छुइत जँ नै ज्ञानसँ तँ,
मनुज वा पशुमे की अन्तर!
शील गुणसँ रहित जँ तँ,
उभयमे बाजू की अन्तर!!
दीर्घतम रहितहुँ मुदा जँ,
पत्र-पुष्प विहीन तरुवर!
लैछ की आश्रय तकर पशु-
मनुज वा कोनो गगनचर!!
वृक्षके शोभा अतुल जँ,
फूल-फल-आ पात घनगर !
चरित-सद्गुण पत्र-पुष्पें-
मनुज-तरु हो महासुन्दर!!
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