"जे कियो मायाक पाछाँ
रहत लागल,
होइछ नै तकरासँ नमहर
कियो पागल ।
आइ तक नै कियो ओकरा
पकड़ि सकला,
महा अज्ञानी थिका
से नर अभागल ।।
जे कियो पग सूर्य दिस
प्रारंभ करता,
रहत लागल तनिक पाछाँ
छाँह हुनकर ।
होउ सब जिज्ञासु उन्मुख
ज्ञान रवि दिस,
स्वयं सुख-समृद्धि
पाछाँ रहत तिनकर ।।"
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