Saturday, May 11, 2019

करमौली ग्राम-गाथा (1)


ओम् श्री गणेशाय नमः I नमो भगवत्यै माता सरस्वत्यै नमः I नमो भगवते श्री रमणाय I                           
करमौली ग्राम-गाथा :-
 भूमिका :-                               
ग्रामक डिहबार आ ब्रह्म बाबा के नमन क’ क’ आइ ‘करमौली ग्राम-गाथा’ पुस्तक लीखब प्रारम्भ क’ रहल छी I जते संभव होयत गामक प्रत्येक प्रमुख स्थान, एक-एक विशेष घटना, एक-एक विशेष व्यक्तित्वक वर्णन करबाक प्रयास करब जाहि सँ गाम आ बाहरो के लोक सब हमरा गाम सँ सुपरिचित भ’ सकताह I गामक डीह, ब्रह्म-स्थान, डिहबार-स्थान, ब्रह्मचर्याश्रम, दुर्गा-मंदिर आ दुर्गा-पूजा, गुरुजी, विद्यानंद काका, पठशल्ला, फिल्ड, हाटक गाछी, खबासक पोखरि, बाबा-पोखरि, ककरियाही, धधहर आ धधहरा गाछी, धधहरा गाछीक इनार, धधहर परहक इनार, फिल्ड मे फुटबौलक खेल, गामक प्रख्यात विद्वान् आ अन्य क्षेत्रक ख्यातिप्राप्त व्यक्तित्व सबहक वर्णन ऐ पुस्तक मे करबाक मोन अछि I बूढ़-पुरान लोक सबहक संस्मरण बहुत लाभदायक होयत I अपन अनुभव आ अनुभवी व्यक्ति सबहक बहुमूल्य सुझावक आधार पर लीखल ई पुस्तक अपना प्रयास मे कतेक सफल भेल ई पाठके सब कहि सकैत छथि I
बाल्यकालक बाद हाइ-इस्कूल तक गाम सँ पूर्ण रूपेण जुरल रहलहुँ, मुदा उच्च अध्ययन लेल जखन दड़िभंगा सी.एम. कॉलेज मे पड़ह’ गेलहुँ तँ संपर्क थोड़ेक घटि गेल I गर्मी-छुट्टी, दुर्गापूजा छुट्टी आ काजतिहारे मे एनाइ सम्भव भ’ पबैत छल I फेर जखन अभियन्त्रण अध्ययन लेल सिन्दरी चलि गेलहुँ तँ सम्पर्क थोड़े आर घटि गेल I बादक दिन मे नोकरी मे लागि गेला संताँ छुट्टीक अभाव मे एनाइ-गेनाइ आर बेसी घटि गेल I अवकाशग्रहणक पश्चात् आब थोड़े बेसी संपर्क बड़हल अछि I गाम अबैत देरी मोन उत्फुल्ल भ’ उठैत अछि I बाल्यकालक संस्मरण मोन के जीवन्त कदैछ I दरबज्जा परहक बाबा पोखरि मे आ चौपारि परहक खबासक पोखरि मे घंटों हेलबाक आनंद एखनहुँ मोन मे ओहिना रचल-बसल अछि I दुनू पोखरि आ ककरियाहीक खत्ता मे जखन उजाहि उठैत छलैक तँ सगर गामक आबालवृद्ध माछ मारक लेल धमगज्जर केने रहैत छलाह I जूरसितलक सुअवसर पर ख़बासक पोखरि मे दुनू टोलक लोक पैसि एक-दोसरा पर जल फेकि जावत्काल तक हरदा नै बजबा लैत छलाह तावत्काल तक जान नहिं छोड़ैत छलाह I फेर जल सँ निकलि दुनू टोलक युवा लोकनिक बीच कुस्ती-कुस्ती होइत छल I बच्चा सबहक लेल ई अत्यधिक रोमांचक होइत छल I असली प्रतियोगिता जेकाँ बुझाइत छल I जल-प्रतियोगिता मे आँखि लाल-लाल भजाइत छल I
कलम-गाछीक टाइल-पुल्ली, कबडी-कबडी, बुढ़िया-कबडी, चुनौती-कबडीक आनन्द वर्णनातीत अछि I पठशल्लाक फिल्ड मे साँझखनक गेंदक खेल नामी छल I बेसीकाल इलाका भरिक गामक फुटबॉल टीम टुर्नामेंट मे भाग लैत छल I ताहि समयक रोमान्च एखनो रोमांचित करैछ I नबाहक नौ दिनक रामधुन मे सम्पूर्ण गाम राममय रहैत छल I ब्रह्म आ डिहबार पूजाक अवसर पर सम्पूर्ण गाम आह्लादित रहैत छल I दुर्गापूजा तँ हमरा सबके अति विशेष उत्साह दैत छल I दसो दिन-राति हमसब पठशल्ले पर बितबैत छलहुँ I पूजाक आनंदक संग-संग गुरुजीक अमृतोपम सान्निध्य पाबि कृत-कृत्य रहैत छलहुँ I
एखनुक गाम एकदम बदलि गेल अछि I हर-बरद, गाय-महींस, दूध-दही, साग-सब्जी, नाटक-रामलीला, यज्ञ-जप, भगवत्कथा-प्रवचन, पारम्परिक खेल-कूद, वेदपाठ-संध्यावन्दन-गायत्री जप-तर्पण, पराती, घूर तरहक गप्प-सप्प, पाहुन-परख के स्वागत-सत्कार ... आदि सबटा लोप भ’ रहल अछि I अही परिप्रेक्ष्य मे बहुत पूर्व अपन एक गोट लिखल कविता अंकित करबाक लोभ सम्बरण नहिं क’ पाबि रहल छी-
“ गाम मे ब'रद एको नै
धेनु बांचलि नाम मात्रे ।
'र-पालो भूतकालक
महिष सेहो नाम मात्रे ।।

दूध के लेल सुधा डेरी
दही, घी लेल वैह आशा ।
साग-सब्जी हाट पर स'
आन सब शहरेक आशा II

रामलीला ख़तम भ' गेल
नाटकक नै नाम कत्तहु ।
मनोरंजन करय टीभी
यज्ञ के नै नाम कत्तहु ।।

जूरसितलक पानि संगहि
मल्ल-युद्धो बिला गेलै ।
गामघरक टाइल-पुल्ली
संगहि कबडी बिला गेलै ।।

पंडितक प्रवचन कतहु नै
वेद के पाठो विदा भेल ।
बंद भेल संध्याक वंदन
गायत्री, तर्पण विला भेल ।।

पराती गायन विला गेल
घूर-गप नामो ने सूनी ।
दलानो अंगना मे सटिगेल
पाहुनक नामो ने सूनी ।। “

गामक आजुक हालति एकदम बदलि गेल अछि I पहिले पण्डितक गाम रहबाक कारणें वेद-पाठ, श्लोक-स्तोत्र पाठ, भजन-कीर्तन, यज्ञ-जाप-पूजा-पाठ आठो पहर सुनबा मे अबैत छल I तीन बजे भोरे मे ब्रह्मलीन वैदिक मुक्तिनाथ जी स्नान करबा लेल बाबा पोखरि अबैत छलाह, हुनके हरिनाम पर छात्र सब भोरे सँ नित्यक्रिया सँ निवृत्त भए स्वाध्याय मे लागि जाइत छलाह I भोरू परहक समय मे बूढ़ सबहक पराती सँ गाम गुन्जायित भ’ जाइत छल I महिंसबार सब अन्हरोखे मे महींस चराबक लेल झुंड मे निकलैत छलाह, इनार सँ जल लाबक हेतु पनिभरनीक यूथ निकलैत छली, इनार-पोखरि पर भीड़ जुटि जाइत छल, बटुक सब विद्यालय पर वेद-पाठ शुरू करैत छलाह,  चौपारि पर मंदिर मे घड़ी-घंट बाज’ लागैत छल, किसान-मजदूर-हरबाह सब हर-बरद-कोदारि-खुरपीक संग खेत दिस विदा भ’ जाइत छल, सम्पूर्ण गाम मे चहल-पहल शुरू भ’ जाइत छल I भोरू परहक ऐ दृश्यक वर्णन के क’ सकैत अछि ! भरिदिन इस्कुल-विद्यालय मे शास्त्र-चर्चाक उपरांत साँझखन फिल्ड मे फुटबॉलक दृश्य अद्भुत रहैत छल I गामक झगड़ा-झाँटी गामे के पञ्चायत मे फ़रिया लेल जाइत छल, मोकदमा-फौजदारीक नामो नै छल I सम्पूर्ण गाम मे शान्तिक वातावरण छल I
अही प्रसंग पर हम किछु बर्ख़ पूर्व अपन लीखल कविता नीचा द’ रहल छी-
    

  
 कियो लौटा दै हौ हमर पुरना गाम,                                        
 वेद धुनि गुंजित जहँ भोर-साँझ हरिनाम I                                 
 गढ़ संस्कृतक विख्यात परोपट्टा मे
 यग्य-जाप-पाठ-पूजा होइ छल अष्टयाम II

  अन्हरोखे तीन बजे नहाय लेल पोखरि मे,                                 
 वैदिक जी आबथि तहमहूँ सब ऊठि जाइ I                           
  नित्य क्रिया जल्दी कडिबिया जराबी झट,                              
 पुस्तक आ कापी लपड़हक लेल बैसि जाइ II

 भोरुका पहर मे जोर सपढिअइ त’,                               
 टोलभरिक छौंड़ा सब सेहो ऊठि जाइत छल I                            
 सबहक़ दरबज्जा पर लालटेम जरैत छलैक,                               
 बच्चाक मधुर धुनि सगाम गुंजाइत छल II

 ओमहर पछबारि भाग बूढ़ सब जगला त’,                                
 भोरुका पराती स' युवक सबहक निन्न टुटल I                                 
 युवक महिसबार सब दौड़ल खरहोरि दिस,                               
 माथ पर घैल संग नारिक यूथ कूप जुटल II

 बटुकगण विद्यालय मे भोरे भोर स्नान क',                               
वेदपाठ-सस्वर सब उच्चस्वर मे करै छल I                                   
लोक सब रस्ता पर सुनबा लेल ठाढ़ छथि,                            
भोरुका अइ दृश्यक के वर्णन कसकै छल II


दिन भरि विद्यालय मे गुरूजी पढ़बै छथि,                               
उद्भट विद्वान्  सब यूथक यूथ आबै छल I                            
गुरुजीक सेवे मे मेवा सब पाबि रहल,                                   
हंसी खेल करिते सब विद्या के लाभै छल II

 बेरखन लोक सब जूटल विद्यालय पर,                                   
गुरूजी लग शास्त्र चर्चा विद्वद्गण करहल I                          
 फिल्ड मे बच्चा सब रमल अछि गेंद मे,                                  
 कृषकगण के ग्रुप मे कृषि चर्चा भरहल II

 साँझखन कखेतिहर सब जुटला चौपाड़ि पर,                             
 घंटा दू घंटा धरि कीर्तन अछि भरहल I                                  
 छात्र दरबज्जा पर पुस्तक आ कापी लय,                               
 टास्क इस्कूलक तैयारी सब करहल II

झंझट भेल कोनो तबाबा दरबज्जा पर,                                     
गाम भरिक लोक बैसि निर्णय करैत छल I                                 
क्षण मे समाधान भेल जाउ सब निश्चिन्त रहू ,                           
केस आ मोकदमा के क्यो नामो ने सुनैत छल II

शान्ति आ प्रेमक सन्देश पसरय चारूदिस
परोपट्टा मे गाम केर डंका बजैत छल I                                    
बाट आ बटोही जे गुजरय अहि गाम द’,                              
करनिज मौलि छूक' चर्चा करैत छल I                            
 ...................................चर्चा करैत छल II 

एकटा आर हमर लीखल पुरना कविता अंकित करबाक मोन भ' रहल अछि:-

ब्रह्मचर्याश्रम डिहबार ब्रह्मबाबा कियो लौटा दिय',
हमरा सपनाक अनुपम हमर पुरना गाम कियो लौटा दिय' ।

आमक गाछिक चहल-पहल, मचान-खोपरी, ओगरबाह सँगहिं
ठाइर मे टाँगल गुरीचक झुल्ला कियो लौटा दिय' ।

धधहर पर चरबाहक टाइल-पुल्ली, बुढ़िया कबडीक संग
पतौरा स' निकालल जाइत इनारक जल कियो लौटा दिय' ।

जूरसितलक अन्हरोखे नानीक जुड़ायब, बसिया बड़ी-भात, गोबर-कर्सी, थाल-कादो, खबासक पोखरिक पानि-पानिक खेल आ हरदा बजायब, धुरखेल, गाछ सबहक जुड़ायब, चौपाड़ि परहक कुश्ती-कुश्ती कियो लौटा दिय' ।

ब्रह्मस्थानक नवाह कीर्तनक उत्साह, भण्डारा आ रामायण-परिचर्चा, कुमारि-बटटुक, विवाह कीर्तनक आनंद कियो लौटा दिय' ।

ब्रह्मबाबाक किरपा, लोकक कष्टक निवारण, चोइर, सर्पदंश, डाइन-जोगिनक नाश,
डिहबार बाबाक प्रताप, गमैया पूजाक उत्साह कियो लौटा दिय' ।

ब्रह्मचर्याश्रमक बटुक समुदायक वेद पाठ, गुरूजी लग विद्वज्जनक शास्त्रीय वाद-विवाद कियो लौटा दिय' ।
 
घूरतरहक गप्प-सप्प, साँझखनक कीर्तन-भजन,
फगुआक रंग-अबीर, होरी-जोगीड़ा कियो लौटा दिय' ।

भोरक बूढ़-बुढानुसक पराती, महिला सबहक सोहर-
समदाउन, बटगवनी, बारहमासा कियो लौटा दिय' ।

सभागाछीक कन्यागत-बरागतक जुटान, बरक इंटरव्यू, बरियातिक पुछौअलि कियो लौटा दिय'। 

समधि-जमायक छप्पन प्रकारेँ सौजन, बरक सासुरक-
सारि-सरहोजिक हास-परिहास कियो लौटा दिय' ।

ग्राम्य सरल जीवन, संयुक्त परिवार, श्रेष्ठक प्रति आदर, छोटक प्रति स्नेह, भ्रातृप्रेम कियो लौटा दिय' ।

हमर आध्यात्मिकता, सत्य-मित-भाषण, विद्वत्ता, यम नियम आसन प्राणायाम, धारणा, ध्यान समाधि, सविध वृहत पूजा-पाठ, असंख्य पार्थिव महादेवक पूजन .............. कियो लौटा दिय' ।
                --------------क्रमशः
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 उपर्युक्त पूर्वकालक गामक गरिमा-वर्णन अपने सब सुनलहुँ मुदा एखनुक गामक हाल बेहाल भ’ गेल अछि I लोक सब मे आपस मे प्रेमक बदला घिरना भरि गेल छैक, सौंसे कलह पसरल छैक I युवावर्ग व्यसन मे मस्त अछि I पूजा-पाठ लुप्तप्राय भ’ गेल, धर्मक दिबाला निकलि गेलैक, अधिकांश लोक नशा आ पापकर्म मे डूबल रहैछ I लोकक संस्कार क्षीण भ’ गेलैक, श्रेष्ठक प्रति आदर आ छोटक प्रति स्नेह समाप्त भ’ गेलैक I धीया-पुता सब पढ़ाइ-लिखाइ छोड़ि मोबाइल-टी.वी., लफासोटिंग मे लागल रहैछ I सब युवा सब चौक-चौड़ाहा धेने रहैछ, दरबज्जा सुन्न, पाहुन-परख के क्यो ने पुछनाहर, अधिकांश लोक परदेश मे सपरिवार रहैछ, पाहुन-परख के जल-चाहो-पान लेल कोनो बच्चा नहिं उपलब्ध रहैछ I लोक के संतोष समाप्त भ’ चुकल छैक, चित्त अस्थिर भ’ गेल छैक, कुकुरमाछी कटने रहै छैक I अपन खेती-बारी, डीह-डाबर छोड़ि नोकरी लेल लोक परदेश जाइछ मुदा योग्यता/विशेषज्ञताक अभाव मे ओत्तहु स’ अधिकांश हताश-निराश भ’ मुँह बिधुऔने फेर गामे घुड़ि अबैछ I अही भावक एकटा बर्ख़ 2016 ई० मे लीखल अपन कविता अंकित क’ रहल छी-       
“ गामक सब लोक मे
घिरना तभरले छै.
कलह के अन्गेजने सब
हिरदय तजरले छै..
                         काज धाज छोडिकसब
                            व्यसने मे लागल छै.
                           भिनसर ससांझ धरि
                               झगड़ा बेसाहल छै ..
पूजा पाठ ख़तम भेल
नशा के बोलबाला छै .
पापे मे लिप्त सब
धर्मक दिवाला छै..
                               छौंड़ा उचक्का सब
                               उचकपनी करि रहल.
                               श्रेष्ठक अनादर आ
                                भाई भाई लड़ि रहल..
चौक आ चौराहा पर
जूआक अड्डा छै.
पढ़ब लिखब जीरो आ
लफासोटिंग धंधा छै ..
        
                                   भोर सांझ दूरा पर
                                  भेटत ने लोक क्यो.
                                     चौके चौराहा पर
                                    लोकक जमाड़ा छै ..
पाहुन आ परख के
हाल चाल पूछत के.
घरबैया घर धेने
लो लै पूछत के..
                                    गीता रमायन आब
                                     ककरो ने आबै छै .
                                   फ़िल्मक हीरो हिरोइन
                                    सबके मोन भाबै छै..
                           
साँझखन मंदिर आ
पंडित लग लोक नै
चाहक दोकान पर
जमघट सब लागल छै ..
  
                          
संतोषक नाम नै
पाइ-पाइ रटने छै.
चित्त नै थिर ककरो
कुकुरमाछी कटने छै..
                                माटि-पानि छोडिकसब
                                      दूर देस भागै छै
                                 ओत्तहु सपिटाकमुंह-
                                    बिधुआयल आबै छै..
                                    बिधुआयल आबे छै..!!!!!”

                                                              
                                                        एखनुक गामक दुर्दशाक वर्णन किनको अनादर/ अपमानित करबाक उद्देश्य सँ नहिं कएल अछि I आधुनिक पीढ़ी के अपना गामक प्राचीन गरिमाक बोध हेतु एवं पुराण-नवक तुलनात्मक विवेचन हेतु दुहूँ के अंकित कएल अछि I अंत मे गामक सब देवी-देवता, गुरुजन एवं सब श्रेष्ठजन के नमन करैत  गामक कल्याणक कामना करैत छी I हमरा गामक सब व्यक्ति सद्गुणक खान बनैथ, देश-विदेश मे गामक नाम होअय, गाम धन-धान्य पूरित होअय I
“ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः I सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् I”        “ॐ शांतिः शांतिः शांतिः II”
----------------------------------------------------------------------कमला कान्त झा

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