आइ सरस्वती पूजा अछि- माँ वीणावादिनीक/
विद्यादायिनीक पूजा I स्थूल पूजा भेल – माँ के
चित्र/मूर्तिक पूजा- फूल, अक्षत, सिन्दूर, दूभि, तुलसीदल, नैवेद्य, धुप-दीप,
पान-सुपारी.... स’ श्रद्धापूर्वक माँ के पूजा केनाइ I श्रद्धा-भक्ति स’ कएल गेल पूजा कहियो व्यर्थ नै जा सकैछ I शूक्ष्म पूजा थिक- खूब मोन
लगाक’ अध्ययन/मनन केनाइ, माँ के पूजा बूझि खूब ज्ञान प्राप्त केनाइ- शास्त्र-पुराण
के गूढ़ अध्ययन केनाइ I शूक्ष्म पूजा विशिष्ट पूजा थिक, एकरे महत्त्व छैक, मात्र
स्थूल पूजा करैत रही आ अध्ययन नै करी त’ ओ पूजा फलदायी नै भ’ सकैछ I
“ विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यो कदाचन,
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र
पूज्यते I”
जाहि विद्वताक प्रशंसा
उक्त श्लोक मे कैल गेल अछि तकर अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वतिए त’ छथि I हिनक
आराधना स’ ताहि अमूल्य वस्तुक प्राप्ति होइछ जाहि के सोझाँ नृपत्व पानि भरैछI
माँ के वाहन हंस छन्हि- ‘ नीर-क्षीर
विवेकी ’- दुग्ध मे स’ पानि अलग क’ क’ दूध ग्रहण क’ लै छथि- तात्पर्य अछि
जे माँ के पूजा स’ सार-असार के ज्ञान भ’ जाइछ- सार ग्रहण करू, असार के त्यागू I
माँ के वस्त्र श्वेत छन्हि- दागरहित
सादगीपूर्ण जीवन- सात्विक आधार पर ज्ञानक अवतरण होइछ- राजसी, तामसी शूक्ष्म ज्ञान
नै प्राप्त क’ सकैछ I
माँ के पूजा स’
चिंतन-मनन, संगीत, कला सब मे निपुणता अबैछ I
माँ के दू हाथ मे
वीणा छन्हि- आराधना स’ संगीत कला मे निपुणता आबैछ I एक हाथ मे पुस्तक-
शिक्षा/ज्ञान के प्रतीक- दू पैरक पशु शिक्षा/ज्ञान प्राप्त क’ मनुक्ख बनि जाइछ-
आन्हर के ज्ञान चक्षु भेटि जाइछ I
एक हाथ मे माला
छन्हि- गायत्री जपू, सब ज्ञान अपने दौड़ल आयत I जँ कोनो छात्र प्रतिदिन 108 गायत्री
जपि अध्ययन करताह त’ निश्चित विद्वान् बनताह I
माँ के दोसर सवारी
मोर छन्हि- मोर कला आ ब्रह्मचर्यक प्रतीक अछि- ब्रह्मचारी के माँ के पूजा स’ कला
मे निपुणताक गारंटी I
माँ के उपासना स’ मंदबुद्धियो प्रकांड
विद्वान् भ’ जाइछ- कालिदास,वरदराजाचार्य, बोपदेव... इत्यादि प्रत्यक्ष प्रमाण छथि
I
माँ के पूजन स’ मनन-चिंतन अबैछ-
ऋषि-मुनि गूढ़ चिंतन क’ क’ वेद, पुराण, उपनिषद, स्मृति, ब्राह्मण......इत्यादिक
रचना क’ सकलाह I
हमहूँ सब माँ के पूजन- चिंतन-मनन क’ क’
शास्त्रग्य जरूर भ’ सकै छी I -------वसन्तपंचमी, २१.०१.२०१८