Wednesday, December 18, 2019

बुढापा

कथूके सुधि-बुधि रहय नहिं
सतत रासे-रंग डूबल ।
मात्र अपने लेल जीलहुँ
त्याग के किछुओ ने बूझल ।।
सोचल ने पर लेल कहियो
स्वार्थ मे पागल छलहुँ ।
क्यो अचानक द्वार पिटलक
निन्न सँ जागल छलहुँ ।।
फोलल त' देखबा मे आयल
वृद्ध एकटा ठाढ़ सन्मुख ।
" के थिकौं, अछि की प्रयोजन"?
-भेलहुँ ओइ बूढ़ा सँ उन्मुख ।।
आयल ओइ बूढाक उत्तर-
"कुदब-फानब के तजू ।
हम अहाँ केर बुढापा छी
चैन सँ सूतल करू ।।
करू स्वागत आब हम्मर
तुरत अन्दर बजा लीय' ।
अहाँ लेल विश्राम समुचित
दे'ह मे स्थान दीय' ।।"
कहलियनि-" नै आउ भीतर,
आब नै हम रहब सूतल ।
एखन तक बेसुध छलहुँ, नहिं-
नीन्द मे हम रहब डूबल ।।
छलहुँ माया मे फँसल हम,
आब तँ जगबाक अछि ।
जिलहुँ अपने लेल, किछुओ-
दोसर लेल करबाक अछि ।।
आइ दिन सँ कान पकड़ी
झूठ हम कहियो ने बाँचब ।
स्नेह सबसँ करब सबदिन
सतत सबहक दुःख बाँटब ।।"
बुढापा बाजैछ-
" चिन्ता कथू के तों जुनि कर' ।
जँ एहन छह सोच तँ-
तों, चैन सँ एत्तहि रह' ।।
आन लोकक लेल जावत-
काल तक एत्त तों रहब' ।
उम्र कतबो भ' जेतह, तैयो
ने कहियो बूढ़ बनब' ।।
खूब जीबह परहितक लेल,
स्वस्थ आ आनंद रहबह ।
नित्य अनके लेल जीबह,
सतत परमानंद रहबह ।।"
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