Tuesday, October 7, 2014

माँ दुर्गे

माता आद्याशक्ति हैं। सृष्टि के सर्जन, पालन एवं विनाश के मूल आधार ये ही हैं। श्रद्धा-भक्ति के साथ माँ के ध्यान भजन से इनकी कृपा तुरत प्राप्त होती है। " तामुपैहि महाराज शरनम् पर्मेश्वरीम् । आराधिता सैव नृणान्  भोग स्वर्गापवर्गदा।"आराधना से प्रसन्न होकर भोग, स्वर्ग और मोक्ष सहज ही प्राप्त हो जाता है। सकाम भक्त राजा सुरथ ने अपना साम्राज्य पुनः प्राप्त किया और अगले जन्म के लिए भी नष्ट न होनेवाला राज्यप्राप्ति का वर पाया। वैश्य संसार से खिन्न और विरक्त हो गया था। साथ ही वह वुद्धिमान भी था। ऐसे अवसर पर तुच्छ-नाशवान चीज़ नहीं मांगकर, ममता और अहंतारूप आसक्ति का नाश करनेवाला ज्ञान माँगा।    
  

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