Thursday, May 18, 2017

जे सगर्वे याचना अधिकार बूझय

ख्यात एकटा उक्ति सहसा याद आयल-
'मरल अछि ओ लोक मांगक लेल चलि गेल ।
जनिक मुख स' नकारात्मक बोल निकलल
ओ बुझू जे याचको स' पूर्ब मरि गेल' ।।
उक्ति खगलाहाक लेल अछि ई ताहि कालक
जखन मांगब निम्नतम सब लोक बूझय ।
धूर्त पनपल अछि कतेको एखन जग मे
जे सगर्वे याचना अधिकार बूझय ।।
अपन ढ़ौआ सूदि पर लगबैत अछि ओ
वा ने कहियो बैंक स' ओकरा निकालय ।
काज अप्पन मांगिक' चलबैछ सबदिन
लाज कोनो गत्र मे ओकरा ने आबय ।।
चलल अछि लोभीक एक्खन वर्ग एकटा
अतिथि अयने पानि अस्सी मोन पडि जै ।
रहय नित खयबा फ़िराके मे ओ पामर
धरफरन द' खैक लेल निर्लज्ज अड़ि जै ।।
जखन आयत अहाँ घर, हँस्सी-खुसी मे-
डुबल पायब, मुदा पाला पड़ल देखबै-
जखन आहाँ जैब कहियो ओकर घर पर,
मौन सदिखन एको बेर हँस्सी ने देखबै ।।

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