Monday, December 28, 2015

तस्कर


काम क्रोधक संग लालच उर के तस्कर, सतत लागल-
ज्ञान रत्नक हरण लेल, तैं रहू जागल रहू जागल...
शुप्त के भेल ज्ञान अपहृत, बुद्धि शीघ्रहिं भ्रष्ट होमय,
बुद्धि भ्रष्टक बाद मनुजक, शीघ्र जीवन नष्ट होमय...
नाश करवा लेल काफी, चोर हो एको जतय,
जं जुटल तिहुं, नाश के संदेह लेशो  ने रहय...
                   जागल रहू, जागल रहू....  
                ‘मनुष्य के ह्रदय में काम, क्रोध, लोभ नामक तीन टा चोर ज्ञान रत्नक अपहरण करवा लेल निवास करैछ, तैं जागू, जागू. सूतल लोकक ज्ञान के तीनू चोर अपहरण करैछ. ज्ञान के अभाव में वुद्धि भ्रष्ट होइछ. बुद्धि नाशक पश्चात् शीघ्रे जीवन समाप्त भ’ जाइछ. मनुख के नाश करवा लेल एको टा चोर पर्याप्त अछि, मुदा जं तीनू जुटि गेल त’ लेशमात्रो संदेह नहि रहय; अर्थात् नाश निश्चय, तयं जागू, जागू.’     


Sunday, December 27, 2015

प्रज्ञा हीन

शास्त्र किछुओ कय सकत नहि, ज्ञान के नहि छूति जनिका.
नेत्र स’ जे मनुज बंचित, आइना की करत तनिका...
धूर्त अज्ञानी मनुज स्वार्थानुसारे भाव बांचय.
लोक मे विष बमन कय विद्वेष के वह्निहिं पसाहय...
जन्मांध छ’ टा व्यक्ति लग गजराज एकटा गेल राखल.
एक हाथी लेल भिन-भिन छ’ प्रकारक भाव आयल.
कान पंखा, खाम्ह जंघा, पीठ छू दीवार कहला,
सांप नांगरि, सूंढ़ धनु आ दांत छू बरछी ओ बजला.
ज्ञान लोचन स’ रहित जे नेत्र रहितो आन्हरे अछि,
महिष आगाँ बीन, दर्पण-शास्त्र सब तै मूढ़ लेल अछि. 

Saturday, December 26, 2015

धर्म-चिंतन

 अजर अमर विद् बूझि निज, विद्या आ अर्थक करथु अर्जन.
काल गहने केस के अछि,  सोचि धर्मक करथु चिन्तन...
अर्थ-ज्ञानक उपार्जन बेर प्राज्ञ  जल्दी  नहि देखाबथि ,
मनन-चिन्तन नीक स' हो, चित्त थिर हो ख्याल राखथि.
मुदा धर्मक बेर बेसी मनन-चिन्तन करक नहि अछि,
जते जल्दी भ’ सकय अर्जक फटाफट ध्यान राखथि...
रटू अक्षर सूत्र कोषो ज्ञान लेल, नहि धडफडी,
अर्थ सेहो जुटि सकत नहि जं देखायब हड़बड़ी.
बजाहटि जं आबि जायत रहत बांकी धर्म अर्जन,
छोडि सबकिछु शीघ्रता करु हे मनुज परमार्थ चिंतन...
नित्य सूतय काल सोचू, आइ की-की धर्म केलहुं.
कते दीनक कैल सेवा, दु:ख कते दुखियाक हरलहुं...
श्रिष्टि के सब जीव शिव के रूप बुझि सेवा करू.
छी हम्ही सव जीव मे नहि आन क्यो भावें रहू....
धरणि धारथि जीव के तन कर्ज जिनगी भरि रहत,
जान देलो स' ने कहियो मात्रिभूमिक ऋण सधत II

Thursday, December 24, 2015

साधु


     महद् वृक्षक सेवने फल छांह दूहूँ नर लभै अछि.
     ज' कदाचित फल ने भेटल, रोकि के छाँही सकै अछि...
   मात्र छाहक लेल ज’ क्यो वृक्ष के सेवन करै अछि.
ज’ कही नहि पात तरु मे त' निराशा भ' सकै अछि...
पत्र फल जै गाछ मे नै, ठुट्ठ  की तरुवर कहायत.
जल रहित जे वृहद् माटिक खाधि की सरवर कहायत...
छांह संगहि फल जरूरी महत्ता के लेल अछि.
मुदा नमता त्याग के विन श्रेष्ठता ओ फ़ेल अछि...
की कतहु तरु खाइछ फल वा सरित पीबथि नीर के.
साधुगण परमार्थ कारण धरथि अपन शरीर के...
स्वार्थ मे आन्हर मनुज कहिया बुझत निज फर्ज के.
सधायत पावक पवन जल गगन भूमिक कर्ज के...
करू रक्षण पञ्च तत्वक विश्व हित के ध्यान धरिऔ.
माय मम पर्यावरण थिक प्रदूषित कखनो ने करिऔ...
बन्धु! जं एखनो ने चेतब श्रृष्टि के नै बचा पेबै.

स्वयं कुरहडि मारि पदपर दोष ककरा अहाँ देबै...
                                ............कमल जी .                               

Friday, December 18, 2015

कमल जी (भाग 1)


जन्म तिथी – २६.११.१९५५
शिक्षा
लोअर क्लासेज - पहला:-   करमौली प्राथमिक विद्यालय (मधुबनी).
दूसरा, तीसरा :- रेलवे इन्स्टीट्यूट, धनबाद. वर्ग 4 से 7 तक :- माध्यमिक विद्यालय कपरिया (मधुबनी).
वर्ग ८ से ११ तक :- उच्च विद्यालय, कलुआही (मधुबनी ).
इंटरमीडिएट साइंस :- सी.एम. कॉलेज, दरभंगा.
बी. एससी. इंजीनियरिंग (सिविल):- बी.आई.टी, सिंदरी,  (प्रथम श्रेणी विशिष्टता सहित), वर्ष- १९८०; (वर्ग १० से इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष तक राष्ट्रीय मेधा छात्रवृत्ति से सम्मानित) .
११.१२.१९८० - बिहार सरकार, लोक निर्माण विभाग,पटना में योगदान. तत्पश्चात
३१.१२.१९८० से वर्ष ८३ तक  – ग्राम्य अभियंत्रण संगटन, अग्रम योजना प्रमंडल, रांची.- डिजाइन एंड प्लानिंग ऑफ सो मेनी ब्रिजेज एंड रोड्स. मुख्य रूप से- घाट बाजार-हुरदा रोड, सिमडेगा- कुरडेग रोड, संख रिभर ब्रिज, खूंटी ब्रिज इत्यादि .
वर्ष ८४ से ८९- वीरपुर, कन्स्ट्रक्सन ऑफ सो मेनी गवर्नमेंट बिल्डिंग.
 ९० से ९५- अग्रिम योजना प्रमंडल संख्या-1, भवन निर्माण विभाग, बिहार, पटना . एस्टीमेसन, प्लानिंग एंड डिजाईन ऑफ़ सो मेनी बिल्डिंग्स .
 ९५ – भवन अवर प्रमंडल, दलसिंगसराय :- एस. डी. ओ. कोर्ट, सिविल कोर्ट, डी. एस. पी. ऑफिस, इत्यादि के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान .
 ९६-२००० – भवन अवर प्रमंडल सं-2, दरभंगा :- मेंटीनेंस एंड कंस्ट्रक्सन ऑफ़ गभर्न्मेंट बिल्डिंग, अंडर सब-डिविजन नं-2, बी. सी. डी., दरभंगा.
 २००१-०३, -सहायक अभियंता से कार्यपालक अभियंता में प्रोन्नति के पश्चात् का. अ., भवन निरूपण अंचल सं. 1, पटना में पदस्थापन :- अनेकों भवनों का निरूपण एवं तकनीकी स्वीकृति .
 २००३-२००८ :- का. अ., भवन प्रमंडल, बांका :- सदर अस्पताल, समाहरणालय, परिसदन, मंडल कारा, सिविल सर्जन कार्यालय, सिविल सर्जन आवास, इत्यादि के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका .
२००८ में कुछ दिन के लिए छपरा भवन प्रमंडल में का. अ. :- सुपरविजन ऑफ़ प्रोजेक्ट्स अंडर कंस्ट्रक्सन .
 २००९ :- का.अ., भवन निरूपण अंचल सं.- 2 :- अनेकों भवनों का निरूपण एवं तकनीकी स्वीकृति .
 २०१०-२०१३ – का. अ. से अधी. अभि. में प्रोन्नति के फलस्वरूप पटना भवन अंचल में अधीक्षण अभियंता के रूप में २०१० से २०१३ तक पदस्थापन . टी.एस./ सी.एस./ इन्स्पेक्सन ऑफ़ सो मेनी बिल्डिंग्स अंडर बी.सी.डी., पटना सर्किल .
 २०१३ से ३०.११.२०१३ – मुख्य अभियंता, दक्षिण के स.प्रा. एवं मुख्य अभियंता, पटना के सर्जन के पश्चात् मुख्य अभियंता, पटना के स. प्रा. के अतिरिक्त प्रभार में. कार्य-क्षेत्र अंतर्गत संचिकाओं का निष्पादन.                                               

                          किसी ने पूछा कि आपकी उपलब्धि क्या है ? – उपलब्धि इतनी है कि एक साधारण किसान का लड़का इंजिनियर बन गया. धान के खेत में धान कटाते-कटाते, बगीचे मे आम की रखवाली करते-करते इंजिनियर बन गया. कभी सोचा भी नहीं था कि इंजिनियर बनूंगा. लेकिन इतनी बात है कि खेती में मन नहीं लगता था. गाँव के ब्रह्मचर्याश्रम में भैया के साथ जाने लगा. गुरूजी के पास अच्छा लगने लगा. बगल के लोअर स्कूल में हम उम्र के बच्चे के साथ भी जाने लगा. लोअर स्कूल में मेधाबी बच्चे जाते थे ; ब्रह्मचर्याश्रम में अपेक्षाकृत मंदबुद्धि बच्चे जाते थे. संस्कृत के पुस्तक भारी थे. लोअर स्कूल में एक ही किताब थी. अतः आसान लगने के कारण लोअर स्कूल अच्छा लगा. मनोहर पोथी को चित्र देखकर रट गया, भले ही पढ़ना नहीं जानता था. उस समय अपनी मेधा के बारे में कुछ नहीं कह सकता हूँ.  हलांकि बहुत सारे अधिक मेधाबी छात्र पढ़ रहे थे.
                            इसी बीच मेरे जीवन क्रम में एक वृहत परिवर्तन की बात हुई. मेरी सेकण्ड भाभी (हरी भैया की पत्नी) को तपेदिक हो गया. उन्हें दिखाने के लिए धनबाद ले जाने की बात हुई. उस समय सबसे बड़े भाई और सेकण्ड एल्डेस्ट भाई धनबाद रेलवे में कार्य करते थे. मैं भी उन लोगों के साथ धनबाद चला गया. रेलवे स्कूल में दूसरी कक्षा में मेरा नाम लिखाया गया. हिन्दी और गणित दोनों मेरे रटे हुए विषय थे. वहाँ अंग्रेजी पढने का मौक़ा मिला. मेरी कक्षा के बच्चे जब तक एक पन्ना पढ़ पाते थे, तब तक मैं पूरी किताब पढ़ जाता था . मात्र एक नया विषय अंग्रेजी थी, जिसमें मजा आने लगा . दूसरी एवं तीसरी कक्षा में वर्ग में प्रथम आ गया . पूर्व में दमयंती नाम की लडकी प्रथम आती थी जो सेकण्ड आने लगी . गणित के लिए मूल सिलेबस से इतर एक चक्रवर्ती की किताब से सवाल बनाने लगा . अपने से सीनिअर छात्रों तथा शिक्षकों से भी परामर्श लेने लगा . एक कंपौंडर आता था जिससे गणित में काफी मदद मिली . रास्ता के किनारे रेलवे क्वार्टर के सामने पटिया/ बोरा बिछाकर सवाल बनाता था . एक दिन बोरा पर किताब छोड़कर डेरा में किसी काम से गया . इसी बीच एक गाय आकर किताब खा गयी . पुनः किताब खरीदा कि नहीं यह याद नहीं है लेकिन मेरा गणित काफी मजबूत हो गया .
                        तीसरे  वर्ग में प्रथम आने पर काफी सम्मान मिला . चौथा में नाम लिखाया . अप्रैल तक उस स्कूल में पढ़ा, उसके बाद गाँव आ गया. इसी बीच मुझसे बड़े एवं  छोटे भाइयों (पांच भाइयों में मेरा स्थान चौथा है ) के साथ मेरा जनेऊ संस्कार हुआ. कार्यक्रम समाप्त होने के बाद पढ़ाई के सम्बन्ध में बातचीत हुई. गाँव में उस समय मिडिल स्कूल खुल गया था. लेकिन पड़ोस के दो सीनिअर्स अमीर भाई और चंदू भाई मिडिल स्कूल कपरिया स्कूल (गाँव से दो कि.मी. दूर पश्चिम-उत्तर) में पढ़ते थे, अतः मैंने भी वहीं चौथी कक्षा में नाम लिखाया . धनबाद से लाये गए पुस्तकों में से केवल हिंदी और गणित ही यहाँ भी काम आये, अन्य पुस्तक अलग थे. मेरी अंग्रेजी उच्च स्टार की हो गयी थी, जबकि यहाँ मेरी कक्षा के लड़के वर्णमाला सीख रहे थे. कुछ तकलीफ भी हो रही थी क्योंकि मैं कुछ आगे की अंग्रेजी सीखना चाह रहा था; परन्तु यहाँ साथ में चलना था . कुछ फायदा भी हुआ चूंकि लड़के मुझसे गणित और अंग्रेजी सीखने आते थे. इतिहास, विज्ञान, समाज अध्ययन, भूगोल इत्यादि सिलेबस की किताबें नहीं खरीद सका चूंकि अन्य लेखक की किताब पास में रहते हुए अपव्यय लगा. पुस्तक के मामले में पैसा बचाना उचित नहीं है. फिर भी पीछे मुडकर देखने से लगता है कि किताब नहीं खरीद कर अच्छा ही किया. चार पांच लड़के तिलक, वैद्यनाथ, सीताराम, ढोढाइ, सुमन, चन्द्रमोहन साथ में पढ़ते थे .उनलोगों से किताब मांगकर लाता और अधिक से अधिक पढ़ने और लिखने का प्रयास करता. फल ये हुआ कि जिन विषयों किताबें नहीं थीं उन विषयों की तैयारी पहले हो गयी. हिन्दी, गणित, अंग्रेजी में मैं मजबूत था ही. कुछ सीनियर्स अमीर भाई और चंदू भाई से मदद का भी लाभ मिला. मैं सशंकित रहते हुए भी आराम से वर्ग में प्रथम आ गया. वर्ग पांच से सात तक तो अपनी किताब हो गयी, फलतः पढ़ाई में रूचि भी जग गयी और फिर मैं छः माह में ही गणित आदि को ख़त्म कर आगे की गणित देखने/ सीखने लगता था चूंकि सीनियर्स के साथ रहता था तो आसानी हो जाती थी. कपरिया मिडिल स्कूल में सभी वर्गों में प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए बिहार प्राथमिक शिक्षा बोर्ड से प्रथम श्रेणी में सातवाँ पास किया. चार साल पूर्व मिडिल स्कूल के प्रधानाध्यापक श्री यमुना बाबू ने हाई स्कूल खोल लिया था और उसी परिसर में उच्च विद्यालय भी चल रहा था. सातवाँ पास करने पर जब निकलने की बारी आयी तो प्रधानाध्यापक उसी उच्च विद्यालय में नाम लिखवाने की जिद पर अड़ गए. विद्यालय त्यजन प्रमाण पत्र लेने के लिए पिताजी और रामचंद्र काकाजी गए थे . उनलोगों ने मान भी लिया था लेकिन मैं कलुआही स्कूल में जाने के लिए अड़ गया. बेमन से यमुना बाबू ने त्यजन प्रमाण पत्र दिया .
                 जो होता है वो अच्छे के लिए ही होता है. उस समय में कलुआही उच्च विद्यालय का पूरे इलाका में बड़ा नाम था . नाम लिखाने से पहले ही मैं तीन चार दिन वहाँ जाकर क्लास में बैठ चुका था . चारों तरफ के बहुत सारे नामी मिडिल स्कूल के लड़कों के बीच बैठ कर बहुत मन लगा था . यही कारण था कि कलुआही स्कूल के बारे में बहुत नहीं जानते हुए भी मेरा जी वहां नाम लिखाने के लिए मचल रहा था . यमुना सर को काफी कष्ट हुआ होगा लेकिन मेरे लिए यह मंगलकारी हुआ . यह इसलिए कि बाद के दिनों में मैंने देखा कि जो अच्छे लड़के कपरिया उच्च विद्यालय में रह गए वे अच्छा नहीं कर पाए. कुछ लड़के बाद में नाम कटाकर कलुआही आए लेकिन वे भी अच्छा नहीं कर सके. नया माहौल के कारण अथवा अन्य कारणों से मैं आठवां में सेकण्ड कर गया. नौवां में मैंने जान लगा दी और प्रथम स्थान पाया . उसके बाद मैं सभी वर्गों में प्रथम आता रहा.

नौवां पास करने के बाद दसवां में नाम लिखाया . नौवां में शायद उतना अंक कलुआही उच्च विद्यालय में किसी को नहीं आया हो. जनवरी माह में ही मेरे पीछे कई शिक्षक लग गए और गणित के शिक्षक ने सफलता प्राप्त की . गणित के शिक्षक श्री महावीर झा हमारे इलाके के गणित के प्रकांड विद्वान् थे . उनके शिष्यों की संख्या अनगिनत थी . नवाह राम-नाम संकीर्तन चल रहा था . कलुआही उच्च विद्यालय के सभी शिक्षक, प्रधानाध्यापक सहित नवाह स्थल पर पधारे . तत्पश्चात सभी लोग मेरे दरबाजे पर आये . कलुआही उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्रद्धेय तपस्वी बाबू, करमौली ब्रह्मचर्याश्रम के गुरूजी श्रद्धेय पंडित श्री जय माधव ठाकुर के बहनोई लगते थे . गुरूजी इस शादी के विरोधी थे, लेकिन उनलोगों ने उन्हें ही साथ में ले लिया . फलतः गुरूजी को बेमन से उनलोगों के तरफ से, उनके साथ जाना पड़ा . पिताजी के लिए इससे अधिक खुशी का दिन हो नहीं सकता था . एक गरीब निरक्षर किसान के घर इतने सारे प्रतिष्टित विद्वान् जो पधारे थे . सम्पूर्ण गाँव के लोगों का जमावरा मेरे दरबाजे पर हो गया . सभी लोगों की इक्षा शादी तय कर दिए जाने के पक्ष में थी . मैं इतना शर्मीला स्वभाव का था कि शादी का नाम सुनकर लाख बुलाने पर भी दरबाजे पर नहीं गया . अंततः मेरी शादी मुझसे विना कुछ पूछे हुए तय हो गयी . उस समय पूछने का प्रचलन भी नहीं था . पिता के तय किये हुए रिश्ते को ही श्रद्धापूर्वक मानना पुत्र का कर्त्तव्य था .     

Tuesday, December 15, 2015

(३०.११.२०१५) के संस्मरण


अवकाशग्रहण के अंतिम दिन का एक-एक पल आँखों के सामने नाच रहा है. उनतीस की शाम से ही आभास होने लगा कि परसों से जीवन का नया चैप्टर शुरू होने जा रहा है और आध्यात्मिक जीवन जीने का पूर्वाभास हुआ . तपेश्वर जी (जी.एम. फाइनेंस, बी.एस.बी.सी.सी.एल.) के घर पर २९.११.१९५५ की शाम को कीर्तन-भजन का आयोजन था. उन्होंने २८ को कीर्तन में शामिल होने का निमंत्रण दिया. मैंने ड्राइभर नहीं होने की बात कही तो उन्होंने गाड़ी सहित ड्राइभर भेजने की बात कही; मैं निरुत्तर हो गया. २९ की शाम में उनकी गाड़ी आई. मैं विलम्ब होता देख पहले ही शिव मंदिर पर चला गया था. वहाँ पूजा कर प्रतीक्षा करने लगा. अधिक विलम्ब होता देख बगल के मौल में घूमने चला गया. एक बंडी खरीदने का सोचा था, लेकिन साइज का नहीं मिला. कुछ देर में ही ड्राइभर का फोन आ गया; वह जाम में फंस गया था. मंदिर के पास गाड़ी लगाकर खडा था. मौल से पैदल ही चलने का सोचा ताकि ड्राइभर मुझे खोजने में फिर न भटक जाय. आकर गाड़ी में बैठकर विदा हुआ. रास्ते में जगत ट्रेडर्स में सी.ए. के एक टीचर को साथ लेना था, वे तपेश्वर जी के ट्यूटर रह चुके थे. उनको साथ लेकर तपेश्वर जी के घर पहुंचा; वहाँ सांई राम का भजन चल रहा था. भजन-कर्ता लोग इतनी भक्ति से गा रहे थ कि मै भी भक्ति रस में डूब गया. बहुत आनंद आया. ९:१५ तक भजन-कीर्तन चला. उसके बाद प्रसाद ग्रहण करना था. मूल प्रसाद (लघु) के बाद वृहत प्रसाद (भोजन) का कार्यक्रम था. वृहत प्रसाद (पूरी, शब्जी, हलवा) ग्रहण कर विदा हुआ और क़रीब १०:३० में डेरा पहुंचा. तपेश्वर जी के यहाँ जाते वक्त ही गिरीश सर का फोन आया था कि कल आपको अपनी गाड़ी में कार्यालय नहीं जाना है, मैं अपनी गाड़ी में कल आपको ले चलूँगा. ३० की सुबह ९:३० में शिव मंदिर के पास चला गया. गिरीश सर को आने में कुछ देरी हुई तो दर्शन के पश्चात् ओपोजिट साइड में सैमसंग के शो रूम के पास खडा हो गया. गिरीश सर आये तो साथ में बैठ गया; विलम्ब का कारण उन्होंने ड्राइभर का विलम्ब से आना बताया. कार्यालय पहुंचकर कुछ महत्त्वपूर्ण संचिकाओं का निष्पादन किया. १२:०० बजे विशेष सचिव का फोन आया, उन्होंने अपने चैंबर में बुलाया था. वहाँ जाने पर देखा कि पहले से ही गिरीश सर, डी.डी.1 गुप्ताजी, कुछ योजना अभियंता (दुबे जी, जहांगीर, गुंजन) तथा पी.एम्.यू. के लोग बैठे हुए थे. गंगा सर ने रिटायरमेंट के बाद निगम में रखने की बात चलाई. गिरीश सर ने भी समर्थन किया. पुनः पांच बजे फेयरवेल में शरीक होने की बात कहकर उन्होंने छुट्टी दी. चैंबर में लौटा तो का.अ. पाटलिपुत्रा, योजना अभि. चंद्रा जी, का.अ. केन्द्रीय प्रमंडल, का.अ. सुरेन्द्र प्रसाद जी एवं अन्य कई यो.अभि. बैठे थे. तत्पश्चात उप सचिव 1 एवं 2, ओ.एस.डी., अंडर सेक्रेटरी शालिग्राम बाबू, का.अभि. अशोक जी आदि आये. उसके बाद मु.अ. त्यागी जी, सुनील बाबू, नवीन  बाबू, रमेश बाबू आदि आये. कुछ देर बाद गिरीश सर गंगा बाबू को साथ लेकर आये और उनके साथ हमलोग कॉन्फ्रेंस हौल में गए.
                        सर्वप्रथम गंगा सर ने बुके देकर स्वागत किया. उसके बाद गिरीश सर के साथ सभी मुख्य अभियंताओं ने बुके दिया. फिर हौल में उपस्थित पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों ने माला पहनाकर स्वागत किया. फिर गंगा सर ने ब्रीफकेस (श्रीमद्भगवद्गीता- स्वामी रामसुखदास टीका वाली, घड़ी, शौल, शर्ट, शूटपीस, पेनसेट इत्यादि सहित) देकर स्वागत किया. तत्पश्चात, योजना अभियंता श्री दुबे ने अभिनन्दन पत्र पढ़ा. पत्र में अंकित उद्गार सुनकर कलेजा भर आया. फिर गिरीश सर ने काफी प्रशंसा की और उसके बाद गंगा सर ने तो प्रशंसा के पुल ही बाँध दिए. मुझे तो गार्जियन तक कह दिया. निगम में ले चलने की बात बोली. अब मेरे बोलने की बारी आयी.
मेरा अभिभाषण :-   ““मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि परिश्रम का विकल्प कुछ नहीं है. यह इंटेलिजेंस पर भारी है. माँ लीजिये कि कोई लड़का काफी इंटेलिजेंट है और एक ही बार में समझ जाता है. दूसरा लड़का उससे मंद है और दो बार में समझता है. अब अगर दूसरा लड़का तीन बार या चार बार पढ़ ले तो वह पहले से अधिक नंबर ले आयेगा कि नहीं? जरूर ले आयेगा. सर लोगों ने मेरे सम्बन्ध में जो जो बातें कही हैं मै उसके योग्य नहीं हूँ. वल्कि सर लोग ही इतने अच्छे हैं कि उन्हें मेरे सारे कृत्यों में अच्छाई नजर आयी है. गिरीश सर के बारे में क्या कहूं! ये डी.सी. झा और भवानंद झा परम्परा के आदर्श अभियंता हैं. इनके साथ काम करके मैं अपने को गौरवान्वित महसूस करता हूँ. गंगा सर आदर्श प्रशासनिक पदाधिकारी हैं. मेरा एक आर्टिकिल आया था- ‘फ़ास्ट एंड स्टर्डी’ वह इन्ही के लिए था. हमलोग अभी तक सुनते आये हैं- ‘स्लो एंड स्टीडी विन्स दि रेस’. लेकिन अगर कोई ‘फ़ास्ट एंड स्टर्डी(= तगड़ा,प्रबल, मजबूत, दबंग,दृढ,पुष्ट,कडा,बलवान)’ है तो वह क्या करेगा. वह सभी रिकार्ड तोड़ देगा.
        सर लोगों के मेरे वारे में रखे गये उदगार को सुनकर आँखों  में आंसू आ गए थे. किसी ने उपलब्धि के बारे में पूछा था. मेरी तो सबसे बडी उपलब्धि यही है है कि एक गरीब किसान के घर जन्म लेकर इंजीनियर बन गया. बड़े भाई गाँव के ब्रह्मचर्याश्रम में पढने जाते थे. मैं भी ब्रह्मचर्याश्रम में गुरूजी के संपर्क में आया. अच्छा लगने लगा. पुनः बगल के अपर स्कूल में जाने लगा. यहाँ और मन लगा. फिर इधर ही पढ़ने लगा. लेकिन अभी सोचता हूँ तो लगता है कि संस्कृत पढता तो और अच्छा करता. जीन में संस्कृत था लेकिन जीन के विपरीत इंजीनियर बन गया. जीन के विपरीत कार्य करने पर अधिक परिश्रम करना पड़ता है. गिरीश सर के पिताजी इंजीनियर-इन-चीफ थे, इनके जीन में इंजीनियरिंग है.
   जूनियर पीढी के लिए कुछ सन्देश है. खूब परिश्रम करें. पोजिटिव सोच से काम करें. सब लोगों से प्रेम करें. बड़ों का रिस्पेक्ट करें. जाती-सम्प्रदाय से ऊपर उठकर काम करें. जब एक ही आत्मा सब जीवों में निवास करती है तो फिर अपना और पराया क्या? सब अपना ही है. प्रकृति से प्रेम करें, पर्यावरण संरक्षित करें.
     अंत में आप सब लोगों का कृतज्ञ हूँ कि इतना सम्मान दिया. धन्यवाद!””
        मेरे अभिभाषण के बाद अल्पाहार बांटा गया. उसके बाद सबलोगों ने आलिंगनबद्ध होकर विदाई दी. अपने कमरे में आ गया. कुछ देर के बाद गिरीश सर ने अपनी गाड़ी में बिठाकर डेरा तक लाया. उनका ड्राइभर सभी सामान डेरा में रख आया. गिरीश सर को विदा कर डेरा आया.

                डेरा में आकर एक-एक पल को याद कर अभिभूत हो उठता हूँ. गिरीश सर के उदगार सदैव याद रहेंगे. उन्होंने उस दिन की सारी व्यवस्था अपनी देख-रेख में की थी. साथ ही उस दिन उनका मुझे अपनी गाड़ी में ले जाना और फिर डेरा पहुंचा जाना सारी जिन्दगी याद रखूंगा.   .........KKJHA.

Sunday, December 13, 2015

छोटी-छोटी बातें


जीवन में छोटी-छोटी बातों का बड़ा महत्व है . प्रारम्भिक अवस्था में ही अगर वीमारियों का समुचित इलाज करा दिया जाय तो हम असंख्य लोगों की जान बचा सकते हैं जो समय अधिक हो जाने के कारण लाइलाज रोगों से मर जाते हैं . बच्चों की प्रारम्भिक छोटी- छोटी गलतियों को नजरअंदाज कर देने पर बाद के दिनों में वे बहुत घातक सिद्ध होती हैं और जिन्दगी भर पछताना पड़ता है . कई बच्चों को चोरी की आदत कुसंगति के कारण लग जाती है . कुछ गार्जियन बच्चों को डांट देते हैं . एक-दो बार डांट पड़ने से बच्चे इस तरह की अनेक गलत आदतों (झूठ बोलना, अशिष्ट आचरण, झगडा करना, गाली-गलौज करना, अश्लील हरकत करना इत्यादि) को छोड़ देते हैं . इसके विपरीत इन छोटी-छोटी गलतियों को नजरअंदाज कर देने अथवा बढ़ावा देने (कुछ माता-पिता बच्चों द्वारा चोरी कर लाये गए धन से खुश होते हैं) से बाद में वे भयंकर डकैत/ अपराधी/ आतंकवादी बन जाते हैं.
                  घर में घुस आये सांप को जरूर से जरूर भगा दें . पहले लोग मार देते थे . लकिन पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर भगा देना हितकारी है अन्यथा स्वभाव के कारण काट सकता है . एक वार मैं इस गलती को भुगत चुका हूँ इसीलिए यह सब कह रहा हूँ . दस-बारह साल बीत जाने के बाद भी कभी-कभी याद आ जाने पर टीस मारता है .
            छोटे-छोटे कृत्यों/ उपहारों से आप किसी का दिल जीत सकते हैं . भले ही कोई कितना ही धनवान हो . आपके ह्रदय से समर्पित छोटे उपहार का महत्व बेमन से दिए गए कीमती भेंट से काफी अधिक है .
                  मन से भी किसी का हित/अहित सोचने पर पहुँच जाता है . मन के सोच का तरंग (वेव) गंतव्य तक पहुंचे विना नहीं ठहरता. माँ बच्चे के प्रति किये गए कार्य को प्रकट नहीं करती; फिर भी बच्चा दिखावे के लिए अन्यों द्वारा किये गए व्यवहार को समझ जाता है और माँ को देखते ही दौड़ पड़ता है . इस मामले में जानवर अधिक सेंसिटिव होता है. प्यार करने वाले को दूर से गंध से पहचान लेता है .
                 दो भाइयों में बँटवारा होता है . खेत से धान आने पर बराबर का बंटवारा होता है . बड़े का परिवार बड़ा है और छोटे का छोटा. छोटा सोचता है कि भाईजी का खर्च अधिक है, अतः रात में चुपके से अपने धान के बोझा में से एक-दो बोझा बड़े भाई के बोझा में डाल देता है . बड़ा सोचता है कि मेरा तो बच्चा सब भी कमा रहा है, मेरी आय काफी है; छोटा अकेले कमाता है अतः तकलीफ में होगा . चुपके से रात में अपने हिस्से के बोझा में से एक-दो बोझा छोटे में डाल  आता है . काफी दिनों तक ऐसा करने पर भी दोनों को अपने हिस्से पर ध्यान देने पर कोई अंतर नजर नहीं आता है . भगवान् की माहिमा पर दोनों अचंभित हैं . एक रात अपने काम में मस्त दोनों टकरा जाते हैं . भेद खुल जाता है . एक साथ बैठकर बड़ी देर तक दोनों रोते रहते हैं.

                 किसी की भलाई के लिए किये गए क्रोध/ निंदा में पाप नहीं माना गया है, बल्कि पुण्य का काम है . परसुराम/ दुर्बासा का क्रोध लोक कल्याण के लिए होता था . माँ-बाप का क्रोध संतान की भलाई के लिए होता है . विश्वामित्र की तपस्या अतुलनीय थी, लेकिन उन्होंने क्रोध पर विजय नहीं पाया था . वे अपने को ब्रह्मर्षि कहलवाना पसंद करते थे . सभी ऋषि-मुनि उनके भय से उन्हें ब्रह्मर्षि कहते थे . केवल वशिष्ठ उन्हें राजर्षि कहते थे . यही कारण था कि विश्वामित्र, वशिष्ठ पर कुपित रहते थे . एक दिन उनकी ह्त्या करने के लिए वे फरसा लेकर विश्वामित्र की कुटी के बाहर छिप कर बैठ गए . आधी रात के समय वे कुटी में घुसने ही वाले थे कि उन्होंने पति-पत्नी की बात सुनी . पत्नी- ‘आप हमेशा कौशिक को राजर्षि कहते हैं, जबकि सभी उन्हें ब्रह्मर्षि कहते हैं’ . वशिष्ठ- ‘ सपूर्ण संसार में कौशिक से बड़ा ऋषि कोई नहीं है . मैं कौशिक को दुनिया में सबसे अधिक प्यार करता हूँ . अभी भी उनमे क्रोध का अंश शेष है . चापलूस लोग उनके भय से उन्हें ब्रह्मर्षि कहते हैं . जिस रोज उनका क्रोध समाप्त हो जाएगा मैं भी  उन्हें ब्रह्मर्षि कहूंगा’ . सुनते ही विश्वामित्र, वशिष्ठ के पाँव पर गिर पड़े. वशिष्ठ ने ‘ उठिए ब्रह्मर्षि’ संबोधन कर गले से लगा लिया .