Saturday, January 24, 2015

वसन्त पञ्चमी (सरस्वती पूजा )

"रूप यौवन संपन्ना विशाल कुल संभवा। विद्या हीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किन्षुकाः"। रूप -यौवन, विशाल कुल  इत्यादि सबकुछ रहते हुए भी अगर कोई विद्या विहीन है तो उसी प्रकार शोभित नहीं होता जैसे पलास का फूल सुन्दर होते हुए भी सुगंधहीन है और अशोभित है। विना सुगंध के पुष्पों को देवता भी स्वीकार नहीं करते और न भक्त चढ़ाते ही हैं। कितना भी सुन्दर, सुडौल शरीर हो, विद्या के विना बेकार है।
 'न शोभते सभा मध्ये हंस मध्ये वको यथा'। 'विवेक (विद्या ) हीना पशुभिः समाना'। 'दिव्य-चक्षु' की चर्चा शास्त्रों में सदैव की गयी है। यह दिव्य चक्षु विद्या, ज्ञान  (परा ज्ञान) ही तो है। ब्रह्म के विराट रूप का दर्शन इस भौतिक आँख से संभव नहीं है। शूक्ष्म का दर्शन शूक्ष्म आँख से ही संभव है।   शूक्ष्म आँख विद्या ही तो है। भौतिक आँख से दसरथ-कौशल्या  का पुत्र राम, देवकी-वसुदेव  पुत्र कृष्ण -माखन चोर, छलिया को ही देखेंगे। शूक्ष्म आँख से ही परब्रह्म 'राम' (रमन्ते योगिनो यस्मिन् असौ रामः ), सोलहों कलायुक्त साक्षात् ब्रह्म मनुष्य रूप में -'कृष्ण' को देख सकते हैं। हमसभी धृतराष्ट्र ही तो हैं। पुत्र-परिजन मोह रूपी अंधापन दूर होगा तभी सत्य दर्शन कर पाएंगे।
 दिव्य चक्षु युक्त संजय सत्य सुनाता है लेकिन सर्वनाश हो जाने पर भी अंधापन दूर नहीं होता है। अतिवृद्ध व्यास को देखकर सुन्दरियां अपना वस्त्र तुरत धारण करती हैं लेकिन उनके युवा पुत्र सुकदेव से शर्म नहीं करती हैं और स्नान करती रहती हैं।व्यास को क्रोध आता है। पूछने पर ज्ञानी युवतियाँ सुकदेव के व्रह्मज्ञान और स्त्री-पुरुष अज्ञान , सतत समाधि की बात बताती हैं।
'अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानांजन शलाकया--------'.  माता शारदा की कृपा से ही अज्ञान तिमिर का नाश संभव है। --------------------------------------------------------------- जय माँ शारदे।         
  

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