Thursday, March 11, 2021

श्रेष्ठजन छथि सुरक्षा-कवच

 नेत्र करुणें हो भरल,

श्रद्धा नमित मम माथ हो ।

पैर सन्मार्गे चलय, 

सहयोग रत दुहुँ हाथ हो ।।


मधुर वाणी मुख सँ निकलय,

जीह सद्भाषण करय ।

श्रोत्र हरिनामक श्रवण, चित-

ध्यान मे लागल रहय ।।


हाल जे पूछय अहाँके,

स्वार्थ नै सदिखन रहय ।

अहाँसँ छै स्नेह अतिशय,

खोज तैं सदिखन करय ।।


ईश के किरपें सँ किछु जन,

अहँक जिनगी मे अबै छथि ।

अमुल नैसर्गिक वचन सँ,

भाग्य के से बदलि दै छथि ।।


श्रेष्ठजन के छत्र-छाँही,

माथ पर नहि बोझ बूझू ।

ओ सुरक्षा-कवच हम्मर,

अनिष्टक अवरोध बूझू ।।


यत्न सँ तै देवता के,

जोगाक' राखल करी ।

तनिक सेवा करी श्रद्धे,

जियाक' राखल करी ।।

जियाक' राखल करी!!!!

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