सरल जनमल, प्रतिष्ठा लेल-
कठिन रस्ता के चुनै
छी,
नाम-यश लेल भेल व्याकुल
जाल माया के बुनै छी
I
स्वयं बूनल जाल मे फँसि
दया के भिक्षा मंगै
छी,
बनल जिनगी दीन-हीनक
मुक्ति के इक्षा करै
छी I
जखन ऊर्जा देह मे, सब-
रहै अछि उन्मत्त मग
मे,
समय बितने करय
पश्चा-
ताप, अतिशय लोक जग
मे I
मृत्यु तँ बस मुक्ति
थिक
दुनियाँक मायाजाल
सँ,
क्यो ने बाँचल रहत
जग मे
महाकालक ब्याल सँ I
दान पुन विद्या ने तप
हो
पशु सदृश जिनगी तकर
अछि,
मरण तँ बस नाम लेल
हो
ओ तँ पहिनहिं मरि
चुकल अछि II