Tuesday, August 30, 2016

कुष्टरोगी


बात बहुत पुरान थिक
कुष्टरोगी सबहक
गृहनिर्माण भ’ रहल छल
पर्यवेक्षण के जे.इ.
मानसिक रूपें बेमार छल
हमहूँ निरीक्षण मे पहुँचलहुँ

कुष्टरोगी स’ समाज घृणा करैछ
मुदा ओकरा सबहक मोन मे
समाज स’ कोनो घृणा नहि रहैछ I
ओ सब घृणा नहिं,
सहानुभूतिक पात्र थिक
कुष्ठरोग,
छूतिक रोग नहिं थिक I
साफ़-सुथड़ा रह’बला के
ई रोग किछु ने क’ सकैछ I

ओकरा समाज मे
छुआ-छूति नै छैक
मात्र एक जाति-
‘कुष्ठ रोगी’ छैक       

निरीक्षणक क्रम मे
कहियो
ओकरा सबहक प्रति
घृणाक भाव
नहिं रखलहुँ
ओकर देल चाह पीबा मे
कहियो संकोच नहि केलहुँ I

अहूदिन ओ सब चाह बनेलक
हम आ जे.इ. चाह पीबि रहल छी
अचानक जे.इ. के दौड़ा पड़लैक
तडमडाक’ खस’ लागल
एकटा लेपर दौडिक’ पकडि लैछ
खाट पर सुता क’
चारू पौआ चारि लेपर पकडि
इमरजेंसी वार्ड दिस विदा होइछ
रस्ता मे एकटा दोस्त डाक्टर भेटैछ
ओ चेक करैछ-
‘कोनो डर नहिं’
पुनि सब खाट के इमरजेंसी ल’ जाइछ
तखन तक जे.इ. के होस आबि जाइछ
किछु दबाइ द’ क’ छुट्टी भेटि जाइछ

क्यो ने जाने विपति बेर मे
सहायक के हैत कक्खन
जँ ने ओइदिन कुष्टगण सब-
मदति कैरतै, हाल नहिं कहि- 
की होइत तक्खन ?
तैं ने क्यो अछि पैघ अथवा
नै  कियो  अछि छोट जग मे
एक ब्रह्मक थिका सन्तति

सकल जीव समान जग मे II            

Saturday, August 27, 2016

जद्दू


‘जद्दू’ ओकर नाम छलै
पिताजीक खेत मे हरबाहि करैत छल
अन्ह्रोखे ओ अबैत छल 
खूब अन्हार भेला पर जाइत छल
भोर स’ साँझ तक अत्यधिक खटय
पर कहियो मूँह मलिन नहि देखलहुँ
खूब लंबा-चौड़ा शरीर
रोपनी, कमैनी, कटनी, दौनी मे
ओकरा मे क्यो ने सकय
मात्र पिताजी स’ ओ हारैत छल
बीया बाग़ कर’ स’ ल’ क’
रोपनी, पटौनी, निकौनी, कटनी,
दौनी, उसिनिया, कुटिया, फटकीया
कोठी मे ढारनाइ तक
सब काज ओ करै छल
भोर स’ साँझ तक ओकरा देखी
नेनमति, ओकरा घरे के सदस्य बूझी
जाति-पातिक कोनो ज्ञान नहि
छड़पि क’ ओकरा कनहा पर चैढ जाइ
ओकरा मना केलो पर
जावत ओ हाँ-हाँ करय
ओकर भोजन आ जलखै मे स’
चट ल’ क’ थोड़े खा ली
विना मुँह लारनहि, घोंटि ली
परदेश स’ बहुत दिन पर गाम गेलहुँ
जद्दू के नहिं देखलिअइ
खोज केलिअइ त’ पता लागल जे
आब नहिं अबै अछि
बेटाक माथा पर सब भार द’ क’
गामे पर रहैत अछि
नाम सुनैत देरी
भेट करवा लेल
दौड़ल आयल
हाथ मे अपना बारीक एक घौर केरा लेने
कुर्सी पर बैसक लेल कतबो कहलिऐक, नै बैसल
जमीने पर बैसि गेल
चाह पीबक लेल देलिऐक
कप धोक’ रखलक
किओ हमर पैघ बालक के कोरा मे रखने छलैक
पाँच टा रुपैया जद्दू आसिर्वादी सेहो देलकै
हाल-चाल पुछलिअइ त’ उत्तर देलक
-‘तीनू बेटा के घर मे
एक-एक मास खाइत छी
कहुना गुजर चलैयै
समय काटि लैत छी’
ओकर हाल सुनि
बहुत तकलीफ होइछ
विदा भेल त’
एक सै रुपैया देब’ चाहलहुँ
मुदा ओ नै लैछ
बहुत जिद्द केला पर
पांच रुपैया राखि लैछ
ओतेक दयनीय हाल मे रहितो
ओकर संतोष मोन मोहि लेलक
ह्रदय मे आदरणीय स्थान बना लेलक
ग्रैंड सैल्यूट !

Friday, August 26, 2016

कृष्णाष्टमी


विश्व रंगमंच पर
आदिनांक मात्र एक पात्र एहन भेल अछि
जे हरेक क्षेत्र के टॉपर
सबस' पैघ योगी/भोगी/कूटनीतिज्ञ/बलशाली हो ।
गो, गोबर्धन आ ब्राह्मण के पूजब-
गो- कृषि, पशुपालन, खाद्य
गोवर्धन- पर्यावरण
ब्राह्मण- शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान-टेक्नोलॉजी, न्याय, नीति-
हुनक प्राथमिकता मे छल ।
ओतेक यूनिक होमक लेल
ओतबे पैघ तपस्या
ओतबे कष्ट
गर्भे स' मृत्युक तलवार लटकैत
बच्चे स' भयानक दुश्मन सबहक सामना
सबदिन किछु ने किछु अजूबा
गोवर्धन धारण
इन्द्र दर्पहनन
पूतना, यमलार्जुन, सकटासुर, बकासुर, अघासुर, प्रलम्बासुर, तृणावर्त, कालीय दमन,
व्योमासुर, मुस्टिक, चाणूर, कंस-बध
इत्यादि प्रकरण बचपने मे संपन्न
यशोदा के विराट रूप देखेनाइ, माखन-चोरी, चीरहरण, रासलीला इत्यादि मृदुलतम कार्य
सब बचपन मे संपन्न ।
युवावस्था मे शिशुपाल बध, कुरुक्षेत्र मे महाभारत, अर्जुन के विराट रूप देखेनाइ, द्रौपदी के चीरहरण प्रकरण मे लाज बचेनाइ, द्रोणाचार्य के मृत्यु प्रकरण, जयद्रथ बध,
कुरुक्षेत्र मे विना स्वयं अस्त्र-शस्त्र के कौरव पक्षक पराजयक निमत्त भेनाइ अर्थात् कृष्ण के विना कौरव पक्ष नहि हारि सकै छल ।
अर्जुन के गीताक उपदेश, संसारक अद्भुत सन्देश अछि- संसार मे आइ तक गीता सनक पुस्तक नहि लीखल गेल- साक्षात् भगवान् के श्रीमुख स' निकसल परम रहस्यमयी दिव्य वाणीक परतर आन कोन पुस्तक करत ? सब पंथक आदमी के अपन अपन मतक अनुसार समाधान आ उद्धारक उपाय अहि ग्रन्थ मे उपलब्ध अछि । भगवान् स्वयं बाद में कहैत छथि जे हम गीता के एखन नहि दोहरा सकब, कारण ई जे जाहि समय मे हम ई अर्जुन के सुनेलिअनि ताहि समय मे हम योगावस्था मे छलहुँ ( म0 भा0, आश्व0 16/12-13) । ई हमरो सबहक संगें होइछ- ध्यानावस्थाक कोनो रचना के दोहरेनाइ साधारण अवस्था मे असंभव होइछ ।
कृष्ण सम ने कोनो वक्ता, ने कोनो कलाकार-गायक, वादक, नर्तक भेल। कालीय नाग के फन पर के नाचि सकत ? महारास के क' सकत? ततेक किताब कृष्ण पर छन्हि जे गानव असंभव, हुनक वर्णन के क' सकत?
जखन कंस के दरबार मे बलराम जीक संग हमर कन्हैया पधारै छथि तै समय के वर्णन अछि- पहलवान के बज्र, साधारण मानव के नर-रत्न, महिलागण के कामदेव, गोप-गण के स्वजन, दुष्ट के दण्डित कर'बला शासक, बुजुर्ग के शिशु, कंस के मृत्यु, अज्ञानी के विराट, योगी के परमतत्त्व आ भक्त के इष्टदेव बुझना गेलथिन्ह ( श्रीमद्भा0 10/43/17) ।
श्री कृष्ण महायोगेश्वर छथि। योगीक ईश्वर भेनाइ सरल भ' सकैछ पर योगक ईश्वर क्लाइमैक्स अछि- अहुना हमर कान्हा क्लाइमैक्सक समूहे त' छथि ।
न्याय के पक्ष ल' क', आततायी के नाशक संकल्प, गो- ब्राह्मण हितायक संकल्प ल' हम कृष्णाष्टमी मनाबी तखने अहि तिथिक सार्थकता ।

रिक्शा-चालक


वर्ष १९७९ के अक्टूबर मास
दुर्गा-पूजाक समय
कलकत्ता भ्रमण लेल गेलहुँ 
ब्लैक-डाइमंड एक्सप्रेस स’ I
६७/बी मे गौआँ सब छलाह
पहिले ओत्तहि गेलहुँ
अष्टमीक रात्रि
विश्वम्भरजी छागड़ चढेने छलाह I
रातुक भोजन ओत्तहि भेलैक
राजेंद्रजी घुमबाक लेल आयल छलाह
हुनके संग कलकत्ताक दुर्गा-पूजा
देखक लेल निकलैत छी I
एक मास ठहरक मादे राजेन्द्रजी स’ गप्प भेल
राजेंद्र-छात्र-निवासक सम्बन्ध मे बजलाह
चंद्रशेखरजी ओतय रहैत छलाह
एक मासक लेल गाम जा रहल छलाह I
हम, राजेन्द्र संगे हावड़ा स्टेशन जाइत छी
चंद्रशेखर अपना बेड पर
रुकक लेल कहलाह
घुमिक’ राजेंद्र-छात्र-निवास जाइत छी I
चारि बेडक कमरा
चंद्रशेखरजीक बेड पर-
एक अन्य छात्र कब्जा जमेने अछि
बेड खाली भेल, आ हम दखल केलहुँ I
आब निश्चिन्त भ’ दूनू गोटे
राइत भरि कलकत्ताक दुर्गापूजा देखैत छी
भोर मे राजेन्द्रजी अपन डेरा गेलाह
हमहूँ छात्र-निवास I
ओतहि रहि
प्रतियोगिताक तैयारी,
प्रतियोगिता परिक्षा आ
कलकत्ता भ्रमण सेहो होइछ I
एक दिन पुनः ६७/बी गेलहुँ
बाबू साहबजी भेटलाह
हुनके टेक्सी स’
पूरा कलकत्ता घुमलहुँ I
कलकत्ता मे ठेठ मैथिली मे पसिंजर स’ गप्प करैत,
मैथिली मे गाइर दैत
खूब मजा लैत ड्राइभर के देखलहुँ
भले पसिंजर किछु ने बुझलक I
छात्रावास मे हमर स्कूलक मित्र
कृष्णानंदजी भेटलाह
बाद मे राघोपुर के शंकरजी सेहो
ओ अंग्रेजी नीक बजैत छथि I
कृष्णानंदजीक  चलते
बहुत आनंद अबैत छल
दिन-भरि पढलाक बाद
साँझ मे दूनू गोटे खूब घूमी I
ओइ समय कलकत्ता मेट्रो बननाइ शुरू भेल छलैक
शहर मे ट्राम, टैक्सी, हाथ-रिक्शा चलैत छलैक
सबारी के ल’ क’ मनुख पैदल दौड़ैत छलैक
अति अमानवीय दृश्य !
एक दिन पूरा घूमि-फिरिक’
मानव-रिक्शा स’ लौटैत छी
छात्रावास जाइत छी
याद पड़ल
बैग रिक्शे मे छुटि गेल
कृष्णानंदजीक संग गप्प होइछ
कोना भेटत?
ओही मे मत्त्वपूर्ण कागजात सङ
किछु पाइ सेहो छल I
थोड़बे काल मे
देखैत छी,
हाथ मे बैग लेने
रिक्शाबला आबि रहल अछि,
ओकरा किछु देबाक इच्छा भेल
ओ साफ़ मना क’ दैछ-
‘ हमर ई कर्त्तव्य छल,
सरकार ! अपन समानक ख्याल राखल करिऔ I ’
एखन ओ रिक्शाबला याद पड़ि गेल
ओकर ईमानदारीक मादे सोचिक'
नतमस्तक छी,
ग्रैंड सैल्यूट !!
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Wednesday, August 24, 2016

पटना पुस्तक मेला


वर्ष नब्बे केर पटना-
पुस्तकक मेलाक वरनन-
कय रहल छी, ओ रहत-
जिन्दगी भरि याद सदिखन I
विमलजी, नीलू आ दीपू,
संग तीहूँ के लेने छी I
रहय स्कूटर पुरनका,
लादि तीहूँ के लेने छी II
भीड़ अछि अनगिन तते जे-
देह मे रगड़ा लगै छै I
लोक की पुस्तक ख़रीदत,
नाक मे गरदा भरै छै II
विमलजी अछि पांच, दीपू-
सात, नीलू नौ बरख के I
भीर मे सब चलि रहल छै,
ध्यान नश्ते दीस सबके II
ध्यान भीरे पर रहय, सब-
मुदित मन स’ चलि रहल अछि I
जखन नीचा दीस देखलहुँ,
विमलजी नहि दिख रहल अछि II
खोजै छी तीनू गोटे मिलि,
मुदा कत्तहु ने देखै छी I
दुहू के कय ठाढ़ कत्तहु,
एकसरे खोज’ चलै छी II
आँखि नोरें, ध्यान हनुमत्-
एनाउंसर काउंटर खोजै छी I
तही बिच मे माइक पर-
उद्घोष-‘विमलेन्दु’क सुनै छी II
दौड़िक’ पहुँचैत छी-
कानैत बौआ के देखै छी I
लगा छाती-उठा कोरा,
दिबी-नीलू लग अबै छी II
की घुमब मेला ने एक्को-
टा ओत’ पुस्तक लेलहुँ I
तुरत्ते सब क्यो विदा भय,
अपन डेरा पर एलहुँ II
पहुँचलहुँ डेरा कुशल स’,
जान मे पुनि जान आयल I
‘छोट बच्चा ल’ ने मेला–
जैब कहिओ’- कसम खायल II
एखन चेन्नै मे विमलजी,
एकसरे सबतरि घुमै छथि I
कोनो चिंता-फिकिर ने किछु,
मजा मे सब क्यो रहै छथि II
सोचै छी ओइ दिनक दृश त’,
कलेजा मुँह मे अबै अछि I
जँ ने ओइदिन विमल भेटितय,
प्राण मम उपरे टंगै अछि I
छोट बच्चा संग जँ क्यो-
घुमक मेला लेल जायब I
अछि निवेदन हमर जे,
बच्चाक हरदम ख्याल राखब II
चुकि गेला स’ बाद मे त’,
मात्र पछताब’ पड़ै छै I
सावधानी सतत राखी,
समय ने घुरिक’ अबै छै II

कार्तिक पूर्णिमा


नब्बे इस्वीक कार्तिक पूर्णिमा
जिनगी भरि याद रहत I
बिहार मे कार्तिक पूर्णिमाक बड प्रशस्ति
अधिकांश लोक नदी/संगम स्नान लेल जरूर जाइछ I
नीलूक मायक मोन भेलनि
गंगा डूब दी I
स्कूटर स’ दूनू गोटे विदा होई छी
बांसघाट मे स्कूटर लगाक’
गंगा किनार जाइत छी
जल बहुत गंदा
संगहिं मग्गह स्नान स’ कोनो पूण्य नहि  
तैं बांसघाट मे स्नान करबाक मोन नहि होइछ I
दू परिवार ओहिठाम ठाढ़ छी
छोट-छीन नाव ल’ क’ एकटा नाविक अबैछ
दूनू परिवार ओहि मे बैसैत छी
एखन प्रतिबन्ध छैक
ओहि समय मे छूट छलैक
नदीक जल स्पर्श करैत
हाजीपुर साइड जाइत छी I
प्रथम श्रीमतीजी,
पुनि दोसर परिवार
आ अंत मे हम स्नान करै छी I
हेलनाइ जनित छी
हम हेल’ लगलहुँ
पैरो भासिआइत छल
नाविक मना करैछ
हम हेल्नाई छोड़लहुँ
नव के नजदीके मे नहा रहल छी I
तखने देखैत छी
दस टा किशोर गेंद खेलाक’
पसीने लथपथ
कुदैछ गंगाजी मे
सब तुरत घुरि आयल
मुदा एकटा बालक आगाँ बढि गेल
किछु कालक बाद सबहक ध्यान ओकरा दिस जाइछ
अरे ई की !
मात्र ओकर हाथ जल स’ ऊपर अछि
अरे! ई त’ डूबी रहल अछि
-   ‘जा हउ नाविक कने दौडह’
-   ‘नहि सरकार हम नहि जेब, हम डुबि जैब’
हमर मोन होइछ हम दौडिक’ ओकर जान बचाबी
मुदा से नहीं भ’ सकल
श्रीमतीजी हमर हाथ पकडि लेली
ओ बालक डुबि गेल I
काश ! कियो ओकरा बचा लैत !
गंगा मे हरदम लोक के धोखा भ’ जाइछ
ऊपर मे गति विल्कुल नहि
अन्दर मे तीव्र करेंट I
हाजीपुर साइड मे
सुखायल समय मे बालु निकालल जाइछ
ट्रकक ट्रक
कात मे मात्र तीन-चारि फीट गहींर
मुदा सडेन पचासों फीट गहराई
तै पर नीचा मे भयानक करेंट
नित्यप्रति लोक धोखा मे डुबैछ I
आइ अपना आँखि स’ देखल
अपटी खेत मे एक निरीह के प्राण जाइत
दसो दोस्त मे स’ एकोटा बचाब’ नहि एलेक
बाह रे दोस्ती
समय एला पर सब अपन जान बचाक’ भागल

काश ! कियो ओकर जान बचबैत I

Monday, August 22, 2016

एकटा आर सपनौर


छोट शहरक बात थिक,
दस गोट अंग्रेजक महल छल I
बगल के बस्ती मे चारूकात,
हिन्दुस्तानी बसल छल II

विदेशीगण सुखी संपन्न,
ठाठ-बाटें स' रहै छल I
आर चारूकात के सब-
मजूूरी ओत्तहि करै छल II

मर्द जाइ छल खेत, महिला-
काज महले मे करै छल I
भेटै मजदूरी तही स’-
गुजर सब लोकक चलै छल II

‘फ्रायड’ के ओहिठाम ‘सोनमा’-
करय सबटा काज सब दिन I
मात्र सुतबा लेल जाइ छल-
रात्रि मे निज गेह नित दिन II

भेलै आन्दोलन ‘बियालिस’-
पकड़ि गोरा के पिटै सब I
ओतहु पसरल बात सबटा-
सतत शंकालू रहै सब II

तुच्छ बुद्धिक लोक सब-
जुटि, साँझ मे बैसार केलकै I
दुष्ट अंग्रेजक महल के,
राइत मे निश्चय जरेबै II
सुतल रहतै फिरंगीगण,
आगि मे सब जरा देबै I
ओकर सबहक ध’न-सम्पति,
ह’मसब मिलि उड़ा लेबै II 

सुनल सोनमा बात सबटा,
जखन ओ सूत’ गेलै I
दौड़ि पड़लै मालिकक घर-
‘सूचना झट स’ देबै’ II

छलै लागल भनक किछु-किछु-
फिरंगी शंकित रहै छल I
ओहो सब साकान्छ, भागक-
लेल तैयारी करै छल II
गेट के पीटैछ सोनमा,
जोर स’ चिचिया उठल I
रात्रि बारह बजे, शंकित-
फ्रायड फाटक दिस बढ़ल II

हाथ मे बन्दूक रखने,
जोर के आव़ाज सुनलक I
खोलि फाटक लक्ष्य क’क’,
तीन गोली तुरत दगलक II

दौड़िक’ गेल त’ देखै अछि,
चित्त भ’ सोनमा खसै अछि-
-‘ अहाँ मालिक तुरत भागू,
भीड़ मार’ लै अबै अछि ’ II

एते कहि सोनमा मरल,आ-
फ्रायड क्रंदन करि रहल अछि I
हड़बड़ी मे कैल कृत पर,
माथ-छाती पिटि रहल अछि II

लगाक’ सोनमा के छाती-
स,’ तुरत सबके जुटायल I
दैछ सब सैल्यूट पुनि-पुनि,
फिरंगी झट सब पड़ायल II

सुनल छल 'सपनौर', 'अहि' स’-
शिशुक रक्षा लड़ि केने छल I
मुदा शंकित मोन मालिक,
जान ओकरे ल’ लेने छल II
आइ त’ सप्नौर एकटा,
फेर स’ मारल गेलै I
विना सोचने कृत्य के
परिणाम एहने टा हेतै II

" मोन शंकित, चित्त थिर नहिं,
काज मे जे करय हड़बड़ I
हैत पश्चाताप, लौटत-
कैल नहि, सब हैत गड़बड़ II "

Thursday, August 18, 2016

कलियुगक उपकार ह्त्या बराबर


बालजी केर छोट चच्चा,
दानपुर मे रहि रहल छथि I
भेट हुनका स’ करक लेल,
कार स’ ओ जा रहल छथि II
बाइक पर आरूढ़, एकटा-
लोक आगाँ मे देखायल I
मारि धक्का तीव्रतें एक-
कार तेजी स’ पड़ायल II
खसल बाइकर भूमि पर आ,
दर्द स’ चिचिया रहल अछि I
बाल रोकलनि कार, घायल-
के पकडि बैसा रहल छथि II
सोचल घायल के उठा,
गाड़ी मे होस्पीटल ल’ जेबनि I
मुदा दस बाइकर अचानक,
बाल के चट घेरि लेलकनि II
बाल के द’सो पकडि क’
पीठ माथा फोड़ि देलकनि I
संग मे जे छलनि पैसा,
सेहो सबटा छीनि लेलकनि II
शोणिते अंगा भिजल छनि,
कोनहुना कुर्जी पहुँचला I
दवा-दारू भेल बहुते,
ऊठि क’ पुनि बैसि सकला II
असल दोषी के ने किछु भेल,
मारि नाहक बाल खेलनि I
आब फेरो ने फंसब, खेलनि-
सपत, दुहु कान धेलनि II
भले मरि जेतै कियो, नहि-
आब कहियो घुरि क’ ताकब I
देखिक’ घायल मनुज के,
जान ल’ क’ दूर भागब II
भले भौतिक हानि पहुँचय,
बालजी! तजिऔ निराशा I
पारमार्थिक लाभ भेटत,
अहीं सब धरनीक आशा II

Tuesday, August 16, 2016

दिव्य-पुरुष


एक बेरक बात थिक हम-
गाम दिस क’ जा रहल छी I
स्वयं प्रातःकाल मे गाड़ी-
चलाक’ जा रहल छी II
            साँझखन ड्राइभर के तकलहुँ,
            भेट एक्को नै सकल I
            तैं स्वयं यात्राक लेल,
            गाड़ी चलाक’ जै पड़ल II
मुदा ड्राइभर सब बहुत-
रफ़्तार, रफ गाड़ी चलाबय I
स्वयं ऑनर सेफ, कम-
स्पीड मे गाड़ी चलाबय II
             पहुँचलहुँ बाजार एकटा,
              खूब धीरे स’ चलाक’ I
             बाम स’ एक वृद्ध एला -
             हडबडा साइकिल चलाक’ II
ब्रेक पर चढ़ि रोकल गाड़ी,
मुदा बुडहा खसि पडै छथि I
पर तुरत्ते झाडि कपड़ा,
झटकि क’ आगाँ बढै छथि II
             तावते मे देखै छी जे-
             पचासो चेंगड़ा जुटल अछि I
             घेरि क’ चारू तरफ स’,
             पाइ झित्वा लै टुटल अछि II
             
  केला ओ सब खूब झगड़ा,
  पर ने चाभी छीन सकला I
  तही क्षण एक खूब नमगर,
  व्यक्ति ओइठाँ आ धमकला II
            प्रभावी व्यक्तित्व कुरता-
            पहिरने छथि खूब झक-झक I
            पुष्ट तन नमगर भुजा आ-
            पायजामा खूब चक-चक II
                       आबि हमरा ल’ग मे-
                       पुछला, कहू की बात छै I
                       कहलिअनि आद्यंत सबटा,
                       बात भेल जे जे छलै II

बात बुझि क’ ओ पूछै छथि-
चोट खेलक से कत’ गेल I
हम कहलिअनि- ओ बहुत-
पूर्वे अपन गंतव्य चल गेल II
                   ओ तखन चिचिआय उठला-
                   ‘भाग छुतहर सब एत’ स’ I’
                  -‘अहाँ श्रीमन् ! की सोचै छी,
                   अहूँ झट घसकू एत’ स’ II’
खूब दय धनवाद हुनका,
इष्ट के परनाम केलहुँ I
ध्यान क’ क’ पवनसुत के,
गाम दिस गाड़ी बढ़ेलहुँ II
                    
हाल की होइतै, पदार्पण-
जँ ने हुनकर होइत तत्छन I
शायद सज्जन रूप धरिक’,

पवन-नंदन कैल रक्षन II

Monday, August 15, 2016

शीलं परं भूषणं


भ' रहल शास्त्रार्थ दू टा पंडितक बिच,
हारि-जीतक फैसला नै भ' पबै अछि I
दुहू छथि षट्शास्त्र के ज्ञाता-महा,
पैघ-छोटक फैसला के क' सकै अछि II
व्याकरण, साहित्य, ज्योतिष,
दुहू के जी पर रटल छन्हि I
कर्मकाण्डक दुहू ज्ञाता,
वेद आ न्यायो पढ़ल छन्हि II
आशुकवि छथि दुहू पंडित
श्लोक सब झट द' बनाबथि I
गणित संग फलितो के ज्ञाता,
कुण्डली चट स' बनाबथि II
कैक दिन शास्त्रार्थ भेल,
निष्कर्ष किछुओ ने भेटल I
संत एक ओइ मार्ग स’,
छल जा रहल, झगड़ा पेखल II
शिष्य के पठबाय तैठाँ,
बात गुरु सब टा बुझल I
बजौलनि पंडित उभय के,
बात दूनू के सुनल II
अलग स' एकांत मे ओ,
दुहू के ल’ जाय पुछलनि I
लोक मे व्यवहार के की-
नीति, दुहुजन केर बुझलनि II
एक बजला ‘शठे- शाठ्यं’
अपर ‘शील’क पक्ष लै छथि I
गुरु पुनः व्याख्या करक लेल,
दुहू पंडित के कहै छथि II
-‘नीक संग मे नीक,दुष्टक-
संग हम दुष्टे बनै छी I'
पहिल भाखल-' शठक संग हम
महाशठ बनिक' रहै छी ’ II
अपर-‘सज्जन संग सज्जन,
शठो संग सज्जन रहै छी I
सकल वसुधा मित्र अछि मम,
मित्रते सब स’ रखै छी’ II
संत गुरु झट बाजि उठला-
" शील थिक भूषण परम  I
' शठ संगे शठ ' के क्रिया त’,
नीति थिक अतिशय अधम " II

Saturday, August 13, 2016

काज जकरे साजय तकरे

छुट्टी भेलै इस्कूल मे,
हट्ठाक ब’डद जेना फूजल I
दौडिक’ चटियाक यत्था,
एगच्छा लग जा जुटल II
बाध मे आमक झमटगर-
गाछ एक्केटा छलै I
तही द्वारे नाम ओक्कर,
एगच्छा चर्चित भेलै II
ओतय क्षण विश्राम क’ क’,
छात्र सब आगाँ बढै छल I
आबिक’ भल्ली पोखरि के,
गाछ-पाकरि तर रुकै छल II
भूमि पर लतरल छलै-
दू डारि तै पर सब झुलै छल I
थोड़े झूला झूलि गामक बाट –
सब चटिया धरै छल II
आइ, बड़हीटोल लग छल,
एक रिक्शा ठाढ़ आगू I
फानि हम झट सीट चढलहुँ,
संग दू टा दोस्त पाछू II
साइकिलो चलब’ ने आबय,
कोना क’ रिक्शा ओ चलितै I
जहाँ पैडिल देल कि-
दस फूट खधिया मे जा खसलै II
थाल-कादो भरल तन-
सबलोक पोखरि में कुदै छी I
स्नान कपड़ा धो सुखा, पुनि
गाम पर चुपके अबै छी II
याद पडि गेल नङरकट्टा-
कपिक नांगरि फँसि गेलै I
सकल बानर मीलि घिचलक,
मुदा नांगरि कटि गेलै II
भेटल शिक्षा क्यो ने अनबुझ-
काज मे निज हाथ डाली I
काज जनिक साजय तनिक, नहि-
जान अपटी खेत डाली II