रैन-दिवस हम माया सेबल,
तात्विक ज्ञान कोना भ' पायत!
उरगक भ्रम रज्जूमे होमय,
ज्ञान-ज्योति सँ दूर पड़ायत ।।
छाउर सत्य के झाँपि लेने अछि,
अथक प्रयासें सँ हटि पायत ।
जे भटकय अज्ञान-तिमिरमे
गुरु-ज्ञानक-द्युति सँ लखि पायत ।।
स्वाद अपूर्व होइछ मायाकेर,
मोहपाशमे कसिक' फाँसय ।
धन्य-धन्य सद्गुरु केर किरपा,
भेड़ा बनबा सँ क्यो बाँचय ।।
क्षणभंगुर मायाक फेरमे,
जइड़ एक-दोसर के काटथि ।
बिसरि जीव अपना स्वरूप के,
कुड़हड़ि सँ अपनहि पद छाँटथि ।।
व्यर्थ अरारि करै छथि सब क्यो,
होमय आन कियो नहि जैठाँ ।
एक्के तत्त्व बसय सबहक उर,
बुधुए लोक लड़इ अछि तैठाँ ।।
†********†******†*********†
No comments:
Post a Comment