Thursday, May 3, 2018

कलियुगक उपकार हत्या बरोबरि



हमर पड़ोसी छथि
सुधाकर चौधरीजी,
बहुत सुहृदय,
बहुत परोपकारी,
ककरो कष्ट ओ
देखि नै सकै छथि,
तही दुआरे ओ
अनका उपकार करक खातिर
कतेको बेर कष्ट भोगलाह अछि I

एक बेरक बात अछि,
एकदिन अशोक राजपथ मे ओ
बाँसघाट स’ दीघा
जा रहल छलाह I
आगू मे देखै छथि जे
एकटा कार
बहुत तेजी स’
ओभरटेक केलक आ
आगाँ मे जा रहल
एकटा बाइक के खूब जोड़ स’
धक्का द’ पड़ा गेल I
बाइक के सबार
रस्ते पर खसि पडल,
सोनिते-सोनितामे !
जोड़-जोड़ स’
कुहरि रहल छल I
कोमल हृदय सुधाजी स’ नै
देखल गेलनि,
बगले मे कार रोकि
ओकरा उठा क’
अस्पताल पहुँचाबक
उद्देश्य स’
अपना कार मे
चढ़ाबक प्रयास कर’ लगलाह I
ताबते मे चारि-पाँच टा
लखेड़ा पाछुए स’ आबि
सुधाजी के लाठी-डंटा स’
तड़तड़ा दै छन्हि,
कतबो सफाइ देलखिन्ह
नै सुनलकन्हि,
कपारो फोडि देलकैन I

कुहड़ैत कहुना क’ उठलाह आ
उदास-मोन कार स्टार्ट क’ क’
विदा भेलाह,
कान पकड़ैत छथि जे
फेर आब ककरो
मदति नै करब I

एकरे कहै छै-
‘ कलियुगक उपकार ह्त्या बरोबरि ‘ !
चौधरीजी !
अहाँ निरास जुनि होइ,
अपनेक सबटा लेखा-जोखा
तेसर शक्ति क’ रहल अछि,
एकर प्रत्युपकार जरूर भेटत,
अहीं सब सन लोक पर
ई दुनिया टिकल अछि !!
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