हमर पड़ोसी छथि
सुधाकर चौधरीजी,
बहुत सुहृदय,
बहुत परोपकारी,
ककरो कष्ट ओ
देखि नै सकै छथि,
तही दुआरे ओ
अनका उपकार करक
खातिर
कतेको बेर कष्ट
भोगलाह अछि I
एक बेरक बात अछि,
एकदिन अशोक राजपथ मे
ओ
बाँसघाट स’ दीघा
जा रहल छलाह I
आगू मे देखै छथि जे
एकटा कार
बहुत तेजी स’
ओभरटेक केलक आ
आगाँ मे जा रहल
एकटा बाइक के खूब
जोड़ स’
धक्का द’ पड़ा गेल I
बाइक के सबार
रस्ते पर खसि पडल,
सोनिते-सोनितामे !
जोड़-जोड़ स’
कुहरि रहल छल I
कोमल हृदय सुधाजी स’
नै
देखल गेलनि,
बगले मे कार रोकि
ओकरा उठा क’
अस्पताल पहुँचाबक
उद्देश्य स’
अपना कार मे
चढ़ाबक प्रयास कर’
लगलाह I
ताबते मे चारि-पाँच
टा
लखेड़ा पाछुए स’ आबि
सुधाजी के लाठी-डंटा
स’
तड़तड़ा दै छन्हि,
कतबो सफाइ देलखिन्ह
नै सुनलकन्हि,
कपारो फोडि देलकैन I
कुहड़ैत कहुना क’
उठलाह आ
उदास-मोन कार
स्टार्ट क’ क’
विदा भेलाह,
कान पकड़ैत छथि जे
फेर आब ककरो
मदति नै करब I
एकरे कहै छै-
‘ कलियुगक उपकार
ह्त्या बरोबरि ‘ !
चौधरीजी !
अहाँ निरास जुनि होइ,
अपनेक सबटा
लेखा-जोखा
तेसर शक्ति क’ रहल
अछि,
एकर प्रत्युपकार
जरूर भेटत,
अहीं सब सन लोक पर
ई दुनिया टिकल अछि
!!
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