Thursday, May 18, 2017

जूरसितल

खबासक पोखरिक पानि-पानि                                    
याद पड़ि रहल अछि !
गामक सबस' पैघ
यैह पोखरि थिक
जाहि मे सम्पूर्ण गामक
लोक एक संगे
पानि-पानि खेलाइत छल,
एक कात उतरबारि टोल
दोसर कात दछिनबारि टोल
एक टोलक लोक
दोसर टोलक लोक के
हरदा बजाब' मे
लागल रहैत छल ।
तकर बाद
ब्रह्मस्थानक चौपारि पर
कुस्तीक आयोजन
दूनू टोलक जोड़ी सब
एक दोसर के पटकैत छल,
फेर बाबा पोखरि मे
स्वच्छ जल मे सब
स्नान करैत छल ।
घर जाय बड़ी-भात
तरुआ-तरकारी खा क'
दरबज्जाअ पर
हाहा हीही
आ फेर साँझ मे शिकार
आ ढेपा ढेपब्बलि!
याद पड़ैछ-
प्रातःकाल अन्हरोखे ऊठिक'
सब गाछ-बिरिछ के जड़ि मे
जल द' जुड़बैत छलहुँ,
घरक केबार, चौकी, पलंग
सब के पोखरि मे
डुबाक' नीक स'
रगड़ि-रगड़ि क'
साफ़ करैत छलहुँ-
उड़ीस, कीड़ा-मकोड़ा
सब साफ़ !
आब ने ओ रामा आ ने खटोला
सब बंद
ने पानि-पानि
ने कुश्ती ने शिकार
ने ढेपाउज
नीरस जीवन
ककरो स' कोनो मतलब नहि
अपना अपना खोली मे
सब दुबकल
समय काटि रहल अछि!

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