Saturday, September 21, 2019

तही घर के उच्च बूझी


बूझी नहिं अति उच्च घर से,
वस्त्र लोकक जतय चम-चम I
ऊँच हो अट्टालिका अति,
देह इत्रें भले गम-गम II
देह इत्रें भले गम-गम,
आन्तरिक संस्कृति निहारी I
अतिथि के स्वागत जतय,
लखि भद्रता लोकक विचारी II
जाहि घर मे बुजुर्गक-
आनन सतत मुस्कान देखी I
स्वर्ग सम अति उच्च से घर,
तही घर के उच्च बूझी II
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Monday, September 9, 2019

अर्धनारीश्वर


अर्धनारीश्वर                                         
                  पछिला बेर गाम सँँ घुरैत काल डोकहर भगवती स्थान गेल रही. ई स्थान हमर वाल्यकालहि स’ उपासना’क स्थल रहल अछि. यादो नहि अछि जे पहिल बेर कहिया गेल हैब. संभवतः मायक कोरे मे पहिल बेर गेल होयब. अहि इलाकाक महिला सब कोर के बच्चो के भगवती’क आशीर्वाद प्राप्त करवाक निमित्त ल’ जाइत छथि. अर्धनारीश्वर रूप पर बहुत तरहक विचार चिंतन मे आबय लागल.
                        पुरुष आ स्त्री दूनू मे पुरुष अंश आ स्त्री अंश होइछ. पुरुष अंश बेसी रहला स’ बल, पराक्रम, शारीरिक उद्यमशीलता... इत्यादिक आधिक्य परिलक्षित होइछ. मातृ अंशक अधिकता स’ कोमलता, प्रेम, दयालुता, सलज्जता आदिक आधिक्य होइछ. ताही कारणे कोनो पुरुष स्त्रैण आ कोनो महिला पुरुखाहि होइछ. अधिकांश पुरुष आ स्त्री मे लिंगक अनुसारे क्रमशः पुरुष आ स्त्री अंशक आधिक्य होइछ. दूनू अंश शून्य भेला संताँ संभवतः नपुंसक उत्पन्न होइत हेतैक.
मुदा जँ दूनू अंश एके व्यक्ति मे उच्चतम स्तर के भ’ जाइक त’ की हेतैक ? निश्चित रूप स’ ओ अद्वितीय होयत आ ताही कारणे अवतारी पुरुष मे दूनू अंश उच्चतम पाओल जाइछ. राम, कृष्ण, रमण महर्षि, रामकृष्ण परमहंसदेव, गांधी इत्यादि मे ई बात प्रत्यक्ष देखना जाइछ.
राम-भरतक मिलन समयक अश्रुपात, सीताहरणक पश्चात् रामक विलाप, जटायु के कोरा मे ल’ क’ करुण क्रन्दन... आदि मातृृ अंशक पराकाष्ठा तँ विश्वामित्रक संग राक्षस सबहक बध, धनुषभंग कालक सौर्य, बालि-बध, समुद्रबंध कालक भृकुटी तानब, राम-रावण युद्ध कालक रौद्र रूप...आदि पुरुष अंशक चरमोत्कर्ष बुझना जाइछ I

Sunday, September 8, 2019

हरि चरण कखनो ने छोडू I

महद् वृक्षक सेवने जन,
छाँह-फल दूनूके लाभय ।
जँ क़दाचित फल ने भेटल,
छाँह क्यो नहि रोकि पाबय ।।
नोन व्यवसायी के सेवने,
छटाके भरि नोन पायब ।
महाराजक सेवने तँ,
कान दुहुँ सोने मढायब ।।
लोभ मे पापी के चाटब,
अहूँके संगहिं बुड़ायत ।
स्वयं अछि आकंठ डूबल,
अहूँके संगहिं डुबायत ।।
छोड़िक' हरिनाम, लछमी-
केर पाछू की पड़ल छी?
हुनक वाहन सदृश, नेत्रक-
अछैते आन्हर बनल छी?
शारदा के करू सेवन,
हंस सनके ज्ञान पायब ।
नीर-क्षीर विवेक लभिक'
जगत मे नामो कमायब ।।
बितल जिनगी छल-प्रपंचे,
आब माया-मोह छोड़ू,
जपू रामक नाम सदिखन,
हरि चरण कखनो ने छोड़ू ।।
हरि शरण कखनो ने छोड़ू ।।

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