बहुत दिवस पर जागल भारत
जगद्गुरू बनि जायत आब ।
चैन गेलै जीयब आफत छै
देशक दुश्मन सबके आब ।।
सब मिलिक' बफारि तोड़ै छै,
बाट ने कोनो सूझै आब ।
दूध-माछ दूनू बाँतर छै
देशक दुश्मन सबके आब ।।
सोचनहुँ नै छल देख' पड़तै
एहनो दिन जिनगी मे आब ।
सूझि ने रहलै को'नो रस्ता
देशक दुश्मन सबके आब ।।
जही थाल मे खायत, छेदो-
करत ततहिं, नै चलतै आब ।
कोनाक' बिततै बाँकी जिनगी,
देशक दुश्मन सबके आब ।।
अपने घर मे लगा पसाही
कोना चैन सँ सूतत आब ।
औनैनी कछमच्छी लगलै,
देशक दुश्मन सबके आब ।।
काजू-किसमिस नै पूछै छल,
फुटहे फाँक' पड़तै आब ।
मरुआ-अँकटा-मिसिया आफत,
देशक दुश्मन सबके आब ।।
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जगद्गुरू बनि जायत आब ।
चैन गेलै जीयब आफत छै
देशक दुश्मन सबके आब ।।
सब मिलिक' बफारि तोड़ै छै,
बाट ने कोनो सूझै आब ।
दूध-माछ दूनू बाँतर छै
देशक दुश्मन सबके आब ।।
सोचनहुँ नै छल देख' पड़तै
एहनो दिन जिनगी मे आब ।
सूझि ने रहलै को'नो रस्ता
देशक दुश्मन सबके आब ।।
जही थाल मे खायत, छेदो-
करत ततहिं, नै चलतै आब ।
कोनाक' बिततै बाँकी जिनगी,
देशक दुश्मन सबके आब ।।
अपने घर मे लगा पसाही
कोना चैन सँ सूतत आब ।
औनैनी कछमच्छी लगलै,
देशक दुश्मन सबके आब ।।
काजू-किसमिस नै पूछै छल,
फुटहे फाँक' पड़तै आब ।
मरुआ-अँकटा-मिसिया आफत,
देशक दुश्मन सबके आब ।।
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