अगम छथि राघव अगोचर पार क्यो नहि पा सकल, नामके महिमा मुनीशो- गण ने वरनन क' सकल ।
तुच्छतम हम जीवगण
किन्नहुँ ने सक्षम भ' सकब,
नाम लइतहि पातकी-
शतकोटि भवसागर तरल ।।
रामकेर ध्यानेमे डूबल
अहर्निश सज्जन जे रहता,
ताहि साधुक साधनाके
कियोने बाधित क' सकता ।
जतय रामक भक्त तत्तहि
सिद्ध-मुनि सुरगण रहै छथि,
ततहि हरि हर ब्रह्म सेहो
विराजित सदिखन रहै छथि ।।