Sunday, September 8, 2019

हरि चरण कखनो ने छोडू I

महद् वृक्षक सेवने जन,
छाँह-फल दूनूके लाभय ।
जँ क़दाचित फल ने भेटल,
छाँह क्यो नहि रोकि पाबय ।।
नोन व्यवसायी के सेवने,
छटाके भरि नोन पायब ।
महाराजक सेवने तँ,
कान दुहुँ सोने मढायब ।।
लोभ मे पापी के चाटब,
अहूँके संगहिं बुड़ायत ।
स्वयं अछि आकंठ डूबल,
अहूँके संगहिं डुबायत ।।
छोड़िक' हरिनाम, लछमी-
केर पाछू की पड़ल छी?
हुनक वाहन सदृश, नेत्रक-
अछैते आन्हर बनल छी?
शारदा के करू सेवन,
हंस सनके ज्ञान पायब ।
नीर-क्षीर विवेक लभिक'
जगत मे नामो कमायब ।।
बितल जिनगी छल-प्रपंचे,
आब माया-मोह छोड़ू,
जपू रामक नाम सदिखन,
हरि चरण कखनो ने छोड़ू ।।
हरि शरण कखनो ने छोड़ू ।।

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