Friday, November 7, 2014

सरल हृदय

"वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुषुमादपि"- अहि श्लोकान्श मे चारि गोट शब्द आयल अछि। बज्र, कठोर, कोमल आ फूल। कठोरतम पदार्थ भेल बज्र आ कोमलतम फूल। साधु पुरुष लेल दूनू विरोधाभाषी विशेषण कहल गेल अछि। एके व्यक्ति मे दूनू एक दोसरा क विरोधी गुण सुनबा मे उटपटांग लगैत अछि, मुदा विल्कुल सही अछि। समय के अनुकूल दूनू रूप ध'र' पड़ैत छैक, मुदा ह्रदय मे कल्याणकारी भाव रहैछ। विपरीत स' विपरीत परिस्थिति मे गलत के विरोध, ई पहिल गुण। बिना भय, पक्षपात के सत्य के पक्ष मे ठाढ़ हैब, केवल साधु पुरुष स' संभव अछि। असत्य के पक्षधर रावण, कंश, दुर्योधन, बालि, हिरण्यकशिपु-हिरण्याक्ष, महिषासुर, शुम्भ-निशुम्भ, रक्तबीज, मेघनाद, कुम्भकरण इत्यादि सदृश दुर्दांत के विरोध मे राम, कृष्ण, नृसिंह, दुर्गा, युधिष्ठिर, अर्जुन सनक साधुए के ठाढ़ होम' पड़ैछ। 'चोर-चोर मसियौत' आ ' बर्ड्स ऑफ़ ए फेदर फ्लॉक टुगेदर' सदृश बदमाश के दोस्त बदमाश होइछ। ओकरा परास्त साधुए क' सकैछ। आगि जले स' मिझाइछ; बारूद-पेट्रोल तीव्रता के वृद्धि करैछ। अंग्रेज के भगावक लेल गांधी के आब' पड़ै छइ। अहि दृष्टि स' साधु पुरुष के बज्र  स' कठोर कह' मे कोनो अतिशयोक्ति नहि। इतिहास साक्षी अछि जे कंचन -कामिनी के प्रलोभन द' एक स' एक दिग्गज के फँसायल गेल अछि। मुदा राम, कृष्ण, युधिष्ठिर, शंकर, रामकृष्ण-विवेकानंद, रमन महर्षि, गांधी के कियो नहि प्रलोभित क' सकल।
सिद्धांत पर एते कठोर व्यक्ति के फूलो स' कोमल कोना कहल गेल अछि? साधु पुरुष के ककरो कष्ट वर्दास्त नहि होइछ,  पर पीड़ा देखि नेत्र स' झड़-झड़ अश्रुपात होम' लगै छनि। मनुष्य त ' मनुष्य, निकृष्ट पक्षी घायल  जटायु के कोरा मे ल' राम'क विलाप कोमलताक अप्रतिम उदाहरण अछि। रामायणक रचनाकार वाल्मीकि क्रौंच मिथुन के आहत देखि द्रवित भ' जाइ छथि आ अनायास श्लोक प्रस्फुटित होइछ, आ ब्रम्हांड'क पहिल काव्यक सर्जन होइछ। वुद्ध घायल पक्षी के बचाबक लेल भीड़ जाइछ।          

No comments:

Post a Comment