
'रूप यौवन सम्पन्ना विशाल कुल सम्भवा. विद्या हीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किन्सुकाः'. विद्या विहीन मानव दोपाया पशु ही तो है. 'विद्या विहीना पशुभिः समाना'. आज वसन्त पञ्चमी के दिन मा शारदा की पूजा पूरी श्रद्धा-भक्ति से इसी मानवता प्राप्ति हेतु करणीय है. केवल शास्त्रीय ज्ञान नही, आत्म ज्ञान. सद्-असद् ज्ञान. 'आत्मवत् सर्व भूतेषु यः पश्यति सः पण्डितः'. अज्ञान तिमिर मे भटकते जीवो को ज्ञान चक्षु प्रदात्री मा ही तो है. यदि सभी जीवो की शिव भाव से पूजा नही की तो मानव जीवन व्यर्थ मे गवाया. अपने लिये तो सभी जीव जीते हैं, परायो के लिये जीना ही तो देवत्व है.
ज्ञान की अधिष्ठात्री 'वाणी' की आराधना से सभी विद्याओ` की प्राप्ति संभव है.
श्रिष्टि के रचयिता ब्रह्मा की वामाङ्गा उनकी प्रेरणा ही तो हैं. मा की ईक्षा से ही तीनो देवगण (ब्रह्मा, विष्णु, महेश), सर्जन, पालन एवं प्रलय करते हैं.
माघ मास की पञ्चमी तिथि (वसन्त पञ्चमी) मा के पूजन का दिन है.स्कूल-कालेज के छात्र विद्या प्राप्ति की कामना लिये सुबह से ही अर्चन-भजन मे लगे हुए हैं. --------जय मा शारदे.
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