
काल्हि प्रातःकालीन भ्रमन मे बाल्यशखा बेचन भेटि गेलाह. हम दूनू मित्र लगातार चारि वर्ष तक गाम स' एक कोस दूर कपडिया मिडिल स्कूल मे अध्ययन केने छी. बाधे-बाध पैदल, जाड-गर्मी-वर्खा सब ऋतु मे प्रतिदिन चलिक' क्लास केने छी. गर्मी-छुट्टी मे आमक गाछी मे पटिया पर बैसि संगे-संग स्कूलक टास्क तैयार केने छी. संगहि गै-बरद चरेने छी. अनका खेत मे चोराक' बदाम उखाडि, घास-फ़ूस मे आगि लगा ओरहा बनाक' नून संगे खयबाक आनन्द फ़ाइव-स्टार के मात करै छल. दूनू आदमी जखन टापि ल'क' पोखरि मे पैसैत छलहु त' पाञ्च-दस किलो माछ निकालियेक' निकलैत छलहु. चूरा भूजि क' माछक कुटिया संग दूनू दोस्त पेटक तोरे ने पबैत छलहु. परसनाहरि जखन क'ल जोडि लैत छली, तखनहि पेट, मुह आ जी तृप्ति स्वीकारैत छल . संगहि-संग दूनू गोटे मिडिल आ हाइ स्कूल पास क' कालेज मे नाम लिखेलहु. तकर बाद रस्ता बदलि गेल. ओ केन्द्र सरकार आ हम टाटा कम्पनी. दूनू गोटे संगहि रिटायर केलहु आ पटने मे रहै छी. मुदा आइ स' पहिले ई बात नहि बूझल छल. कालेजक बाद एके-दू बेर भेट भेल छल . ओ अपन कहानी कह' लगला. सुनैत-सुनैत आन्खि डबडबा गेल. हुनका चारिटा पुत्र छनि. पत्नी किछु बर्ख पहिने स्वर्गवासी भ' गेलथिन्ह. चारू पुत्र अपनहि मे मस्त. जिनगी भरिक कमाइ स' एकटा घर बनेला. पत्नी के मरिते चारू बेटा सब कमरा दखल क' लेलकनि आ हिनकर ओछाओन सरभेन्ट रूम मे लगा देल गेलनि. भरिदिन घर मे जस्नक माहौल. पुतहु सबहक सहेली आ नैहरक लोकक धमाचौकरी हरदम होइत रहैछ. घर मे सदिखन नीक-निकुत बनैत रहैछ, मुदा बेचन लेल धनोधन सन. कूकुर जेका कखनो बान्चल-खुचल कारा पठा देल जाइत छलनि, खेला-नहि खेला तै स' ककरो मतलब नहि, सब अपनहि मे मस्त. पेन्सनक पाइ चारू बेटा के बराबर क' बान्टि दैत छेथिन्ह. हम कहलियैन, भाइ! एकटा नोकर राखि लीय' वा कोनो तीर्थ-बर्थ चलि जाउ. कहला- भोर स' सान्झ तक प्रतिदिन यैह सोचैत-सोचैत मरक समय आबि गेल, आब कत' जैब, जे लिखल हेतै, एतै भोगब. याद परि गेल बेचनक प्रथम पुत्रक जन्म. संतान होम' मे विलम्ब भेलाक कारणे कते कबुला-पाती, ओझा-गुनीक शरण मे गेलाक बाद संतान भेल छलनि. बुझाइत छल बेचन संसार पर विजय प्राप्त क' लेलनि. तकर बाद पीठे-पीठे तीन आर पुत्र भेलनि, पुत्री एको नहि. चारि पुत्रक माय हेवाक गौरव बेचनक पत्नी पचा नहि पबैत छली, स्वाभाविक अभिमान बात-विचार, हाव-भाव स' प्रकट भैये जाइत छलनि. एक दिन एकटा महात्मा पुत्रीक अभाव मे कोखिक अशुद्धिक चर्चा क' देलकनि. बेचनक गौरवे आन्हरि कनिया, मारवे टा नहि केलखिन; आर सब कर्म क' देलखिन. आइ बेचन पुत्रीक अभावक व्यथा व्यक्त क' देलक. संतानक अभावक परिताप जिनगी भरि सहैत हमरा आइ आत्म तोष बुझाइछ जे एहन चारि-चारि संतान स' निःसंतान नीक. एतेक दुर्गतिक बादो, बेचन'क पुत्र-पौत्रक मोह देखि नारदजीक कथा याद आबि गेल. मोह कतेको जन्म तक खिहारैत छैक. मरलाक बाद कूकुर मे जन्म भेलाक बादो, मोह भङ्ग नहि भेलाक कारणे व्यक्ति परिवारेक चक्कर काटैछ, परन्च मुक्ति नहि चाहैछ. अञ्जान मे भेल अपराधक कारणे सूगर योनि भेटलाक बादो लोक ओही मे मस्त रहैछ, मुक्ति नहि चाहैछ