'कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।' सब कुछ मिल सकता है लेकिन माँ नहीं मिल सकती. स्वयं भूखी रहकर बच्चे को खिलाना, स्वयं गीले में रहकर बच्चे को सूखे में रखना, अपने दुःख की परवाह न कर सदा बच्चे के सुख की चिन्ता केवल माँ ही कर सकती है।
'ए माँ तेरी सूरत से अलग भगवान् की सूरत क्या होगी ? जिसको नहीं देखा हमने कभी फिर उनकी जरूरत क्या होगी ?' भगवान् सब जगह नहीं रह सकते, इसलिए उसने माँ को बनाया ताकी उनकी प्रतिमूर्ति सदा-सर्वदा मेरे सामने उपस्थित रहे और मैं उन्हें हमेशा देख सकूं.
"चाहें लाख करो तुम पूजा और तीरथ करो हजार, मात -पिता को ठुकराया तो सब कुछ है बेकार"। सभी तीर्थ माँ के चरणों में है।
'मात्रि देवो भव।' "जननीजन्म्भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी". माँ के विना मेरे अस्तित्व की कल्पना भी नहीं हो सकती.
शीश देकर भी मैं माँ के ऋण से उरिन नहीं हो सकता।
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