Saturday, May 19, 2012

नवरथ (8)


नवरथजी कई दिन शुबह से शाम तक सभा में बैठे लेकिन एक भी लडकी के  पिता ने उनका साक्षात्कार नहीं लिया। अंतिम दिन उन्होंने तय   किया कि आज किसी   भी सूरत में शादी करनी  ही है। कई दलाल (घटक) लगाए गये। कुछ लेन-देन करके  मेरे नायक की शादी एक अति धनाढ्य परिव़ार में तय हुई. काफी धूम धाम से शादी हुई. वहन क़ी खुशी का क्या कहना? ख़ुशी से उसके पर लग गए गये थे। चतुर्थी के भोज के लिए पूरे गाँव को न्योता दे आई. भाई के ससुराल में रेहू मछली,चूडा-दही, आम, केला, चावल, ख़ाजा, लड्डू, जलेबी और रसगुल्ले के भार का छोड़ लग गया। गाँव में आज तक किसी के यहाँ से  ऐसा भार न तो विदा किया गया था और न पहुंचा ही था। यश-यश हो गया। नयी दुल्हन के लिए नवरथ की वहन ने खूब सुन्दर साड़ी और रत्न जड़ित सोने का हार भेजा. सुन्दर साड़ी  और गहने पहनकर दुल्हन परी लग रही थी।                    

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