थ में लौटा दिया गया । खाना खाने के समय उन्होंने अपना आक्रोश प्रकट कर ही दिया- " आप बुड़बक ही रह गए ! पाया हुआ पैसा कौन लौटाता है? आप चोरी थोड़े ही किए थे "। मैं चुपचाप सुनकर उठ गया । सिर्फ इतना कहा कि दूसरे का पैसा ढेला ही है । नथुनी भैया बहुत कंजूस थे । सूद पर पैसा लगाते थे । एक-एक पैसा के लिए मरते थे । सुबह में मेरे माथे पर हाथ रखकर आशीष देते हुए बोले कि आपके जैसा गाँव मे कोई नहीं है, एक दिन आप बहुत नाम कमाइएगा ।
आज जब उस घटना को सोचता हूँ तो आश्चर्य करता हूँ कि पूर्व जन्म के सुकृत और ईश्वर की प्रेरणा से ही सब कुछ हुआ, नहीं तो चौथा में अभाव के बीच पल रहा बालक कैसे इतना त्यागी हो सकता है ! जरूर मुझ पर ईश्वर की असीम कृपा थी जो बचपन से ही टेस्ट ले रही थी । नहीं तो ऐसा कैसे संभव होता कि गाँव के बड़े लोगों के पुत्र मुझसे पढ़ाई में बहुत पीछे रहते थे और मैं अनाथ(जब चार साल का था तो माँ मर गई थी, पिताजी निरक्षर थे जो अपना हस्ताक्षर भी नहीं कर सकते थे) जिसको भोजन के भी लाले थे, गाँव का पहला इंजीनियर बन सका ।
शिक्षा :- 'चाइल्ड इज द फादर ऑफ द मैन" । " जे नूनू से गर्भहि नूनू" ।" मॉर्निंग शोज द डे" ।
दादाजी के संस्मरण(l) :-
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साल 1917मे अमेरिका यात्रा मे भेल एकटा अपन अनुभव अहाँ सबहक संग शेयर कर' चाहै छी ।
हमसब ह्यूस्टन शहर में एकटा होटल मे अँटकल छलहुँ । भोरखन मॉर्निंग वाक मे एकटा बगले के सड़क पर टहलि रहल छलहुँ । हमरा मोबाइल मे टावर नै छलैक । तैयो घंटी बाज' लागल ।
हम कॉल रिसीव केलहुँ-" हेलो ! "
दोसर दिस स' जवाब आयल-" ह्यूस्टन पुलिस स्पीकिंग । "
हम डेराक' फोन के स्विच ऑफ केलहुँ आ जल्दी-जल्दी होटल एलहुँ । अपना बालक के सब बात कहलियन्हि ।
ओ चेक क' क' कहै छथि- "पापाजी, अहीं स' इमरजेंसी कॉल भेल छल । "
--" हमरा मोबाइल मे टावर नै छैक तखन कोना कॉल भेलैक । "
--" ऑफ लाइन मे सेहो इमरजेंसी कॉल होइ छै । "
मोबाइल सब मे ' इमरजेंसी कॉल ओनली ' लीखल देखै छलिऐ, मुदा ई नै बूझल छल जे ई पुलिस के लागै छै ।
हम सोचै छलहुँ जे आफति-बिपति मे ऑफ़लाइन मे अपन लोक के कॉल करक लेल ई संदेश थिक ।
हमर बालक तुरत पुलिस के कॉल कएलखिन्ह आ सब बात साफ़-साफ़ कहि देलखिन्ह । पुलिस हुनकर पता आ हालचाल पुछलक । जखन आस्वस्त भ' गेल जे कोनो मर्जेंसी नै छन्हि तखन रखलक ।
बाद के दिन मे जखन नीक लोकक लेल अमेरिकी पुलिसक हेल्पिंग ऐटीच्यूड देखलौं त'
भय समाप्त भ' गेल ।
कोनो तरहक दिक्कति मे घर मे मर्जेंसी बट्टम दबेबै कि सेकण्ड मे पुलिस के कॉल आयत आ जै तरहक मदति चाही से पाँच मिनट के भीतर पुलिस करत । कोनो बेमार व्यक्ति लेल डाक्टर आ एम्बुलेंस लेनहिएँ आयत, आगिक केस मे अग्निशामक गाड़ी लइए क' आयत । चोर-डकैत के लेल त' कोनो बाते नै, ओकरा सबके त' ओ काजे थिक ।
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