Saturday, September 21, 2019

तही घर के उच्च बूझी


बूझी नहिं अति उच्च घर से,
वस्त्र लोकक जतय चम-चम I
ऊँच हो अट्टालिका अति,
देह इत्रें भले गम-गम II
देह इत्रें भले गम-गम,
आन्तरिक संस्कृति निहारी I
अतिथि के स्वागत जतय,
लखि भद्रता लोकक विचारी II
जाहि घर मे बुजुर्गक-
आनन सतत मुस्कान देखी I
स्वर्ग सम अति उच्च से घर,
तही घर के उच्च बूझी II
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